बढ़ता CO2 खतरनाक चरम मौसम की वृद्धि कर सकता है : अध्ययन | 14 Jun 2018
चर्चा में क्यों?
जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार उच्च वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) सांद्रता सीधे तापमान और चरम वर्षा सीमा में वृद्धि करती है, जिसका अर्थ है कि इन चरम सीमाओं में खतरनाक परिवर्तन हो सकते हैं, भले ही वैश्विक औसत तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रहे। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, चरम मौसम के कारण होने वाले नुकसान को सीमित करने के लिये 1.5 डिग्री सेल्सियस के ग्लोबल वार्मिंग लक्ष्य को हासिल करना पर्याप्त नहीं होगा।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन में CO2 सांद्रता पर स्पष्ट सीमाओं के साथ तापमान लक्ष्यों को पूरा करने के लिये जलवायु नीति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- जलवायु परिवर्तन शमन के लिये अधिकांश ध्यान पेरिस में आयोजित 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर वार्मिंग सीमित करने के लक्ष्य पर रहा है।
- हालाँकि, वायुमंडलीय CO2 की सांद्रता को 1.5 डिग्री सेल्सियस के वार्मिंग स्तर तक सीमित करना है लेकिन यह जलवायु की प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है।
- ऑक्सफोर्ड और HAPPI-MIP प्रोजेक्ट में भाग लेने वाले अन्य संस्थानों के शोधकर्त्ताओं (आधा डिग्री अतिरिक्त वार्मिंग, प्रोग्नोसिस एंड प्रोजेक्ट इंपैक्ट्स मॉडल इंटरकंपरिजन प्रोजेक्ट-prognosis and project impacts model intercomparision project) CO2 की सांद्रता की सीमा के तहत भविष्य के मौसम का अनुमान किया गया जो कि ग्लोबल वार्मिंग के 1.5 डिग्री सेल्सियस के अनुरूप हो सकता है।
- मॉडल में इस सीमा के ऊपरी छोर पर CO2 के स्तर को उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्मकालीन तापमान, हीट स्ट्रेस और उष्णकटिबंधीय चरम वर्षा सीमाओं को बढ़ते हुए दिखाया गया था।
- अध्ययन के अनुसार यहाँ तक कि यदि कम तापमान प्रतिक्रिया, तापमान लक्ष्य को पूरा करने में हमारी सहायता करती है, तब भी चरम सीमा में 'खतरनाक' परिवर्तन हो सकते हैं - दूसरे शब्दों में, वर्तमान में अपेक्षित 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान का भी लोगों पर गंभीर मौसमी प्रभाव पड़ेगा।
- शोध उच्च प्रभाव वाले मौसमी चरम सीमाओं के प्रतिकूल प्रभाव को सीमित करने के लिये स्पष्टतः CO2 की सांद्रता के लक्ष्यों को निर्धारित करने की आवश्यकता को इंगित करता है।
- यह जीओ-इंजीनियरिंग के मौजूदा निष्कर्षों का भी समर्थन करता है जो समाधान प्रस्तावित करते हैं तथा जिसका लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से CO2 सांद्रता को कम किये बिना चरमसीमा में बदलावों के विपरीत प्रभावी नहीं हो सकता है।
- जीओ-इंजीनियरिंग तकनीकें जो पृथ्वी की सतह पर प्रकाश डालने वाली सूर्य की किरणों को कम करती हैं, उन्हें पेरिस लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीकों के रूप में माना जाता है क्योंकि वे सतह के तापमान को कम करती हैं|
- हालाँकि नतीजे बताते हैं कि चरम जलवायु जैसे हीटवेव के लिये, वैश्विक औसत तापमान बदलना पर्याप्त नहीं है, हमें CO2 सांद्रता को कम करने की आवश्यकता है।
- यह शोध मेलबर्न विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं, ईटीएच ज्यूरिख, ब्रिस्टल विश्वविद्यालय और जापान के सुकुबा में राष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के सहयोग से किया गया था।