अमीरों को जमानत, गरीबों को जेल | 25 May 2017

सन्दर्भ
हाल ही में बी.एस. चौहान की अध्यक्षता में विधि आयोग की 268वीं रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसमें अनेक सुझावों के साथ-साथ इस बात पर भी विचार किया गया कि किस प्रकार देश में एक शक्तिशाली, अमीर और प्रभावशाली व्यक्ति तुरंत और आसानी से जमानत प्राप्त कर लेता है, जबकि गरीब व आम जनता को जेलों में रहना पड़ता हैं| रिपोर्ट में माना गया है कि आज यह स्थिति अमीरों के लिये एक आदर्श बन गया है|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • आयोग ने सरकार से दंड प्रक्रिया संहिता में जमानत से संबंधित प्रावधानों में संशोधन करने की सिफारिश की है और इस बात पर ज़ोर दिया है कि विचाराधीन कैदियों को जमानत पर शीघ्र रिहा किया जाना चाहिये। गौरतलब है कि देशा की जेलों में लगभग 2.83 लाख लोग अंडरट्रायल के तहत बंद हैं|
  • जिस व्यक्ति ने किसी अपराध के लिये निर्धारित अधिकतम सात साल तक की सज़ा का एक-तिहाई समय पूरा कर लिया है उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिये| 
  • जो लोग दंडनीय अपराध के ट्रायल के लिये इंतजार कर रहे हैं जिसमें सज़ा का प्रावधान सात साल से ज़्यादा का है तथा जिन्होंने उपनी आधी सज़ा पूरी कर ली हो, उन्हें भी रिहा कर देना चाहिये|
  • जिन लोगों ने अपनी अधिकतम सज़ा को पूरा कर लिया है उनकें लिये नए कानूनी प्रावधान बनाए जाने चाहियें|
  • यह पाया गया है कि लगभग 67 प्रतिशत विचाराधीन (under trials) कैदियों में 70 प्रतिशत अनपढ़ एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े समूह से संबंधित हैं| अत: हमें इस दिशा में तुरंत सुधार करने चाहियें ताकि इन लोगों को तुरंत न्याय मिल सके| 
  • लगभग 60 प्रतिशत से अधिक गिरफ्तारियाँ केवल ‘बहुत मामूली अभियोजन’ के मामलें में की गई थीं तथा ऐसा पाया गया कि इस प्रकार की गिरफ्तारियों पर जेलों के कुल व्यय का लगभग 42.3 खर्च किया गया |   
  • जमानत प्रणाली में विद्यमान विसंगति को जेलों में कैदियी की भीड़ बढ़ने का एक प्रमुख कारण माना गया है|
  • इस  समय देश में कारावास दर जनसंख्या का 33 प्रति 1,00,000 है।
  • जेलों में बंद 4,19,623 कैदियों की देखभाल लगभग 53,000 अधिकारी कर रहें हैं। 
  • यह पाया गया कि 1953 से अब तक हत्या जैसे घृणित अपराधों में 250 प्रतिशत, बलात्कार में 873  प्रतिशत, अपहरण की घटनाओं में 749 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है|