अंतर्राष्ट्रीय संबंध
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में गैंडों का जीवन संकट में
- 28 Aug 2017
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चर्चा में क्यों ?
असम में आई भीषण बाढ़ से काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का 85 फीसदी हिस्सा डूब चुका है। हाल के समय में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान को प्रभावित करने वाली यह एक बड़ी आपदा है। इस राष्ट्रीय उद्यान में बाढ़ से अब तक गैंडों के अनेक बच्चों को बचाया जा चुका है।
प्रमुख बिंदु
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक के अनुसार, बाढ़ में अभी तक 280 जानवरों की मृत्यु हो चुकी है।
- इनमें से 240 हिरण (जिनमें 224 हॉग हिरण शामिल हैं), 13 सांभर हिरण, तीन दलदल हिरण और 24 गैंडे थे। इन 24 गैंडों में से 15 गैंडे के बच्चे भी थे।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ के अनुसार काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में लगभग 2,000 भारतीय गैंडे हैं।
भारतीय गैंडा
- वैज्ञानिक नाम : राइनोसीरस यूनिकॉर्न (Rhinoceros Unicorn)।
- भारतीय गैंडे पहले पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में पाए जाते थे। लेकिन, वर्तमान में ये भारत और नेपाल तक ही सीमित हो गए हैं।
- भारत में ये काजीरंगा, ओरंग, पोबितरा, जल्दापाड़ा एवं दुधवा में पाए जाते हैं।
विशेषताएँ
- इनकी नज़र कमज़ोर होती हैं परंतु सूंघने एवं सुनने की क्षमता अधिक होती है।
- ये तैर भी सकते हैं।
- इनके सींगों से औषधि बनाई जाती है।
- दुनिया में गैंडे की पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से दो प्रजातियाँ अफ्रीका में तथा तीन दक्षिण एशिया में पाई जाती हैं।
- काले और सफेद रंग के गैंडे अफ्रीका के मूल निवासी हैं जबकि भारतीय गैंडा, सुमात्राई गैंडा और जावा का गैंडा एशिया में पाई जाने वाली प्रजातियाँ हैं।
वर्तमान स्थिति
- सीआईटीईएस (The Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora - CITES) के अनुसार, सुमात्राई गैंडे, जावा के गैंडे एवं अफ्रीकी काले गैंडे ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ जीव हैं जबकि भारतीय गैंडे को ‘लुप्तप्राय’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- अवैध शिकार और आवास की कमी के कारण आज लुप्त होने की कगार पर हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा इसे लाल डाटा सूची में ‘सुभेद्य’ (vulnerable) श्रेणी में रखा गया है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण लिये समर्पित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
- यह एक लाल डाटा सूची प्रकाशित करता है जिसमें विश्व की संकटग्रस्त प्रजातियों को दर्शाया जाता है।
‘सुभेद्य’
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा ऐसे जीवों को ‘सुभेद्य’ प्रजाति के तौर पर चिन्हित किया गया है जिनका अस्तित्व भविष्य में खतरे में पड़ सकता है।
- किसी प्रजाति की ‘सुभेद्य’ या असुरक्षित स्थिति मुख्यतः उनके आवासीय स्थानों पर प्रतिकूल परिस्थितियों, शिकार, पर्यावरणीय प्रदूषण, बीमारी या अन्य कारणों से हो सकती है।
- ऐसे जीवों की सुरक्षा के उपाय यदि नहीं किये गए तो वे विलुप्ति के कगार पर भी पहुँच सकते हैं।