कृषि
मोटे अनाजों की खेती का पुनः प्रचलन
- 01 Apr 2021
- 11 min read
चर्चा में क्यों?
कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (International Fund for Agricultural Development- IFAD) द्वारा वर्ष 2013-14 में मध्य प्रदेश के डिंडोरी ज़िले में कोदो और कुटकी (मोटे अनाज) जैसी फसलों की खेती को पुनर्जीवित करने हेतु की गई पहल ने ऐसे अनाजों की खेती को एक नया रूप देने में सफलता हासिल की है, जिनकी कृषि लगभग हाशिये पर पहुँच गई थी।
- IFAD, संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक विशेष एजेंसी है जो वर्ष 1974 के विश्व खाद्य सम्मेलन का प्रमुख परिणाम था।
- IFAD की स्थापना वर्ष 1977 में गई थी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करने पर केंद्रित है। यह विकासशील देशों में गरीब ग्रामीण आबादी के साथ मिलकर कार्य करके गरीबी, भूख और कुपोषण को समाप्त करने की दिशा में कार्यरत्त है।
प्रमुख बिंदु:
परियोजना के बारे में:
- शुरुआत
- इस परियोजना को 40 गांँवों के 1,497 महिला किसानों के साथ शुरू किया गया था जिनमें ज़्यादातर गोंड और बैगा जनजातियों की महिला किसान शामिल थीं, इनके द्वारा 749 एकड़ में इन दो मोटे अनाजों (कोदो और कुटकी) की खेती की जाती है।
- बीज और प्रशिक्षण:
- खेत को तैयार करने, लाइन-बुवाई (पारंपरिक हाथ से बुआई करने के विपरीत) और विशिष्ट पौधों के संरक्षण हेतु खाद, जस्ता, कवकनाशी तथा अन्य रसायनों के उपयोग हेतु चयनित किसानों को जबलपुर में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय और स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा प्रशिक्षण प्रदान कर अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराए गए।
- स्वयं सहायता समूह:
- स्व-सहायता समूह के किसानों के एक संघ द्वारा उपज की खरीद कर उसकी यांत्रिक डी-हलिंग (Mechanical De-Hulling) का कार्य किया गया। (अनाज से भूसी निकालने हेतु प्रयुक्त पारंपरिक मैनुअल पाउंडिंग प्रक्रिया में अत्यधिक समय लगता है।)
प्रभाव:
- वर्ष 2019-20 में परियोजना क्षेत्र में कोदो-कुटकी उगाने वाले किसानों की मदद की गई जिससे उनकी संख्या बढकर 14,301 हो गई।
- कोदो-कुटकी उगाने वाले क्षेत्र में 14,876 एकड़ की बढ़ोत्तरी हुई।
- पोषण संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिली (बच्चों में कुपोषण से लड़ने में)।
- बाजरे की खेती को पुनर्जीवित करने में मदद मिली (फसल पैदावार पहले की तुलना में 1.5-2 गुना अधिक है)।
मोटे अनाज:
मोटे अनाज के बारे में:
- मोटे अनाजों को अक्सर सुपरफूड के रूप में संदर्भित किया जाता है, इनके उत्पादन को स्थायी कृषि और एक स्वस्थ विश्व के संदर्भ में देखा जा सकता है
भारत में मोटे अनाज:
- वर्तमान में भारत में उगाई जाने वाली तीन प्रमुख मोटे अनाज वाली फसलें ज्वार, बाजरा और रागी हैं।
- इसके साथ ही भारत मोटे अनाजों की जैव-आनुवंशिक रूप से विविध और स्वदेशी किस्मों की एक समृद्ध शृंखला को विकसित कर रहा है।
- प्रमुख उत्पादक राज्यों में राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा शामिल हैं।
मोटे अनाजों की ऊपज को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता:
- पोषण सुरक्षा:
- मोटे अनाज गेहूंँ और चावल की तुलना में सस्ते होने के साथ-साथ उच्च प्रोटीन, फाइबर, विटामिन तथा आयरन आदि की उपस्थिति के चलते पोषण हेतु बेहतर आहार होते हैं।
- मोटे अनाजों में कैल्शियम और मैग्नीशियम की प्रचुरता होती है।
- जैसे- रागी में सभी खाद्यान्नों की तुलना में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है।
- इसमें लोहे की उच्च मात्रा महिलाओं की प्रजनन आयु और शिशुओं में एनीमिया के उच्च प्रसार को रोकने में सक्षम है।
- जलवायु अनुकूल:
- ये कठोर एवं सूखा प्रतिरोधी फसलें हैं जिनका वृद्धि काल (70-100 दिन) गेहूंँ या चावल (120-150 दिन ) की फसल की तुलना में कम होता है इसके अलावा मोटे अनाजों (350-500मिमी) को गेहूंँ या चावल (600-1,200मिमी) की फसल की तुलना में कम जल की आवश्यकता होती है।
- आर्थिक सुरक्षा:
- चूंँकि मोटे अनाजों के उत्पादन हेतु निवेश की कम आवश्यकता होती है, अत: ये किसानों के लिये आय के स्थायी स्रोत साबित हो सकते हैं।
