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चावल की पूसा बासमती-1 किस्म के जीआई टैग पर विवाद

  • 26 Apr 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ?
भौगोलिक संकेत (जीआई) रजिस्ट्री ने मध्य प्रदेश के खुद को पारंपरिक बासमती उत्पादक क्षेत्र में शामिल किये जाने संबंधी दावे को खारिज कर दिया जिसे वहाँ के किसानों ने चुनौती दी है। उनके अनुसार मध्य प्रदेश में उपजाई जाने वाली चावल की पूसा बासमती-1 किस्म की गुणवत्ता हरियाणा, पंजाब या पश्चिमी उत्तर प्रदेश (यूपी) में उत्पादित इसी किस्म के चावल से बेहतर है। 

प्रमुख बिंदु 

  • भारत में उत्पादित पूसा बासमती-1 किस्म का 50 प्रतिशत उत्पादन क्षेत्र मध्य प्रदेश के अंतर्गत आता है एवं इस किस्म का भारत से पश्चिमी जगत (अमेरिका एवं यूरोप) को होने वाले निर्यात का 70 प्रतिशत इसी राज्य से किया जाता है।
  • मध्य प्रदेश सरकार ने मांग की थी कि इसके 13 ज़िलों - मोरेना, भिंड, श्योपुर, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सेहोर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर को बासमती धान के लिये जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरह  जीआई टैग दिया जाए, लेकिन जीआई रजिस्ट्री ने इस दावे को खारिज कर दिया।
  • मध्य प्रदेश के इस दावे के समर्थकों के अनुसार, मध्य प्रदेश की मिट्टी और पर्यावरण की स्थिति उच्च उपज वाली पूसा बासमती-1 किस्म के लिये सर्वाधिक उपयुक्त हैं। पारंपरिक लंबी बासमती फसलें पीएच 7.9 वाली लवणीय और क्षारीय मिट्टियों वाले राज्यों जैसे हरियाणा के लिये उपयुक्त हैं, लेकिन पूसा बासमती-1  के लिये पीएच 6 से पीएच 8 के बीच वाली सामान्य और अम्लीय मिट्टी सबसे अच्छी होती है।  
  • इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश की हल्के से गहरे काले रंग की काली मृदा नमी अवधारण हेतु उपयुक्त होती है एवं रायसेन, विदिशा और होशंगाबाद जैसे मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में, जहाँ पंजाब और हरियाणा से दोगुनी वर्षा होती है, वहाँ फसल के लिये पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध होता है। इसके अतिरिक्त यह क्षेत्र कीट और रोगों के हमले हेतु भी कम प्रवण है।
  • बासमती चावल को नुकसान पहुँचाने वाले भूरे और सफ़ेद प्लांट हॉपर (brown and white plant hopper) सामान्य कीट हैं। ये मध्य सितंबर और मध्य अक्तूबर में फसल पर हमला करते हैं।
  • दावे के समर्थकों के अनुसार, मध्य प्रदेश में अक्तूबर-नवंबर के दौरान तापमान उतार-चढ़ाव कम रहता है। यह पुष्पण और अनाज भरण का समय होता है। अतः यहाँ का चावल अच्छी तरह तैयार होता है और इसकी गुणवत्ता भी अच्छी होती है। यही कारण है कि यहाँ के चावल की पश्चिमी जगत में अधिक मांग रहती है।
  • जबकि जीआई रजिस्ट्री ने अपने आदेश में कहा कि मध्य प्रदेश जीआई टैग हेतु आवश्यक पारंपरिक बासमती-उत्पादक क्षेत्र संबंधी “लोकप्रिय धारणा की मौलिक आवश्यकता“ (the fundamental requirement of popular perception) को पूरा नहीं करता। बासमती के लिये जीआई टैग गंगा के मैदानी क्षेत्र वाले खास हिस्से हेतु प्रदान किया गया है और मध्य प्रदेश इस क्षेत्र में नहीं आता है। अतः उसे जीआई टैग नहीं दिया जा सकता।   

जीआई टैग क्या है? 

  • भौगोलिक संकेत को बौद्धिक संपदा अधिकारों और बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) के अंतर्गत शामिल किया जाता है। 
  • भौगोलिक संकेत प्राप्त उत्पाद मुख्यतः एक ऐसा कृषि, प्राकृतिक अथवा विनिर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक वस्तुएँ) होता है, जिसे एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में ही उगाया जाता है। 
  • जीआई टैग प्रदान करना किसी विशिष्ट उत्पाद के उत्पादक को संरक्षण प्रदान करता है जो कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में उनके मूल्यों को निर्धारित करने में सहायता करता है।
  • यह संकेत प्राप्त होने पर उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता सुनिश्चित होती है। 
  • भौगोलिक संकेत का टैग किसी उत्पाद की उत्पत्ति अथवा किसी विशेष क्षेत्र से उसकी उत्पत्ति को दर्शाता है क्योंकि उत्पाद की विशेषता और उसके अन्य गुण उसके उत्त्पति स्थान के कारण ही होते हैं।
  • यह दर्शाता है कि वह उत्पाद एक विशिष्ट क्षेत्र से आता है। यह टैग किसानों और विनिर्माताओं को अच्छे बाज़ार मूल्य प्राप्त करने में सहायता करता है।
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