विविध
SC/ST वर्ग के सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण
- 13 May 2019
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चर्चा में क्यों?
10 मई के अपने एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार के उस कानून की वैधता को बरकरार रखा जिसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों की पदोन्नति एवं वरिष्ठता के क्रम में आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
प्रमुख बिंदु
- कर्नाटक में सरकारी सेवकों (राज्य की सिविल सेवा में पदों के लिये) को परिणामी वरिष्ठता में आरक्षण अधिनियम, 2017 के आधार पर पदोन्नत किया गया।
- इस अधिनियम को पिछले वर्ष राष्ट्रपति ने सहमति प्रदान की थी और 23 जून, 2018 को यह राजपत्र में प्रकाशित हुआ था।
- 6 मार्च, 2019 को जस्टिस यू.यू. ललित एवं डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने प्रोन्नति संबंधी याचिकाओं की श्रृंखला पर अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था।
- यह निर्णय महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ ने सितंबर 2018 में वर्ष 2006 के एक आदेश को संशोधित किया जिसमें राज्यों को सार्वजनिक क्षेत्र के रोज़गारों में पदोन्नति प्रदान करने के लिये अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के "पिछड़ेपन" को साबित करने हेतु मात्रात्मक आँकड़ों को दिखाना आवश्यक था।
- तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली खंडपीठ द्वारा सितंबर में दिये गए फैसले ने सरकारी सेवा में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लोगों को "परिणामी वरिष्ठता के आधार पर त्वरित पदोन्नति" प्रदान करने के प्रयासों का समर्थन करते हुए सरकार को बड़ी राहत दी थी। साथ ही यह माना गया कि 2006 का एम नागराजन वाद का फैसला सीधे तौर पर इंदिरा साहनी मामले में नौ जजों की बेंच (संवैधानिक पीठ) के फैसले के विपरीत था।
- संवैधानिक पीठ- जिस पीठ में पाँच या इससे अधिक न्यायाधीश शामिल हों उसे संवैधानिक पीठ कहते है।
- इंदिरा साहनी वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं किया जा सकता है।
- ज्ञातव्य है कि अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत रोज़गार में पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिया जा सकता है एवं इसमें वर्णित पिछड़ापन मूलतः सामाजिक है।
इंदिरा साहनी वाद
सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में अनुच्छेद 16 (4) के संदर्भ में निर्णय देते हुए कहा कि अनुच्छेद 16 (4) में दिया गया आरक्षण केवल आरंभिक नियुक्ति तक है, प्रोन्नति में नहीं।
अतः इंदिरा साहनी वाद में यह स्पष्ट कहा गया है कि आरक्षण प्रोन्नति में नहीं दिया जा सकता।
SC/ST के प्रोन्नति में आरक्षण हेतु संविधान संशोधन
- इसके लिये 77वाँ संविधान संशोधन किया गया और संविधान में अनुच्छेद 16 (4A) जोड़ा गया जिसके अनुसार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रोन्नति में दिया गया आरक्षण जारी रहेगा।
- 85वें संविधान संशोधन के द्वारा SC/ST को प्रोन्नति में परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने की बात कही गई है।
नागराजन वाद
वर्ष 2007 में नागराजन वाद में 77वें और 85वें संविधान संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई लेकिन न्यायालय ने इन संशोधनों को वैध कहा और प्रोन्नति में आरक्षण को स्वीकार कर लिया गया। परंतु न्यायपालिका ने कहा कि अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजातियों के पिछड़ेपन, सेवाओं की कुशलता तथा उनकी सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आँकड़े प्रस्तुत करना आवश्यक होगा।