लिंग पहचान के रहस्यों से पर्दा हटाने के लिये एक शोध | 04 Aug 2017

संदर्भ 
एक तरफ जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राज्य अमेरिका में रूढ़िवादी और उदारवादी मूल्यों के बीच संघर्ष में ट्रांजेन्डर लोगों के वापसी पर बल दिया है, तो वहीं दूसरी ओर, आनुवंशिकीविद् लिंग पहचान के रहस्यों से पर्दा हटाने के लिये एक प्रमुख अनुसंधान पर चुपचाप काम कार्य कर रहे हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाँच शोध संस्थानों का एक संघ, व्यक्ति के जीनोम (डीएनए की एक पूरी सेट) की जाँच कर उस सुराग की तलाश कर रहा है, जिससे यह पता चल सके कि ट्रांसजेंडर लोग ऐसे क्यों पैदा होते हैं।
  • दो दशकों के मस्तिष्क अनुसंधान ने एक जैविक उत्पत्ति का संकेत दिया है, जो ट्रांसजेंडर है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अब तक का सबसे बड़ा शोध है। 

ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल 2016

  • केंद्रीय कैबिनेट ने 19 जुलाई 2016 को ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल 2016 को मंज़ूरी दी थी। 
  • इस बिल के माध्यम से भारत सरकार की कोशिश एक ऐसी व्यवस्था लागू करने की है, जिससे किन्नरों को भी सामाजिक जीवन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में आज़ादी से जीने का अधिकार मिल सके। 
  • यह उम्मीद की जा रही है कि यह विधेयक भारतीय किन्नरों के लिये मददगार साबित होगा। 
  • भारत में ऐसे लोगों को सामाजिक कलंक के तौर पर देखा जाता है। इनके लिये  काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है। यह विधेयक भी इसी दिशा में एक प्रयास है।
  • यह भी उम्मीद की जा रही है कि किन्नरों के साथ अपमानजनक और भेदभाव वाले व्यवहार में कमी लाने में यह विधेयक कामयाब होगा। 
  • इस विधेयक के माध्यम से किन्नरों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, जिसके लिये वे लंबे समय से प्रयत्नशील हैं।
  • ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल, 2016 के पास होने से किन्नर भी अपने आपको इस समाज का एक अंग महसूस कर सकेंगे। 

सामाजिक तौर पर बहिष्कृत

  • भारत में किन्नरों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत ही कर दिया जाता है। 
  • इसका मुख्य कारण उन्हें न तो पुरुषों में रखा जा सकता है और न ही महिलाओं में, जो लैंगिक आधार पर विभाजन की पुरातन व्यवस्था का अंग है।
  • इसका नतीज़ा यह है कि वे शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं। बेरोज़गार ही रहते हैं। सामान्य लोगों के लिये उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का लाभ तक नहीं उठा पाते हैं। 
  •  इसके अलावा वे अनेक सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं।