विधी रिपोर्ट | 10 Aug 2020

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया

मेन्स के लिये:

विधी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा जारी रिपोर्ट में की गई प्रमुख सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली स्थित स्वतंत्र थिंक-टैंक, ‘विधी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ (Vidhi Centre for Legal Policy) द्वारा भारत में खबरों/समाचारों के भविष्य की जाँच करने वाली एक रिपोर्ट को जारी किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • रिपोर्ट के अनुसार, प्रिंट पत्रकारिता के बिगड़ते आर्थिक हालातों में जनता को विश्वसनीय सूचना उपलब्ध कराने की इसकी क्षमता को मुश्किल में डाल दिया है,  जो सत्ता द्वारा नियंत्रित एक संस्था के रूप में कार्य कर रहा है।
  • डिजिटल समाचार का संचालन बिना किसी नियमन के होता है।
  • सार्वजनिक संचार में ‘पोस्ट-ट्रुथ पैराडिज्म’ ( Post-Truth Paradigm) के प्रतिमानों तथा गलत सूचनाओं का व्यापक प्रसार डिजिटल समाचार वितरण के लाभों को प्राप्त करने में बाधक है।
    • (पोस्ट- ट्रुथ) Post-Truth परिस्थितियों में ऐसे उद्देश्य शामिल होते हैं जिनमें भावुकता और व्यक्तिगत विश्वास की अपेक्षा जनता की राय को आकार देने में वस्तुनिष्ठ तथ्य कम प्रभावशाली होते हैं।

Vidhi

सिफारिशें: 

  • रिपोर्ट में उच्च-गुणवत्ता वाले प्रिंट पत्रकारिता के ट्रांज़िशन को सुविधाजनक बनाने के लिये  कानूनी सुधारों का एक रोडमैप तैयार किया गया है जिसके माध्यम से डिजिटल संचार के इस दौर में लोगों को अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
  • ऑनलाइन विज्ञापन प्लेटफार्मों के प्रभुत्त्व की जाँच:
    • डिजिटल समाचार के लिये विज्ञापन-राजस्व मॉडल (Advertisement-Revenue Model) द्वारा बाज़ार की विफलता के संकेत प्रदर्शित किये जा सकते हैं।
    • एक विज्ञापन-राजस्व मॉडल में, ऑनलाइन कंपनियाँ  मुफ्त में सामग्री का प्रकाशन कर मासिक आधार पर साइट पर सैकड़ों, हज़ारों या फिर लाखों आगंतुकों/दर्शकों( Visitors) को पहुँच प्रदान करती हैं। विज्ञापनदाता साइट्स पर इन आगंतुकों को लाने के लिये ऑनलाइन कंपनियों को भुगतान करते हैं जिससे व्यवसायों को साइट्स पर आगंतुकों की पहुँच  के लिये विज्ञापनदाताओं द्वारा भुगतान की जाने वाली फीस से राजस्व उत्पन्न करने में मदद मिलती है।
  • लोगों के कल्याण के लिये डिजिटल समाचार को बाज़ार उन्मुख बनाने के लिये, ऑनलाइन विज्ञापन प्लेटफार्मों की भूमिका और कार्यों का एक विशेष प्राधिकरण द्वारा व्यवस्थित रूप से अध्ययन किया जाना चाहिये।
  • गलत सूचना के प्रसारण को रोकने के लिये व्यापक उपाय करना:
    • रिपोर्ट में कई विधायी, सह-नियामक और स्वैच्छिक उपायों का सुझाव दिया गया है जो गलत सूचना के प्रसार को रोकने और पाठक साक्षरता को बढ़ावा देने के लिये एक एकीकृत ढाँचा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिये:
      • गलत सूचनाओं की पहचान करने के लिये औद्योगिक मानकों का विकास करना।
      • गलत सूचनाओं के पैटर्न की पहचान करने के लिये एनालिटिक्स (Analytics) का उपयोग इत्यादि।
  • डिजिटल समाचार संस्थाओं पर उपयुक्त ज़िम्मेदारियाँ:
    • डिजिटल समाचार संस्थाएँ डिजिटल खबरों के संदर्भ में उन कानूनी कमियों को दूर करती हैं जो ऑनलाइन बातचीत के लिये काफी संवेदनशील हैं।
    • ये संपादकीय ज़िम्मेदारी के लिये एक तंत्र के रूप में स्वैच्छिक पंजीकरण प्रक्रिया और एक संक्षिप्त, सुलभ आचार संहिता के विकास के साथ, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (Press Council of India) को सीमित शक्तियाँ प्रदान करने की सिफारिश करती है।
    • समाचार/खबरों के वितरण में ऑनलाइन प्लेटफार्मों की भूमिका डिजिटल प्लेटफार्मों के पहलूओं पर लक्ष्य आधारित होनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू