जैव विविधता और पर्यावरण
कार्बन उत्सर्जन से चेन्नई में भारी वर्षा की आशंका
- 30 Jun 2020
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प्रीलिम्स के लियेकार्बन उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन मेन्स के लियेजलवायु परिवर्तन का मानवीय जीवन पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) चेन्नई के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि से चेन्नई में बहुत अधिक होने की आशंका है।
प्रमुख बिंदु
- शोधकर्त्ताओं के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन में हो रही वृद्धि चेन्नई क्षेत्र के लिये बहुत अधिक वर्षा के लिये अनुकूल संभावना को जन्म दे रही है।
- अध्ययन के परिणामों से ज्ञात होता है कि वर्तमान स्तरों की तुलना में भविष्य में चेन्नई के लिये अनुमानित वर्षा में 17.37 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
- उल्लेखनीय है कि चेन्नई भारत के उन नगरों में से एक है, जहाँ प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस (Per Capita Greenhouse Gas) उत्सर्जन उच्चतर श्रेणी में आता है।
प्रभाव
- शोध के मुताबिक बढ़ी हुई तीव्रता और वर्षा की ऐसी घटनाओं के भौगोलिक विस्तार से भारी बाढ़ आ सकती है।
- इसके परिणामस्वरूप खतरा पैदा हो सकता है और स्थानीय समुदायों को नुकसान होने की आशंका पैदा हो सकती है।
- उल्लेखनीय है कि दक्षिण भारत के राज्यों में भारी वर्षा होने की घटनाएँ बढ़ रही हैं, जिससे वहाँ भयानक बाढ़ आने लगी हैं।
कार्बन उत्सर्जन और उसका प्रभाव
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन या तो प्राकृतिक या मानवजनित होता है, प्राकृतिक उत्सर्जन मुख्य रूप से प्राकृतिक जंगल, पौधों, जलीय सूक्ष्मजीव और ज्वालामुखी आदि के कारण होता है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का मानवजनित उत्सर्जन हीटिंग, वाहनों, स्वेच्छा से लगाई गई आग, जीवाश्म ईंधन के बिजली उत्पादन स्टेशन आदि के कारण होता है।
- कार्बन उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन में काफी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जिसके मनुष्यों और पर्यावरण पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
- गौरतलब है कि कार्बन डाइऑक्साइड लगभग 50 से 200 वर्षों तक वायुमंडल में बनी रहती है, इस कारण इसका प्रभाव भविष्य में लंबे समय तक रहता है।
जलवायु परिवर्तन: एक चुनौती के रूप में
- सामान्यतः जलवायु का आशय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है। अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं।
- जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
- गौरतलब है कि पृथ्वी के समग्र इतिहास में यहाँ की जलवायु कई बार परिवर्तित हुई है एवं जलवायु परिवर्तन की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं।