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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में बाधक बनते राज्य

  • 04 Jan 2017
  • 5 min read

सन्दर्भ

पिछले महीने, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने वर्तमान वर्ष और अगले दो वर्षों  के लिये नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्यों का निर्धारण किया है| मंत्रालय वस्तुतः पवन और सौर ऊर्जा क्षमता में और अधिक वृद्धि करना चाहता है, लेकिन इस प्रक्रिया में राज्य मंदक का कार्य कर रहे हैं | गौरतलब है कि  पिछले वर्ष पवन ऊर्जा क्षमता में अब तक की सर्वाधिक 3423 मेगावाट की वृद्धि दर्ज की गई थी, और अगले दो वर्षों में पवन ऊर्जा के लिये क्रमशः 4,600 मेगावाट और 5200 मेगावाट का लक्ष्य रखा गया है| इन लक्ष्यों की प्राप्ति बिना आवश्यक सुधार किये नहीं हो सकती|

नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के संबंध में मुख्य चिंताएँ

  • अब, अगर राज्यों की बात करें तो कहीं विलंबित भुगतान की समस्या है तो कहीं नीतियाँ ही नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के प्रतिकूल हैं| दरअसल, प्रत्येक राज्य की अपनी अलग-अलग समस्याएँ हैं| पवन और सौर ऊर्जा के मुख्यतः दो प्रकार के उत्पादक होते हैं| एक वह जो राज्यों के स्वामित्व वाली विद्युत वितरक कम्पनियों को ऊर्जा प्रदान करते हैं, और दूसरे वे जो स्वयं ही बड़े उपभोक्ताओं को ऊर्जा प्रदान करते हैं|
  • गौरतलब है विद्युत वितरक कंपनियों को ऊर्जा प्रदान करने वाले उत्पादकों की मुख्य समस्याएँ इस प्रकार हैं:

        ■ अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी कीमतें 
        ■ भुगतान में उल्लेखनीय विलम्ब
        ■ वितरक कंपनियों द्वारा विद्युत खरीद को लेकर आनाकानी
  • वितरक कंपनियों को ऊर्जा प्रदाने करने की बजाय जो उत्पादक स्वयं उपभोक्ताओं तक विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं, उनकी भी समस्याएँ कम नहीं है| इन उत्पादकों पर तरह-तरह के शुल्क आरोपित कर दिये जाते हैं, जिनमें सबसे आम शुल्क है- ‘सीएसएस’ (Cross Subsidy Surcharge - CSS)| गौरतलब है सीएसएस वह शुल्क है जो राज्य सरकारें गरीब उपभोक्ताओं को निःशुल्क और कम दरों पर बिजली प्रदान करने हेतु ऊर्जा उत्पादकों पर आरोपित करती हैं| कभी-कभी यह शुल्क इतना अधिक हो जाता है कि उत्पादकों के लिये बिजली उपलब्ध कराना व्यावहारिक नहीं रहा जाता है|
  • बहुत से विद्युत उत्पादक समूहों का मानना है कि भाजपा शासित महाराष्ट्र में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन संबंधी नीतियाँ सर्वाधिक प्रतिकूल हैं, वहीं कांग्रेस शासित कर्नाटक में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का  सबसे बेहतर परिवेश है| महाराष्ट्र में विद्युत क्रय समझौते ( power purchase agreements) पर हस्ताक्षर करना एक महत्त्वपूर्ण समस्या मानी जा रही है क्योंकि तब उपभोक्ता एक ही उत्पादक से बिजली खरीदने को बाध्य हो जाता है| महाराष्ट्र में वैसे उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त शुल्क आरोपित किया जा रहा है जो राज्य के  स्वामित्व वाली वितरक कंपनियों की बजाय स्वतंत्र उत्पादकों से बिजली खरीदते हैं|
  • नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों की एक मुख्य समस्या है- अत्याधिक ट्रांसमिशन चार्ज (हस्तांतरण  शुल्क)| गौरतलब है कि अधिकांश ट्रांसमिशन लाइनें राज्य के स्वामित्व वाली हैं और इन लाइनों के उपयोग के एवज में स्वतंत्र उत्पादकों से जो शुल्क लिया जाता है वह व्यावहारिक नहीं है|

निष्कर्ष

वस्तुतः जलवायु परिवर्तन की मार झेल रही आज की मानव सभ्यता दिनोंदिन संसाधनों में हो रही कमी को महसूस कर रही है, ऐसे में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की भूमिका और भी बढ़ गई है| अतः पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा मिलना चाहिये| यदि वर्ष 2022 तक भारत को हरित ऊर्जा का बड़ा केंद्र बनाना है तो केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्यों को भी अहम भूमिका निभानी होगी| कल्याणकारी उद्देश्यों और व्यावयसायिक बाध्यताओं के मध्य इष्टतम सामंजस्य स्थापित करना होगा|

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