भारतीय इतिहास
प्राचीन भारत में गणराज्य
- 06 Oct 2021
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प्रिलिम्स के लिये:सभा, विदथ, समिति मेन्स के लिये:प्राचीन भारत में गणराज्य का स्वरुप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक बात कही कि भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है।
- प्राचीन भारत में लोकतंत्र और गणतंत्रवाद के आद्य रूपों के अस्तित्व का प्रमाण है।
प्रमुख बिंदु:
- वैदिक शासन: वेद गणतांत्रिक शासन व्यवस्था में दो प्रकार की शासन व्यवस्थाएँ विद्यमान थीं:
- राजशाही: इसमें राजा निर्वाचित होता था। इसे लोकतंत्र का प्रारंभ माना जाता है।
- गणतंत्र: इसमें राजा या सम्राट के बजाय शक्ति संकेंद्रण एक परिषद या सभा में निहित होती थी।
- इस सभा की सदस्यता जन्म के बजाय कर्म सिद्धांत पर आधारित थी और इसमें ऐसे लोग शामिल होते थे जिन्होंने अपने कार्यों से खुद को प्रतिष्ठित किया था।
- यहाँ तक कि विधायिकाओं की आधुनिक द्विसदनीय प्रणाली का भी एक संकेत प्राचीन संस्था सभा के रूप में प्रतिष्ठित थी जिसमें सामान्य लोगों का प्रतिनिधित्व होता था।
- नीति, सैन्य मामलों और सभी को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करने के लिये विदथ का उल्लेख ऋग्वेद में सौ से अधिक बार किया गया है। इन चर्चाओं में महिलाएँ और पुरुष दोनों हिस्सा लेते थे।
- महाभारत:
- महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 107/108 में भारत में गणराज्यों (जिन्हें गण कहा जाता है) की विशेषताओं के बारे में विस्तृत वर्णन है।
- इसमें कहा गया है कि जब एक गणतंत्र के लोगों में एकता होती है तो गणतंत्र शक्तिशाली हो जाता है और उसके लोग समृद्ध हो जाते हैं तथा आंतरिक संघर्षों की स्थिति में वे नष्ट हो जाते हैं।
- इससे पता चलता है कि प्राचीन भारत में न केवल हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ जैसे राज्य थे बल्कि ऐसे क्षेत्र भी थे जहाँ कोई राजा नहीं था बल्कि एक गणतंत्र था।
- महाभारत के शांति पर्व के अध्याय 107/108 में भारत में गणराज्यों (जिन्हें गण कहा जाता है) की विशेषताओं के बारे में विस्तृत वर्णन है।
- बौद्ध सिद्धांत:
- बौद्ध कैनन अर्थात् संस्कृत (जिसमें अधिकांश महायान बौद्ध साहित्य लिखा गया था) और पाली (जिसमें हीनयान साहित्य का अधिकांश भाग लिखा गया था) में भारत के प्राचीन गणराज्यों की व्यवस्था का व्यापक संदर्भ मिलता है। जैसे- वैशाली के लिच्छवी।
- बौद्ध सिद्धांत वैशाली की मगध के साथ प्रतिद्वंद्विता का भी विस्तार से वर्णन करता है, जो एक राजतंत्र था। यदि लिच्छवियों की जीत होती तो उपमहाद्वीप में शासन की गति गैर-राजशाही व्यवस्था का और विकास होता।
- महानिब्बाना सुत्त (पाली बौद्ध कृति) और अवदान शतक (दूसरी शताब्दी ईस्वी का एक संस्कृत बौद्ध पाठ) में भी उल्लेख है कि कुछ क्षेत्र सरकार के गणतंत्रात्मक रूप के अधीन थे।
- बौद्ध और जैन ग्रंथों में तात्कालिक 16 शक्तिशाली राज्यों या महाजनपदों की सूची मिलती है।
- बौद्ध कैनन अर्थात् संस्कृत (जिसमें अधिकांश महायान बौद्ध साहित्य लिखा गया था) और पाली (जिसमें हीनयान साहित्य का अधिकांश भाग लिखा गया था) में भारत के प्राचीन गणराज्यों की व्यवस्था का व्यापक संदर्भ मिलता है। जैसे- वैशाली के लिच्छवी।
- ग्रीक रिकॉर्ड्स:
- ग्रीक इतिहासकार डियोडोरस सिकुलस के अनुसार, सिकंदर के आक्रमण (326 ईसा पूर्व) के समय उत्तर पश्चिम भारत के अधिकांश शहरों में सरकार के लोकतांत्रिक रूप थे (हालाँकि कुछ क्षेत्र आम्भी और पोरस जैसे राजाओं के अधीन थे) तथा इसका उल्लेख इतिहासकार एरियन द्वारा भी किया गया था।
- सिकंदर की सेना को इन गणराज्यों की सेनाओं से भयंकर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। उदाहरणस्वरुप मल्लों आदि से भारी हानि झेलने के बाद सिकंदर को जीत हासिल हुई थी।
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र:
- लोकतंत्रात्मक स्वरुप के अन्य स्रोत पाणिनि की अष्टाध्यायी, कौटिल्य का अर्थशास्त्र आदि हैं।
- कौटिल्य द्वारा राज्य के तत्त्व: किसी भी राज्य को सात तत्त्वों से बना माना जाता है। पहले तीन स्वामी या राजा, अमात्य या मंत्री (प्रशासन) और जनपद या प्रजा हैं।
- राजा को प्रजा की भलाई के लिये अमात्यों की सलाह पर कार्य करना चाहिये।
- मंत्रियों को लोगों के बीच से नियुक्त किया जाता है (अर्थशास्त्र में प्रवेश परीक्षा का भी उल्लेख है)।
- अर्थशास्त्र के अनुसार, प्रजा के सुख और लाभ में राजा का सुख और लाभ निहित है।