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खाद्य उत्पादन में ज़ूनोसिस के जोखिम को कम करना

  • 15 Apr 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने सरकारों को खाद्य उत्पादन एवं विपणन शृंखलाओं के माध्यम से मनुष्यों में ज़ूनोटिक रोगजनकों के संचरण के जोखिम को कम करने के लिये नए दिशा-निर्देश दिये हैं।

  • इसके परिणामों की भयावहता को देखते हुए कोविड-19 ने इस नए खतरे पर ध्यान आकर्षित किया है।

प्रमुख बिंदु:

ज़ूनोसिस:

  • ज़ूनोसिस एक संक्रामक रोग है जो जानवर से मनुष्यों में संचरित होता है। 
  • ज़ूनोटिक पैथोजंस बैक्टीरिया, वायरल या परजीवी हो सकते हैं।
  • वे सीधे संपर्क या भोजन, पानी और पर्यावरण के माध्यम से मनुष्यों में फैल सकते हैं।

चिंताएँ:

  • पशु विशेष रूप से जंगली जानवर मनुष्यों में संचारित सभी उभरते संक्रामक रोगों के 70% से अधिक का स्रोत होते हैं, जिनमें से कई ‘नोवल वायरस’ के प्रसार का कारण होते हैं।
  • अधिकांश उभरते संक्रामक रोग, जैसे-लासा बुखार, मारबर्ग रक्तस्रावी बुखार, निप्प वायरल संक्रमण और अन्य वायरल रोगों की उत्पत्ति वन्यजीवों से ही होती है।
  • पारंपरिक खाद्य बाज़ारों में जीवित जानवरों, विशेष रूप से जंगली जानवरों तथा उनके मांस की बिक्री की अनुमति देने से गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, इनके संभावित जोखिमों का ठीक से मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है।
    • इस तरह का वातावरण जानवरों से उत्पन्न वायरस के प्रसार के लिये अवसर प्रदान करता है, जिसमें कोरोनावायरस भी शामिल है।

WHO दिशा-निर्देश:

  • पारंपरिक खाद्य बाज़ारों में जीवित तथा मृत जंगली जानवरों की बिक्री को निलंबित करने के लिये आपातकालीन नियम स्थापित करना।
  • जंगली जानवरों से ज़ूनोटिक सूक्ष्मजीवों के संचरण के जोखिमों को नियंत्रित करने के लिये नियमों के माध्यम से जोखिम का आकलन करना और जंगली जानवरों को पकड़ना।
  • यह सुनिश्चित करना कि खाद्य निरीक्षकों को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया गया है कि वे विभिन्न व्यवसाय उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये नियमों का अनुपालन करते हैं और उन्हें इसका जवाबदेह ठहराया जाता है।
  • ज़ूनोटिक रोगजनकों के लिये निगरानी प्रणाली को मज़बूत बनाना।

भारतीय परिदृश्य:

ज़ूनोटिक बीमरियाँ:

  • भारत ऐसे शीर्ष भौगोलिक हॉटस्पॉटों में से एक है, जहाँ ज़ूनोटिक रोग एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसके कारण रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
  • भारत में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य ज़ूनोटिक रोगों में रेबीज़, ब्रुसेलोसिस, टोक्सोप्लाज़मोसिज़, सिस्टीकोर्सिस, इचिनेकोकोसिस, जापानी एन्सेफेलाइटिस (JE), प्लेग, लेप्टोस्पायरोसिस, स्क्रब टाइफस, निपा, ट्रायपैनोसोमियासिस, कैसानूर फारेस्ट रोग (KFD), क्रीमियन कांगो हीमोरेजिक फीवर (CCHF) शामिल हैं।

चुनौतियाँ:

  • बड़ी मानव आबादी और जानवरों के साथ इसके लगातार संपर्क।
  • गरीबी: आजीविका के साधन के रूप में पशु पालन पर निर्भरता में वृद्धि से मानव-पशु संपर्क उन्हें इस श्रेणी की बीमारियों के जोखिम में डालता है
  • जागरूकता में कमी: जनसंख्या का बड़ा हिस्सा बुनियादी स्वच्छता दिनचर्या का पालन करने से अनभिज्ञ है।
  • एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस (AMR): AMR तब होता है, जब कोई सूक्ष्मजीवी जो पहले एंटीबायोटिक से प्रभावित होता है, धीरे-धीरे उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर ले और एंटीबायोटिक उस पर बेअसर हो जाए।
  • उचित टीकाकरण कार्यक्रमों की कमी, शहरों में झुग्गी-बस्तियों की निगरानी में कमी और नैदानिक सुविधाओं की कमी निवारक और एहतियाती दृष्टिकोण को और अधिक कठिन बना देती है।

उठाए गए कदम:

  • राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र के तहत निम्नलिखित कार्यक्रम शुरू किये गए हैं:
    • एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP)।
    • नेशनल प्रोग्राम फॉर कंटेनमेंट एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस।
    • राष्ट्रीय वायरल हेपेटाइटिस निगरानी कार्यक्रम।
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्त्व के ज़ूनोटिक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को मज़बूत करना।
    • राष्ट्रीय रेबीज़ नियंत्रण कार्यक्रम।
    • लेप्टोस्पायरोसिस की रोकथाम और नियंत्रण के लिये कार्यक्रम।
    • इसके अलावा विशेषज्ञों ने देश में एक स्वास्थ्य ढाँचे की आवश्यकता को रेखांकित किया है। 

स्रोत-डाउन टू अर्थ

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