लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

‘वर्ष 2018-19 के लिये ऊर्जा दक्षता उपायों का प्रभाव' रिपोर्ट

  • 07 May 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

‘वर्ष 2018-19 के लिये ऊर्जा दक्षता उपायों का प्रभाव रिपोर्ट, ‘ऊर्जा दक्षता ब्यूरो’

मेन्स के लिये

पर्यावरण संरक्षण और विकास, पर्यावरण संरक्षण में भारत का योगदान 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय बिजली एवं नवीन तथा नवीकरणीय राज्य मंत्री ने ‘वर्ष 2018-19 के लिये ऊर्जा दक्षता उपायों का प्रभाव' (Impact of energy efficiency measures for the year 2018-19) नामक रिपोर्ट जारी की है। 

मुख्य बिंदु: 

  • केंद्रीय बिजली एवं नवीन तथा नवीकरणीय राज्य मंत्री ने 6 मई, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘वर्ष 2018-19 के लिये ऊर्जा दक्षता उपायों का प्रभाव' नामक रिपोर्ट जारी की है।
  • केंद्रीय राज्य मंत्री के अनुसार, भारत अपनी ऊर्जा दक्षता पहलों के माध्यम से वर्ष 2005 की तुलना में अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता में 20% की कमी करने में सफल रहा है।
  • ध्यातव्य है कि भारत ने COP-21 में वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता में वर्ष 2005 की तुलना में 33 से 35 प्रतिशत की कमी लाने का संकल्प लिया था।
  • यह रिपोर्ट विशेषज्ञ एजेंसी ‘प्राइस वॉटरहाउस कूपर्स लिमिटेड’ (Pricewaterhouse Coopers) द्वारा तैयार की गई है।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन फ्रेमवर्क’ (United Nations Framework Convention on Climate Change-UNFCCC) की 21वीं बैठक या COP-21:

  • दिसंबर 2015 में फ्राँस की राजधानी पेरिस में आयोजित ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC)’ के अंतर्गत शीर्ष निकाय ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़’ (COP) के 21वें सत्र में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से ‘पेरिस समझौते’ पर हस्ताक्षर किये थे।
  • इस समझौते में देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (Intended nationally determined contributions- INDC) के तहत स्वेच्छा से अपने योगदान की घोषणा की थी।
  • इसके तहत भारत ने वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्‍तर की तुलना में 33-35 प्रतिशत तक कम करने का संकल्प लिया था।  
  • साथ ही वर्ष 2030 तक वैश्विक सहयोग के माध्यम से कुल ऊर्जा आवश्यकता के लगभग 40% हिस्से की आपूर्ति हेतु गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित विद्युत उत्पादन संसाधनों की स्थापना का संकल्प लिया गया था।  

‘ऊर्जा दक्षता उपायों का प्रभाव':  

  • इस रिपोर्ट में जारी आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि भारत अपनी विभिन्न ऊर्जा दक्षता योजनाओं के परिणामस्वरूप वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान 113.16 बिलियन यूनिट विद्युत् ऊर्जा की बचत करने में सफल रहा है।
  • यह ऊर्जा बचत भारत की कुल विद्युत् ऊर्जा खपत के 9.39% के बराबर है।
  • ऊर्जा खपत क्षेत्रों (Energy Consuming Sectors) में की गई यह बचत (इलेक्ट्रिकल एवं थर्मल) 16.54 मिलियन टन खनिज तेल के बराबर (Million Tonne of Oil Equivalent- Mtoe) है, जो वित्तीय वर्ष 2018-19 की कुल ऊर्जा खपत (लगभग 581.60 Mtoe) का 2.84% है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान की गई कुल ऊर्जा (आपूर्ति+मांग) बचत 23.73 Mtoe रही, जो कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति का 2.69% है।
  • इन आँकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान विभिन्न ऊर्जा दक्षता योजनाओं के परिणामस्वरूप लगभग 89,122 करोड़ रुपयों की बचत करने में सफलता प्राप्त हुई है, जबकि पिछले वर्ष (वित्तीय वर्ष 2017-18) में यह बचत 53,627 करोड़ रुपए थी।
  • साथ ही इन प्रयासों के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में 151.74 मिलियन टन की कमी लाने में में सफलता प्राप्त हुई है, जबकि वित्तीय वर्ष 2017-18 में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में की गई कटौती 108 मिलियन टन (CO2) थी।

रिपोर्ट का उद्देश्य:  

  • वित्तीय वर्ष 2017-18 से प्रतिवर्ष भारत सरकार के ‘ऊर्जा दक्षता ब्यूरो’ (Bureau of Energy Efficiency- BEE) द्वारा विभिन्न ऊर्जा दक्षता योजनाओं के परिणामस्वरूप हुई वास्तविक ऊर्जा खपत और अनुमानित ऊर्जा खपत (यदि इन योजनाओं को लागू न किया गया होता तो) के तुलनात्मक अध्ययन हेतु तीसरे पक्ष के रूप में एक विशेषज्ञ एजेंसी को नियुक्त किया जाता है।
  • इस अध्ययन का उद्देश्य ऊर्जा बचत और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन के संदर्भ में देश में संचालित प्रमुख ऊर्जा योजनाओं के प्रदर्शन और उनके प्रभावों का मूल्यांकन करना है।
  • इस रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिये राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर लागू विभिन्न योजनाओं के प्रभावों का आकलन किया गया। साथ ही वर्तमान में योजनाओं के फलस्वरूप प्राप्त बेहतर आँकड़ों और इन योजनाओं के लागू न होने की स्थिति में (यदि इन योजनाओं को लागू न किया गया होता तब) ऊर्जा खपत एवं CO2 उत्सर्जन की मात्रा की तुलनात्मक समीक्षा की गई है।
  • इस वर्ष के अध्ययन में निम्नलिखित योजनाओं को शामिल किया गया है:
    1. उजाला योजना    
    2. मानक और लेबलिंग कार्यक्रम  (Standards & Labelling Programme) 
    3. प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार योजना {Perform, Achieve and Trade (PAT) Scheme}
    4. म्युनिस्पल डिमांड साइड मैनेजमेंट कार्यक्रम {Municipal Demand Side Management (MuDSM) programme} आदि      

निष्कर्ष:   भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में विकास के साथ-साथ ऊर्जा की मांग में तीव्र वृद्धि होना स्वाभाविक है। साथ ही सरकार के लिये जनता तथा औद्योगिक क्षेत्र की ज़रूरतों को पूरा करते हुए पर्यावरण संरक्षण पर भी ध्यान देना बहुत आवश्यक है। भारत सदैव पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध रहा है, हाल के वर्षों में BS-6 ईंधन,सौर ऊर्जा और ऊर्जा के अन्य नवीकरणीय स्रोतों जैसे विकल्पों को अपना कर तथा पर्यावरण संरक्षण की नीतियों से भारत ने अपनी वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सफलता प्राप्त की है।    

स्रोत: पीआईबी

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2