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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

संस्थानों का राजस्व बढ़ाने के लिये 'किराए पर एक प्रयोगशाला' नीति

  • 21 Jul 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

सरकार ने एक नई नीति का प्रस्ताव दिया है जिसके माध्यम से सरकारी प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा रेंटल आय उत्पन्न कर उन्हें आकर्षक संपत्तियों में बदला जा सकता है। इसके अंतर्गत शोधकर्त्ताओं के सभी 10 लाख से अधिक कीमत वाले प्रयोगशाला उपकरणों को किराए पर देने की योजना है| इससे ऐसे महँगे उपकरणों को निष्क्रिय होने से बचाने में भी मदद मिलेगी। 

प्रमुख बिंदु 

  • विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी मंत्रालय के मुताबिक साझाकरण, निगरानी तथा पहुँच में आसानी को बढ़ावा देने के लिये, अनुदानित (granting) एजेंसियाँ भविष्य में ऐसे उपकरणों को सूचीबद्ध कर सकती हैं और इंटरनेट पर 10 लाख रुपए से अधिक लागत वाले तथा शोधकर्त्ताओं द्वारा उपयोग किये जाने वाले सभी उपकरणों को वित्तपोषित कर सकती हैं|
  • वैज्ञानिक अनुसंधान इंफ्रास्ट्रक्चर प्रबंधन तथा नेटवर्क (SRIMAN) नामक नीति, "वर्तमान के लिये" रणनीतिक क्षेत्रों पर लागू नहीं होगी। नीति एक महीने के लिये सार्वजनिक टिप्पणियों हेतु खुली है।
  • नीति के औचित्य को समझाते हुए सरकार ने बताया है कि भारतीय प्रयोगशालाओं में ऐसे उपकरण सामान्य रूप से पाए जाते हैं जो महँगे होते हुए भी निरर्थक हैं|
  • ऐसे असंख्य उपकरणों का उपयोग नहीं किया जाता क्योंकि इनके रख-रखाव और स्पेयर की उपलब्धता जैसी समस्याएँ अधिक हैं। ये अनुसंधान के लिये बुनियादी ढाँचा लागत के बोझ को बढाते हैं|
  • नीति के मुताबिक, नई प्रणाली वेबसाइट पर घोषित संस्थानों पर विचार करती है, साथ ही इस बात पर भी विचार करती है कि विभाग या विश्वविद्यालय के बाहर के लोगों द्वारा उपयोग के लिये कितनी बार ये उपकरण उपलब्ध होंगे।
  • जो लोग इन उपकरणों का उपयोग करना चाहते हैं उन्हें शुल्क का भुगतान करना होगा,  उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति डीएनए-अनुक्रमण मशीन का उपयोग करना चाहता है तो उसे  शुल्क का भुगतान करना होगा और उस उद्देश्य तथा समय को निर्दिष्ट करना होगा जिसके लिये वह उक्त उपकरण को लेना चाहता है।
  • वर्तमान में प्रयोगशाला उपकरणों का उपयोग करने के लिये बोली लगाने वाले शोधकर्त्ताओं को बहुत ही महँगे उपकरण, जैसे- रेडियो टेलीस्कोप और कण-त्वरक (particle-accelerators) के लिये अधिक बोली लगाते हुए देखा जा सकता है, जिनकी लागत करोड़ों रुपए होती है।
  • 5-10 लाख रुपए अनुसंधान और अपेक्षित परिणामों के लिये एक निषिद्ध कीमत नहीं है, यह वहनीय है  इसलिये एक शोधकर्त्ता द्वारा इन उपकरणों को किराए पर लेने के लिये कहा जा सकता है|
  • ऐसे कई विश्वविद्यालय या संस्थान हैं जो महँगे उपकरणों को लेने में समर्थ नहीं हैं। इस संबंध में सरकार की योजना उपकरण सुविधाओं का "क्लस्टर" विकसित करना है।
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