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हिमस्खलन का बढ़ता जोखिम

  • 07 Mar 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हिमस्खलन, भूकंप, हिमालय, हिमस्खलन परिवीक्षण रडार

मेन्स के लिये:

हिमस्खलन के कारण और इसके जोखिमों का शमन करने के उपाय

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में भीषण हिमस्खलन हुआ, जिससे व्यक्ति और संपत्तियाँ बर्फ और मलबे के नीचे दब गए।

  • अपेक्षाकृत अधिक तापमान, अधिक वर्षा और कम हिमपात के कारण हिम की स्थिति में बदलाव आ रहा है, जिससे हिमालय में हिमस्खलन बढ़ रहा है।

हिमस्खलन क्या है?

  • परिचय: हिमस्खलन अथवा हिमधाव (Avalanche) का आशय किसी पर्वतीय ढाल से तुहिन, हिम और मलबे के द्रुत प्रवाह से है। इसके साथ प्रायः मृदा, चट्टानें और मलबा आता है, जिससे विनाश होता है।
    • भीषण शीतकालीन हिमपात (हिम संचयन) और वसंत हिमद्रवण (हिम परतों का विगलन होना) के कारण हिमस्खलन का खतरा दिसंबर से अप्रैल माह की अवधि में चरम पर होता है।

Avalanche

  • प्रकार:
    • अदृढ़ हिम अवधाव: यह एक एकल बिंदु से शुरू होता है जहाँ हिम का आबंध सुदृढ़ नहीं होता, हिम के कणों के गिरने के साथ इसमें प्रतिलोमित V आकार में विस्तार होता है तथा अपेक्षाकृत कम मात्रा और गति के कारण यह कम संकटपूर्ण होता है।
    • स्लैब हिमस्खलन: किसी संसक्त हिम पट्ट का अंतर्निहित परतों से टूटकर अलग होना स्लैब हिमस्खलन कहलाता है, जिसकी गति प्रायः 50 से 100 किमी/घंटा तक होती है और यह भीषण विनाश का कारण बनता है।
    • ग्लाइडिंग हिमस्खलन: इसमें हिम पुंज का घास अथवा चट्टान जैसी समान सतह से नीचे की ओर फिसलन होता है जिससे इसमें विभंजन होता है और यह स्थिर हिम खंड  से अलग हो जाता है।
    • आर्द्र-हिम अवधाव: आर्द्र-हिम हिमस्खलन स्वाभाविक रूप से तापमान या वर्षा में बढ़ोतरी के कारण होता है, क्योंकि विगलित हिम के जल से हिम परत का आबंध कमज़ोर हो जाता है।

हिमस्खलन के कारण क्या हैं?

प्राकृतिक:

  • हिम का जमाव: लगातार या अत्यधिक हिमपात से हिम पुंज का भार बढ़ जाता है, जिससे अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिये, जनवरी 2020 में हिमाचल प्रदेश में हुआ हिमस्खलन।
    • ऐसे ढाल जिनपर हाल में हिम संचयन हुआ हो, तीव्र पवनों से उनकी अस्थिरता बढ़ सकती है।
  • अदृढ़ हिम परतें: तापमान में परिवर्तन से हिम की परतें कमज़ोर हो जाती हैं, उदाहरण के लिये, अदृढ़ आधार पर हाल में हुए हिम संचयन से हिमस्खलन हो सकता है।
    • तापमान में सहसा वृद्धि से हिम पुंज कमज़ोर हो जाता है, जिससे आर्द्र-हिम अवधाव की संभावना बढ़ जाती है।
  • भूकंप: भूकंपीय गतिविधि बर्फ की परतों में असंतुलन उत्पन्न कर सकती है। उदाहरण के लिये वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप के कारण नेपाल की लांगटांग घाटी में हिमस्खलन हुआ था।

मानव-प्रेरित:

  • वनों की कटाई: पेड़ों की जड़ें ढलानों को स्थिर रखने में मदद करती हैं, वनों की कटाई से भूस्खलन और हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है, जैसा कि हिमालय में सड़क परियोजनाओं में देखा गया है।
  • साहसिक पर्यटन: स्कीइंग, स्नोबोर्डिंग और पर्वतारोहण बर्फ के ढेर को हिलाकर हिमस्खलन को ट्रिगर कर सकते हैं । उदाहरण के लिये, फरवरी 2024 में गुलमर्ग में स्कीयर ने गैर-स्की क्षेत्र  में स्कीइंग करके हिमस्खलन को ट्रिगर किया ।
  • एडवेंचर टूरिज्म: पर्वतारोहण, स्नोबोर्डिंग और स्कीइंग से हिमस्खलन हो सकता है। उदाहरण के लिये, फरवरी 2024 में गुलमर्ग में स्कीयरों गैर-स्की क्षेत्र में गए, जो हिमस्खलन का कारण बना।
  • ग्लोबल वार्मिंग: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण हिम के पिघलने से हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

हिमस्खलन और भूस्खलन में क्या अंतर है?

आधार

हिमस्खलन

भूस्खलन

परिभाषा

एक प्रकार का भूस्खलन जो बर्फीले क्षेत्रों में होता है, जिसमें बर्फ और हवा की गति शामिल होती है।

सामूहिक छति एक रूप जिसमें भूमि का एक बड़ा क्षेत्र में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण हलचल उत्पन्न होती है।

कारण

भारी बर्फबारी, अस्थिर बर्फ़ का ढेर, बर्फ के गोले, ढलानों पर बर्फ जमा करने वाली तेज़ हवाएँ, तापमान में उतार-चढ़ाव

भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, भारी बारिश और बाढ़, वनों की कटाई, वनाग्नि

पदार्थ

बर्फ और वायु .

