पूर्वोत्तर भारत की विविधता को पहचान | 03 Oct 2023
प्रिलिम्स के लिये:उत्तर पूर्व भारत, इंडो-चीनी मंगोलॉयड नस्लीय समूह, स्वदेशी समुदाय, सामाजिक सामंजस्य। मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर भारत की विविधता को पहचान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
पूर्वोत्तर क्षेत्र, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा राज्य शामिल हैं, कई जातीय समुदायों का घर है, जो "विविध क्षेत्रों" से पलायन कर चुके हैं, जिनमें से अधिकांश इंडो चाइनीज़ मंगोलॉइड नस्लीय समुदाय से संबंधित हैं।
उत्तर-पूर्व की जातीय संरचना:
- जातीय संरचना:
- यह क्षेत्र कई जातीय समुदायों का निवास स्थान है, जो मुख्य रूप से इंडो-चीनी मंगोलॉयड नस्लीय समूह से संबंधित हैं।
- पूर्वोत्तर भारत अपनी विविध आबादी के लिये जाना जाता है, जो 200 से अधिक विभिन्न जातीय समूहों से बना है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी अलग संस्कृति और परंपराएँ हैं।
- इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख जातीय समूहों में असमिया, बोडो, नागा, मिज़ो, खासी, गारो और अरुणाचली शामिल हैं।
राज्य |
जातीय समूह |
अरुणाचल प्रदेश |
आदिस, न्यीशी, अपातानी, टैगिन, मिस्मी, खाम्प्ती, वांचो, तांग्शा, मोनपा, आदि। |
असम |
बर्मन, बोडोस (बोडोकाचारिस), देवरी, होजाई, सोनोवाल कछारी, मिरी (मिसिंग), दिमासा, हाजोंग, आदि। |
मेघालय |
खासी, गारो, जयंतिया |
मणिपुर |
मैती, नागा, कुकी और चिन, मैती पंगल (मैती-मुसलमान) आदि। |
मिज़ोरम |
लुशी, राल्ते, हमार, पाइते, पाविस (पहले लाइस के नाम से जाना जाता था), आदि। |
नागालैंड |
अंगामी, एओ, चांग, चिरू, फोम, रेंगमा, संगतम, सेमा, ज़ेलियांग, आदि। |
त्रिपुरा |
त्रिपुरी, रियांग, चकमा, हलम, गारो, लुसी, डारलॉन्ग, आदि। |
सिक्किम |
नेपाली, भूटिया, लेप्चा आदि। |
- यह क्षेत्र कई स्वदेशी/मूल निवासी समुदायों का भी गढ़ है जो भारत के अन्य हिस्सों में तेज़ी से हो रहे आधुनिकीकरण के बावजूद, अपने जीवनशैली को संरक्षित करने में कामयाब रहे हैं।
- इन समुदायों में अरुणाचल प्रदेश के अपातानी लोग, जो कृषि का एक अनूठा रूप अपनाते हैं जिसमें सीढ़ीदार खेतों में चावल की खेती करना शामिल है तथा मेघालय के मातृसत्तात्मक समाज के खासी लोग शामिल हैं, जहाँ महिलाओं को संपत्ति विरासत में मिलती है और निर्णय लेने में उनकी मुख्य भूमिका होती है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र की एकरूपता को अस्वीकार करने की आवश्यकता:
- पूर्वोत्तर को एक ही श्रेणी में रखने की प्रवृत्ति एक भ्रांति है जो इसके समाज के जटिल ताने-बाने को नज़रअंदाज करती है।
- इस प्रकार दृष्टिकोण न केवल इस क्षेत्र की वास्तविकता को सामान्यीकृत करता है बल्कि गलतफहमियों को भी बढ़ावा देता है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के प्रत्येक राज्य की एक विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत, भाषा और ऐतिहासिक कथा है।
- इस क्षेत्र की एकरूपता को अस्वीकार करने के पश्चात ही कोई व्यक्ति प्रत्येक राज्य और समुदाय की अनूठी विशेषताओं को समझ सकता है तथा इस विविधता से उत्पन्न समृद्धि की सराहना कर सकता है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र की विविधता के संरक्षण का महत्त्व:
- सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता इसके विभिन्न समुदायों की ऐतिहासिकताओं और प्रथाओं का जीवंत प्रमाण है।
- असम के त्योहारों से लेकर सिक्किम की प्राचीन परंपराओं तक, प्रत्येक संस्कृति जीवन, मूल्यों और मान्यताओं का एक अनूठा दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। इस विविधता को संरक्षित करना भविष्य की पीढ़ियों के लिये इन सांस्कृतिक विरासतों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- भाषाई अस्मिता:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में अनेकों भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक भाषा वहाँ के लोगों के सूक्ष्म संस्कृति को दर्शाती है।
- इस भाषाई विविधता की पहचान करते हुए इन भाषाओं और इन्हें बोलने वाले समुदायों की विशिष्टता को सम्मानित किया जा सकता है।
- सामाजिक एकता:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के भीतर विविधता को स्वीकार करने से सामाजिक एकता और समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।
- यह विभिन्नताओं के बीच एकता की भावना को प्रोत्साहित करता है, जिससे अधिक सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व संभव हो पाता है। विभिन्न समुदायों की विशिष्ट पृष्ठभूमियों और अनुभवों को समझने एवं उनकी सराहना करने से सामाजिक एकीकरण को बढ़ाया जाता है, जो एक मज़बूत, एकजुट राष्ट्र में योगदान देता है।
- विकास के लिये अनुकूलित नीतियाँ:
- एक आकार-सभी के लिये फिट दृष्टिकोण अप्रभावी और अनुचित है, जो क्षेत्र की प्रगति में बाधा डालता है।
- अद्वितीय सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों पर विचार करने वाली नीतियाँ सतत् विकास एवं प्रगति को बढ़ावा दे सकती हैं।
नोट: पूर्वोत्तर राज्यों के लिये वर्णनात्मक उपनाम:
- अरुणाचल प्रदेश: डाॅन लिट् माउंटेन्स
- असम: गेटवे टू नार्थ ईस्ट
- मणिपुर: जेव्ल ऑफ इंडिया
- मेघालय: अबोड ऑफ क्लाउड्स
- मिज़ोरम: लैंड ऑफ ब्लू माउंटेन्स
- नगालैंड: लैंड ऑफ फेस्टिवल
- सिक्किम: हिमालयन पैराडाइस
- त्रिपुरा: लैंड ऑफ डाइवर्सिटी
निष्कर्ष:
- इस उल्लेखनीय विविधता को सही मायने में समझने तथा सराहने के लिये एक एकल पूर्वोत्तर पहचान को अस्वीकार करना और उस विविधता को अपनाना ज़रूरी है जो इस क्षेत्र को परिभाषित करती है।
- ऐसा करके ही हम समावेशी नीतियाँ बना सकते हैं, अद्वितीय सांस्कृतिक विरासतों का उत्सव मना सकते हैं और सामाजिक एकता को बढ़ावा देकर एक अधिक सामंजस्यपूर्ण एवं समृद्ध समाज का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न.निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013) जनजाति राज्य
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (A) |