ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की उपलब्धता से कम हुई कोयले पर निर्भरता | 14 Feb 2017

सन्दर्भ

ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (The Energy and Resources Institute -TERI) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नवीकरणीय स्रोतों तथा परमाणु और गैस संयंत्र से प्राप्त ऊर्जा अगले 7-8 सालों तक के लिये भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त होगा। अतः भारत को अगले कुछ वर्षो के लिये कोयला आधारित ऊर्जा उपक्रमों में निवेश करने की आवश्यकता नहीं है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान के इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय विद्युत् क्षेत्र में व्यापक बदलाव की सम्भावना है और यह अनुमान है कि प्रति व्यक्ति वार्षिक बिजली की खपत मौजूदा 1,075 किलोवाट से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 1,490 किलोवाट और वर्ष 2026-27 में 2,121 किलोवाट तथा वर्ष 2029-30 में 2,634 किलोवाट हो जाएगी।
  • गौरतलब है कि नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होने की सम्भावना है। देश की अक्षय ऊर्जा क्षमता का वर्ष 2021-22 के लिये लक्षित 175 गीगावॉट के स्तर से बढ़कर वर्ष 2025-26 में 275 गीगावॉट तक हो जाना तय है।
  • उपरोक्त आँकड़ों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अक्षय ऊर्जा के स्रोतों पनबिजली और परमाणु और गैस संयंत्र से प्राप्त ऊर्जा अगले 7-8 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर बिजली की मांग की पूर्ति के लिये पर्याप्त होगी।
  • अतः भारत को अगले कुछ वर्षों तक वर्तमान कोयला सयंत्रों की संख्या में भी वृद्धि करने की आवश्यकता नहीं है।

निष्कर्ष

कोयले पर कम होती निर्भरता जहाँ एक ओर शुभ संकेत है वहीं ऊर्जा उत्पादन पैटर्न में व्यापक बदलाव के अनुरूप ऊर्जा नीतियाँ बनाना भारत के लिये एक चुनौती होगी। वस्तुतः जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही आज की मानव सभ्यता दिनोंदिन संसाधनों में हो रही कमी को महसूस कर रही है, ऐसे में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की भूमिका और भी बढ़ गई है। अतः वर्ष 2022 तक भारत को हरित ऊर्जा का बड़ा केंद्र बनाने के लिये केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों को भी अहम भूमिका निभानी होगी| कल्याणकारी उद्देश्यों और व्यावयसायिक बाध्यताओं के मध्य इष्टतम सामंजस्य स्थापित करना एक चुनौती होगी लेकिन भारत को इस चुनौती से निपटना होगा।