शरणार्थियों द्वारा अनुच्छेद 35 A के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील | 12 Sep 2017
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिमी पाकिस्तान के कुछ शरणार्थियों (जो विभाजन के दौरान भारत चले आए थे) द्वारा जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों के विशेष अधिकारों और विशेष रियायतों से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 35 A को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है।
मुद्दा क्या है?
- वर्ष 1947 में देश के विभाजन के बाद कथुआ, सांबा और जम्मू ज़िलों (उस समय के पश्चिमी पकिस्तान) में रहने वाले तकरीबन 1.25 लाख लोग अपना घर छोड़ कर भारत चले आए थे।
- पिछले सत्तर सालों से इन शरणार्थियों द्वारा नागरिकता, रोज़गार के अधिकार, मताधिकार तथा राज्य विधानसभा में चुनाव लड़ने के अधिकार की मांग की जा रही है।
- आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक 1947 में 5,764 परिवारों के तकरीबन 47,915 लोग पश्चिम पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर राज्य के तीन ज़िलों में आकर बस गए थे। वर्तमान में इनकी आबादी लगभग 1.25 लाख तक पहुँच गई है।
- ध्यातव्य है कि इन शरणार्थियों को अभी तक राज्य के स्थायी निवासियों के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है, न तो इन्हें विधानसभा चुनावों में वोट देने का अधिकार प्राप्त हैं और न ही ये राज्य सरकार की नौकरी ही प्राप्त कर सकते हैं। यह और बात है कि ये लोग कई पीढ़ियों से इस राज्य के निवासियों के तौर पर रह रहे हैं। हालाँकि इन्हें संसदीय चुनावों में वोट देने का अधिकार प्राप्त है।
अनुच्छेद 35 A क्या है?
- भारतीय संविधान के परिशिष्ट 2 में निहित अनुच्छेद 35 A जम्मू-कश्मीर विधानमंडल को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेष अधिकारों व विशेषाधिकारों को परिभाषित कर सकती है।
- इसे वर्ष 1954 में जम्मू-कश्मीर सरकार की सहमति के साथ राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश से संविधान में जोड़ा गया था।
अनुच्छेद 35 A में निहित प्रावधान कौन-कौन से हैं?
- अनुच्छेद 35 A में निहित प्रावधानों के अनुसार, वर्ष 1911 से पूर्व राज्य में जन्मे या इससे कम से कम 10 वर्ष पूर्व यहाँ कानूनी रूप से अचल संपत्ति के मालिक सभी व्यक्तियों को राज्य के नागरिक के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
- इसके अतिरिक्त वे सभी प्रवासी व्यक्ति जिन्होंने पाकिस्तान में प्रवास कर लिया है वे सभी राज्य का विषय होंगे। इतना ही नहीं इन प्रवासियों की आने वाली दो पीढ़ियों को भी राज्य के विषय के रूप में सूचीबद्ध किया जाएगा।
- स्थायी निवासी कानून के अंतर्गत अस्थायी निवासियों को राज्य में स्थायी बस्तियों का निर्माण करने, अचल संपत्ति खरीदने, सरकारी नौकरी करने और छात्रवृत्ति प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है।
- ऐसा ही प्रावधान जम्मू-कश्मीर की महिलाओं के विरुद्ध भी किया गया है। यदि कोई महिला अस्थायी निवासियों के साथ विवाह करती है तो इस कानून के तहत वह राज्य द्वारा प्रदत्त अधिकारों से वंचित हो जाती है।
- परन्तु, अक्टूबर 2002 में अपने एक निर्णय में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया कि जो महिलाएँ अस्थायी निवासियों से विवाह करती हैं उन्हें उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा। हालाँकि, ऐसी महिला के बच्चों को उक्त संपत्ति के संबंध में उत्तराधिकार प्राप्त नहीं होगा।
इस संबंध में प्रमुख चिंताएँ क्या-क्या हैं?
भारतीय संविधान से अनुच्छेद 35 A को हटाने का प्रयास बहुत सी गंभीर चिंताओं को जन्म देगा। यदि ऐसा किया जाता है तो राज्य के राष्ट्रवादियों को इससे एक बड़ा झटका लगेगा। क्योंकि बहुत से लोगों की राजनीति का मुख्य आधार यह अनुच्छेद ही है। यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को सीमित करता है। इस अनुच्छेद के संबंध में गंभीरता से विचार करने पर ज्ञात होता है कि यह प्रावधान सैद्धांतिक रूप से कितना अप्रासंगिक है तथा यह कितनी मान्यताओं का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 35 A नागरिकों के मौलिक अधिकारों को नगण्य तो करता ही है साथ ही यह नैसर्गिक अधिकारों का भी विरोध करता है। इसको लागू करने की पद्धति भी अलोकतांत्रिक है।