भारतीय अर्थव्यवस्था
वस्त्र उद्योग के लिये सिफारिशें
- 30 May 2019
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चर्चा में क्यों?
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Ministry of commerce and industry) द्वारा गठित एक उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समिति (High-Level Expert Panel) ने वस्त्र क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिये सिफारिशें प्रस्तुत की है। समिति द्वारा की गई कुछ प्रमुख सिफारिशों में शामिल हैं:
- बांग्लादेश जैसे देशों जिनसे भारतीय बाज़ारों तक पहुँच के लिये कोई शुल्क नहीं वसूला जाता है, के साथ मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा।
- मौजूदा पुरातन श्रम कानूनों में संशोधन।
- प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये सब्सिडी का तत्काल वितरण।
वस्त्र उद्योग
कपड़ा और परिधान उद्योग आम तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- यार्न एवं फाइबर, और प्रसंस्कृत वस्त्र एवं परिधान।
रोज़गार सृजन: कपड़ा और वस्त्र उद्योग श्रम गहन क्षेत्र है जो रोज़गार सृजन के मामले में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर आता है। यह क्षेत्र भारत के 45 मिलियन लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराता है।
परंपरा और संस्कृति: भारतीय वस्त्र उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है, यह न केवल लाखों परिवारों को आजीविका प्रदान करता है बल्कि पारंपरिक कौशल, विरासत और संस्कृति का भंडार एवं वाहक भी है।
वस्त्र उद्योग को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
असंगठित क्षेत्र: असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने पर विद्यमान है और इसमें पारंपरिक उपकरणों एवं विधियों का उपयोग किया जाता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प और रेशम कीट पालन/सेरीकल्चर (sericulture) शामिल हैं।
संगठित क्षेत्र: संगठित क्षेत्र में आधुनिक मशीनरी तथा तकनीकों का उपयोग किया जाता है एवं इसमें कताई, परिधान और पोशाक निर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
अर्थव्यवस्था में योगदान: भारत ब्रांड और इक्विटी फाउंडेशन (India brand and equity foundation-IBEF) के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे बड़े वस्त्र और कपड़ा उत्पादकों में से एक है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में घरेलू कपड़ा और परिधान उद्योग की हिस्सेदारी 2% है। इसके अलावा यह क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन में 14%, देश के विदेशी मुद्रा अंतर्प्रवाह में 27% और देश की निर्यात आय में 13% का योगदान देता है।
वस्त्र उद्योग से संबंधित समस्याएँ
पुरातन श्रम कानून: इसके तहत विवाद का प्रमुख कारण यह कानून है कि 100 या अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाली किसी भी फर्म को उन्हें किसी भी प्रकार की नौकरी से निकालने या छंटनी करने से पहले, श्रम विभाग से अनुमति लेनी होगी।
- लोगों को काम पर रखने और काम से निकालने की प्रक्रिया में लचीलापन लाने के लिये औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 जैसे श्रम कानूनों में संशोधन किया जाना चाहिये।
- ऐसी फर्मों के आकार का परिसीमन किया जाना चाहिये जिनके लिये रोज़गार को समाप्त करने से पहले श्रम विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है और सभी फर्मों की दक्षता को प्रोत्साहित करने के मामले में निर्णय लेने की छूट दी जानी चाहिये।
मुक्त व्यापार समझौते: दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (South Asia Free Trade Agreement-SAFTA) जैसे कुछ प्रमुख मुक्त व्यापार समझौतों ने बांग्लादेश जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सहायता की है, जिन्हें भारतीय बाज़ार तक पहुँच के लिये शून्य शुल्क देना होता है। सरकार को इस तरह के समझौते पर फिर से विचार करना चाहिये और समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिये।
हाल के सुधारों का प्रभाव: वर्तमान में यह क्षेत्र स्थिर निर्यात, विमुद्रीकरण, बैंक पुनर्गठन और वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) के कार्यान्वयन के दौर से गुजर रहा है। भारत, जो वर्ष 2014 से 2017 के बीच चीन के बाद वस्त्र एवं कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक था; जर्मनी, बांग्लादेश और वियतनाम के साथ अपने स्थान में गिरावट के साथ पाँचवें स्थान पर पहुँच गया।
सब्सिडी के वितरण में देरी: उद्योग संचालन को आधुनिक बनाने में मदद करने के लिये प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Technology Upgradation Fund Scheme-TUFS) के तहत सब्सिडी के वितरण में तेज़ी लानी चाहिये।
प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Technology Upgradation Fund Scheme-TUFS)
- सरकार ने वस्त्र और जूट उद्योग के उन्नयन के लिये 1 जनवरी, 1999 को 5 साल की अवधि के लिये प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (TUFS) की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत किसानों को ब्याज वापसी प्रतिपूर्ति/मूलधन में रियायत की सुविधा दी जानी थी।
- TUFS के तहत एक क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल इनवेस्टमेंट सब्सिडी प्रदान की जाती है।
- यह योजना वास्तव में उधार देने वाली एजेंसियों द्वारा कपड़ा जूट उद्योग के आधुनिकीकरण में निवेश की सुविधा के लिये ब्याज से 5% की प्रतिपूर्ति प्रदान करती है। यह योजना नोडल एजेंसियों IDBI, SIDBI, IFCI और प्रमुख राष्ट्रीय बैंकों के माध्यम से संचालित की जा रही है।
दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA)
- दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (South Asian Free Trade Area-SAFTA) उन सात दक्षिण एशियाई देशों के बीच एक समझौता है जिन्होंने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) का गठन किया है। (अर्थात् यह बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के बीच एक समझौता है।)
- SAFTA ने पूर्व के दक्षिण एशिया अधिमान्य व्यापार समझौते (SAARC Preferential Trading Arrangement-SAPTA) का स्थान लिया है। इसका उद्देश्य SAARC सदस्यों के बीच अंतर्राज्यीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये शुल्कों को कम करना है।