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में सहायक:
- मोटे अनाज कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में सहायक है जैसे- मधुमेह और मोटापे की समस्या।क्योंकि वे ग्लूटेन मुक्त होते हैं और इनमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है।(खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट के एक सापेक्ष स्तर के अनुसार वे रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करते हैं)।
- मोटे अनाज एंटीऑक्सीडेंट का संपन्न स्रोत है।
- मोटे अनाज कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में सहायक है जैसे- मधुमेह और मोटापे की समस्या।क्योंकि वे ग्लूटेन मुक्त होते हैं और इनमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है।(खाद्य पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट के एक सापेक्ष स्तर के अनुसार वे रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करते हैं)।
चुनौतियाँ:
- गेहूँ को वरीयता:
- गेहूँ में ग्लूटेन प्रोटीन विद्यमान होता है जो आटे में पानी मिलाने पर इसे चिपचिपा बनाता है तथा आटे को अधिक गाढ़ा और लोचदार बनाता है।
- जिसके परिणामस्वरूप रोटियाँ अधिक मुलायम बनती हैं, यह मोटे अनाजों में संभव नहीं है क्योकि ये ग्लूटेन मुक्त होते हैं।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की मांग में बढ़ोतरी:
- भारत ने अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और रेडी-टू-ईट उत्पादों की मांग में उछाल देखा है, जिनमें सोडियम, चीनी, ट्रांस-वसा और यहांँ तक कि कार्सिनोजेन्स का उच्च स्तर पाया जाता है।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के तीव्र विपणन के साथ ग्रामीण आबादी में भी मिल-संसाधित चावल और गेहूंँ का उपयोग करने की तीव्र इच्छा देखी जा रही है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम द्वारा अन्य अनाजों को बढ़ावा:
- वर्ष 2013 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत ग्रामीण भारत के तीन-चौथाई परिवारों को 5 किलोग्राम गेहूंँ या चावल प्रति व्यक्ति प्रतिमाह उपलब्ध कराया जाता है जिसमें 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार यह मोटे अनाजों की मांग में कमी लाता है।
भारतीय पहल:
- मोटे अनाजों को बढ़ावा:
- अप्रैल 2018 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा मोटे अनाजों को उनके "उच्च पोषक मूल्य" और "मधुमेह विरोधी गुणों" के कारण "पोषक तत्त्वों" के रूप में घोषित किया गया था।
- वर्ष 2018 को नेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (National Year of Millets) के रूप में मनाया गया।
- MSP में वृद्धि:
- सरकार द्वारा मोटे अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) को बढ़ाया गया है, जो किसानों को उनकी फसल का अधिक मूल्य प्रदान करती है।
- इसके अलावा उपज की बिक्री हेतु एक स्थिर बाज़ार प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को शामिल किया है।
- निवेश सहायता:
- सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण किया गया है और मोटे अनाजों की बिक्री को बढ़ावा देने हेतु विपणन क्षमता का समर्थन किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय पहल
- यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली ने 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स’ (International Year of Millets) के रूप में मनाने के भारत के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है।
आगे की राह:
- जलवायु के साथ सामंजस्य स्थापित करने, छोटी फसल अवधि, कम उपजाऊ मिट्टी, पहाड़ी इलाकों एवं वर्षा की कम मात्रा के साथ उगने की क्षमता को देखते हुए मोटे अनाज़ों की खेती को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- मोटे अनाजों की पहुंँच गरीबों तक होने के कारण ये सभी आय श्रेणी के लोगों को पोषण प्रदान करने के साथ-साथ वर्षा आधारित कृषि प्रणालियों का जलवायु अनुकूलन के साथ समर्थन करने में एक आवश्यक भूमिका निभा सकते हैं।