शासन व्यवस्था
स्वास्थ्य का अधिकार
- 23 Jul 2022
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:स्वास्थ्य का अधिकार, सातवीं अनुसूची, निजी विधेयक, सार्वजनिक विधेयक मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य क्षेत्र का महत्त्व, समावेशी स्वास्थ्य प्राप्त करने में चुनौतियाँ, सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा में एक निजी सदस्य के विधेयक “स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक” पर गहन चर्चा हुई।
- इसका लक्ष्य सभी विकास नीतियों में निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल अभिविन्यास के माध्यम से सभी उम्र के सभी लोगों हेतु स्वास्थ्य और कल्याण के उच्चतम संभव स्तर को प्राप्त करना है।
- विधेयक सभी नागरिकों के लिये स्वास्थ्य को एक मौलिक अधिकार बनाने और गरिमापूर्ण जीवन जीने हेतु अनुकूल शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के मानक के समान पहुँच तथा रखरखाव सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
स्वास्थ्य का अधिकार:
- परिचय:
- अन्य अधिकारों की तरह स्वास्थ्य के अधिकार में भी स्वतंत्रता एवं पात्रता दोनों घटक शामिल हैं:
- स्वतंत्रता में स्वयं के स्वास्थ्य और शरीर को नियंत्रित करने का अधिकार (उदाहरण के लिये यौन एवं प्रजनन अधिकार) तथा हस्तक्षेप से मुक्ति का अधिकार शामिल है (उदाहरण के लिये यातना एवं गैर-सहमति चिकित्सा उपचार और प्रयोग से मुक्ति)।
- ‘पात्रता’ के तहत स्वास्थ्य सुरक्षा की एक प्रणाली का अधिकार शामिल है, जो सभी को स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य स्तर का लाभ प्राप्त करने का अवसर देता है।.
- भारत में संबंधित प्रावधान:
- अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय:
- भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है।
- मूल अधिकार:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है।
- स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।
- राज्य नीति के निदेशक तत्त्व (DPSP):
- अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है।
- न्यायिक उद्घोषणा:
- पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना और उन्हें पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है।
- परमानंद कटारा बनाम भारत संघ मामले (1989) में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि हर डॉक्टर चाहे वह सरकारी अस्पताल में हो या फिर अन्य कहीं, जीवन की रक्षा के लिये उचित विशेषज्ञता के साथ अपनी सेवाएँ देना उसका पेशेवर दायित्व है।
- अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय:
- महत्त्व:
- स्वास्थ्य सेवा आधारित अधिकार:
- लोग स्वास्थ्य के अधिकार के हकदार हैं और सरकार द्वारा इस दिशा में कदम उठाना उसका उत्तरदायित्त्व है।
- स्वास्थ्य सेवाओं तक व्यापक पहुँच:
- यह सभी को सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और सुनिश्चित करता है कि सेवाओं की गुणवत्ता उन लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये पर्याप्त है।
- व्यय को कम करना:
- लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय करने के वित्तीय परिणामों से बचाता है और उन्हें गरीबी में धकेलने जैसे जोखिम को कम करता है।
- स्वास्थ्य सेवा आधारित अधिकार:
स्वास्थ्य क्षेत्र में चुनौतियाँ:
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में कमी:
- देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का दायरा सीमित है।
- यहाँ तक कि एक अच्छी तरह से कार्यरत सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्ड केयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
- अपर्याप्त धन:
- भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य निधि पर व्यय लगातार कम रहा है (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.3%)।
- OECD के अनुसार, भारत का कुल ‘आउट-ऑफ-पॉकेट’ खर्च जीडीपी का लगभग 2.3% है।
- उप-इष्टतम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली:
- स्वास्थ्य प्रणाली में त्रुटियों के कारण गैर-संचारी रोगों से निपटना चुनौतीपूर्ण है, जो कि रोकथाम और रोगों का शीघ्र पता लगाने से संबंधित है।
- यह कोविड-19 महामारी जैसे नए एवं उभरते खतरों की तैयारियों में कमी और इनके प्रभावी प्रबंधन को कमज़ोर करता है।
आगे की राह
- अधिक धन आवंटित करना:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में की गई परिकल्पना के अनुसार, स्वास्थ्य पर सार्वजनिक वित्त को जीडीपी के कम-से-कम 2.5% तक बढ़ाया जाना चाहिये।
- इस संबंध में स्वास्थ्य के अधिकार को शामिल करने वाला एक व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून संसद द्वारा पारित किया जा सकता है।
- नोडल स्वास्थ्य एजेंसी का निर्माण:
- रोग की निगरानी के लिये नामित और स्वायत्त एजेंसी बनाने की आवश्यकता है, जो प्रमुख गैर-स्वास्थ्य संबंधी विभागों की नीतियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव की जानकारी एकत्र करे, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आँकड़ों का रखरखाव करे ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों का प्रवर्तन और इससे संबंधित सूचनाओं का प्रसार जनता तक हो।
- अन्य उपाय:
- स्वास्थ्य को संविधान के तहत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया जाना चाहिये। वर्तमान में 'स्वास्थ्य' राज्य सूची के अंतर्गत है।
- स्वास्थ्य देखभाल निवेश के लिये एक समर्पित विकासात्मक वित्त संस्थान (DFI) की आवश्यकता है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D व्याख्या:
अतः विकल्प D सही है। प्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना सतत् विकास के लिये एक आवश्यक पूर्व शर्त है" विश्लेषण कीजिये। (2021) |