मिट्टी, चट्टानों या कीचड़ आदि

घटना

यह बर्फीले क्षेत्रों में होता है जहाँ बर्फ की परतें कमज़ोर रूप से बर्फ के ढेरों पर टिकी होती हैं।

खड़ी ढलान वाली भूमि पर देखने को मिलता है।

गति

बहुत तेज़ (अत्यधिक मामलों में 250 मील प्रति घंटे तक)

हिमस्खलन की तरह तीव्र हो सकता है या समय के साथ धीमी गति से आगे बढ़ सकता है

हिमालय में हिमस्खलन का खतरा अधिक क्यों है?

  • बढ़ता तापमान: हिमालय औसत से अधिक तेज़ी से गर्म हो रहा है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं तथा हिमस्खलन का खतरा बढ़ रहा है।
    • वर्ष 1970 के दशक से पश्चिमी हिमालय में हिमस्खलन में काफी वृद्धि हुई है।
  • आर्द्र बर्फ: अधिक तापमान के कारण बर्फ की परत आर्द्र और अस्थिर हो जाती है, और बर्फबारी के बजाय वर्षा होती है।
    • वर्षा के पानी का बर्फ के ढेर से रिसने के कारण इनकी संरचना कमज़ोर हो जाती है, बर्फ की परतों के बीच घर्षण कम हो जाता है तथा हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • पर्माफ्रॉस्ट पिघलना: पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से उनके आधार पर पानी जमा हो जाता है, जिससे हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • वायु की गति में वृद्धि: बढ़ते तापमान के कारण वायु की गति में वृद्धि हो रही है, जिससे बर्फ का परिवहन बढ़ जाता है तथा नवीन बर्फ की परतें अधिक अस्थिर हो जाती हैं।
  • खड़ी ढलानें: हिमालय की खड़ी और ऊबड़-खाबड़ भूमि पर गुरुत्वाकर्षण के कारण हिमस्खलन आसान हो जाता है।
  • भूकंप: हिमालय, भूकंपीय दृष्टि से सक्रिय क्षेत्र में स्थित है और इस भूकंप से हिमस्खलन को बढ़ावा मिल सकता है। 

काराकोरम विसंगति

  • काराकोरम विसंगति का तात्पर्य काराकोरम रेंज में ग्लेशियरों के असामान्य व्यवहार से है जहाँ वे या तो स्थिर रहे हैं या उनके द्रव्यमान में मामूली वृद्धि हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर ग्लेशियर में आने वाली कमी की प्रवृत्ति के विपरीत है।
    • काराकोरम रेंज एक पर्वतीय क्षेत्र है जो पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान तथा चीन तक विस्तृत है।

हिमस्खलन जोखिम को किस प्रकार कम किया जाए?

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS): EWS से बर्फ की स्थिति की निगरानी (सेंसर और उपग्रहों का उपयोग करके), अलर्ट जारी करने (कमज़ोर बर्फ की परतें) और बचाव प्रयासों में सहायता करने (समय पर निवारक कार्रवाई) से हिमस्खलन के जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में भारत का पहला हिमस्खलन निगरानी रडार सिक्किम में स्थापित किया गया था जो ट्रिगर होने के 3 सेकंड के अंदर हिमस्खलन का पता लगा सकता है। 
  • बर्फ परीक्षण: बर्फ की स्थिरता का आकलन करने और हिमस्खलन के जोखिम की भविष्यवाणी करने के लिये नियमित रूप से बर्फ का परीक्षण किया जा सकता है। 
  • सुरक्षात्मक अवसंरचनाएँ: वाहनों को बर्फ के प्रभाव से बचाने के क्रम में परिवहन मार्गों पर बर्फ शेड का निर्माण किया जा सकता है।
    • दीवार और विभाजन संरचनाओं को मज़बूत करने से इमारतों से हिमस्खलन को दूर करने में मदद मिल सकती है। 
  • दोहरे उद्देश्य वाली अवसंरचना: बर्फ पिघलने से बाढ़ और मलबे के प्रवाह से सुरक्षा के क्रम में बाँधों का निर्माण करना चाहिये, जिससे वर्ष भर आपदा न्यूनीकरण सुनिश्चित हो सके।
  • कृत्रिम हिमस्खलन ट्रिगरिंग: नियंत्रित विस्फोटों के द्वारा बड़े हिमस्खलन को रोकने के क्रम में छोटे हिमस्खलन को ट्रिगर किया जाता है जिससे सड़कें, बस्तियाँ और ढलान सुरक्षित रहें।
  • वनरोपण: वनों की वृद्धि को प्रोत्साहित करने से समय के साथ प्राकृतिक हिमस्खलन नियंत्रण में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से हिमालय में हिमस्खलन की तीव्रता में वृद्धि हो रही है, जिससे बर्फ की स्थिरता में बदलाव आ रहा है, वर्षा में वृद्धि हो रही है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। इस क्षेत्र की खड़ी ढलान और भूकंपीय गतिविधियों के आलोक में जोखिमों को कम करने तथा समुदायों की सुरक्षा के क्रम में प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सुरक्षात्मक बुनियादी ढाँचा तथा नियंत्रित हिमस्खलन ट्रिगरिंग जैसे सक्रिय उपाय आवश्यक हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: चर्चा कीजिये कि जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार हिमालय में हिमस्खलन का खतरा बढ़ रहा है। इसके शमन हेतु रणनीतियाँ बताइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न: हिमालय के सिकुड़ते ग्लेशियरों एवं भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु परिवर्तन के लक्षणों के बीच संबंधों पर प्रकाश डालिये। (2014)

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