अंतर्राष्ट्रीय संबंध
निजी स्कूलों में फीस बढ़ोतरी का विनियमन : बाधाएँ एवं उपाय
- 15 Mar 2018
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संदर्भ
- निजी स्कूलों की फीस का विनियमन भारतीय नीति निर्माताओं के समक्ष मौजूद प्रमुख विधिक और राजनीतिक चुनौतियों में से एक है।
- ट्यूशन फीस में सालाना रूप से होने वाली बढ़ोतरी के साथ ही परिवहन, सह-शैक्षणिक गतिविधियों, खेलकूद संबंधी गतिविधियों का अतिरिक्त शुल्क शिक्षा की लागतों में बेतहाशा वृद्धि कर रहा है।
क्या है समस्या?
- फीस विनियमन का मुद्दा निजी विद्यालयों को संवैधानिक रूप से प्रदत्त स्वतंत्रताओं के उपभोग और सभी तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को वहनीय कीमत पर उपलब्ध कराने के सरकार के लक्ष्य के बीच दोलायमान है।
- स्कूलों द्वारा यह दावा किया जाता है कि यह फीस वृद्धि तार्किक और उचित है क्योंकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और विश्वस्तरीय अवसंरचना के साथ एक पूर्णतया कार्यात्मक (Functional) निजी स्कूल के संचालन की लागतें काफी अधिक हैं।
- ऐसे में निजी स्कूलों की स्वायत्तता और उनके सार्वजनिक कल्याणकारी कार्य के बीच संतुलन स्थापित करना एक विवादित मुद्दा बन जाता है।
क्या निजी स्कूल मनमाने ढंग से फीस बढ़ा सकते है?
- टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2002) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि जिन निजी शैक्षणिक संस्थानों को सरकार द्वारा अनुदान नहीं दिया जाता उन पर लगाए गए विनियामक उपायों का उद्देश्य उचित शैक्षिक मानकों, वातावरण और बुनियादी ढाँचे के रखरखाव और विद्यालय प्रबंधन के खराब प्रशासन की रोकथाम को सुनिश्चित करना होना चाहिये।
- इसी क्रम में इस्लामिक एकेडमी ऑफ़ एजुकेशन बनाम कर्नाटक राज्य (2003) मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों के पास "अधिशेष" (Surplus) उत्पन्न करने की स्वायत्तता है जिसका उपयोग संस्था के विकास और बेहतरी के लिये किया जाना चाहिये।
- एक तरफ जहाँ निजी विद्यालय शिक्षण सुविधाओं के विकास और संस्था के विस्तार हेतु उचित अधिशेष के हकदार हैं वहीं ऐसे संस्थानों की स्वायत्तता और शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकने के लिये किये गए उपायों के बीच एक संतुलन होना चाहिये।
- हालाँकि ‘अधिशेष’, ‘उचित अधिशेष’ या ‘शिक्षा का व्यावसायीकरण’ जैसे शब्दों को परिभाषित नहीं करने से इनके बारे में ज़्यादा स्पष्टता नहीं है।
फीस विनियमन के लिये राज्यों द्वारा किये गए प्रयास
- निजी स्कूलों को अनुचित रूप से उच्च फीस चार्ज करने से रोकने के लिये और इसके दुरुपयोग को रोकने हेतु कई राज्य सरकारों ने या तो शुल्क विनियमन कानून लागू किये हैं अथवा उन्हें तैयार करने की प्रक्रिया में हैं।
- तमिलनाडु राज्य में फीस फिक्सेशन मॉडल प्रचलित हैं जिसके तहत एक सरकारी समिति को निजी स्कूलों द्वारा प्रस्तावित फीस संरचनाओं को सत्यापित और स्वीकृत करने का अधिकार है।
- कर्नाटक में विद्यालयी शिक्षा कानून के तहत नियमों को तैयार करके स्कूल फीस की अधिकतम सीमा निर्धारित की गई है।
- महाराष्ट्र में फीस को विनियमित करने के लिये लचर तरीके से क्रियान्वित किये जा रहे कानून हैं और स्कूल की फीस की मंज़ूरी के लिये कई सरकारी निकाय हैं।
- हाल ही में महाराष्ट्र सरकार के स्कूलों द्वारा की जाने वाली फीस वृद्धि पर 15% की अधिकतम सीमा के निर्णय की स्कूलों द्वारा काफी आलोचना की गई थी।
- गुजरात उच्च न्यायालय के एक हालिया आदेश में गुजरात सेल्फ फाइनेंस्ड स्कूल्स (फीस का विनियमन) अधिनियम, 2017 की वैधता को कायम रखने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्विचार किया जा रहा है।
- अदालत ने सरकार को तब तक स्कूलों के खिलाफ किसी भी तरह के बाध्यकारी निर्णय को न थोपने का निर्देश दिया है।
इन प्रयासों के अपेक्षित परिणाम न मिलने के कारण
- अब तक ये सारे मॉडल कमज़ोर कार्यान्वयन, क्षमता की कमी और प्राइवेट स्कूल एसोसिएशनों द्वारा लगातार खड़ी की जाने वाली कानूनी चुनौतियों जैसी समस्याओं से प्रभावित हैं।
- इसके अलावा एक बड़ी परेशानी निजी विद्यालयों के संचालन का तरीका है।
- 2010 में नियंत्रक और महालेखाकार (CAG) ने दिल्ली के प्रमुख 25 निजी स्कूलों को मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने पर उनकी कटु आलोचना की थी।
- CAG की रिपोर्ट के मुताबिक इन स्कूलों द्वारा फर्ज़ी मदों के अधीन फ़ीस वसूल करने के साथ ही शिक्षकों को कम भुगतान (Underpaid) किया जाता है और खातों को भी गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था।
- मौजूदा विधायी प्रयासों ने निजी स्कूलों द्वारा अपनाई गई वित्तीय प्रबंधन और लेखा पद्धतियों की गंभीर समस्याओं का एक अधूरा आकलन किया है।
आगे की राह
- राज्यों में लागू होने वाले और चर्चा में रहने वाले इन शुल्क विनियमन कानूनों में भारतीय माता-पिता की समस्याओं का समाधान करने की क्षमता है।
- किंतु निजी स्कूल क्या कर सकते हैं और क्या नहीं? वे कितना ‘अधिशेष’ सृजित कर सकते हैं? ‘व्यावसायीकरण’ का वास्तव में क्या मतलब है जैसे मुद्दों पर अभी भी विधायी और न्यायिक अस्पष्टता है।
- इस कानून को अधिक प्रभावी बनाने के लिये वित्तीय कुप्रबंधन और गलत रिपोर्टिंग की समस्या का समाधान किया जाना अपरिहार्य है।
- मॉडर्न स्कूल बनाम भारत संघ (2004) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निजी स्कूलों के लिये लेखा मानकों की सिफारिश की थी।
- इसके अलावा सरकार के पर्यवेक्षण में नियमित ऑडिट, सरकारी शिक्षा विभागों का क्षमता संवर्द्धन, नियमित निरीक्षण, और फर्ज़ी रिपोर्टिंग के लिये सख्त प्रतिबंध जैसे उपायों पर विचार किया जा सकता है।
- किंतु विधायी और कार्यकारी स्तर पर प्रयासों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।