अयोध्या विवाद में नया मोड़ | 09 Aug 2017
चर्चा में क्यों
- शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अयोध्या में विवादित स्थल से कुछ दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है।
- उल्लेखनीय है कि शिया वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की सुनवाई में हिस्सा नहीं लिया था और अब सात सालों बाद शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि विवादित ज़मीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को नहीं, बल्कि शिया वक्फ बोर्ड को मिलना चाहिये।
- हलफनामे के मुताबिक बाबरी मस्जिद एक शिया मस्जिद थी, जिस पर सुन्नियों ने कब्ज़ा कर लिया था। हलफनामे में लिखा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड में कट्टरपंथी लोग हावी हैं और इन परिस्थितियों में कोई व्यावहारिक फैसला लेना संभव नहीं होगा।
शिया वक्फ बोर्ड के हलफनामे में क्या ?
- शिया सेंट्रल बोर्ड ऑफ उत्तर प्रदेश यानी शिया वक्फ बोर्ड ने अपने हलफनामे में बाबरी मस्जिद को स्वयं की सम्पति बताया है।
- शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को विवाद के हल के लिये एक फॉर्मूला भी सुझाया है, जिसमें कहा गया है कि विवादित जगह से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में एक मस्जिद बनाई जा सकती है।
- बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से अपील में कहा कि इस बड़े विवाद के हल के लिये वो एक समिति बनाना चाहता है और इसके लिये उसे वक्त दिया जाए।
- विदित हो कि अयोध्या मामले की सुनवाई के लिये सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की एक बेंच बनाई थी, जो जल्द ही इस मामले में सुनवाई आरम्भ करने वाली है।
शिया वक्फ बोर्ड के तर्क क्या हैं ?
- शिया वक्फ बोर्ड का कहना है कि अयोध्या स्थित विवादित ढाँचे पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा गलत है। यह मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी और वह एक शिया मुसलमान था। मस्जिद बनने के बाद से जितने भी मुतवल्ली रहे हैं, सब शिया बोर्ड से ही रहे हैं।
- ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए बोर्ड ने कहा है कि बाबर पर लिखी गई किताब ‘बाबरनामा’ के अनुसार बाबर तो कभी अयोध्या गया ही नहीं था। ऐसे में इस मस्जिद पर शियाओं का हक है और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को एक पक्ष बनाना गलत है।
क्या है विवाद
- राम मंदिर मुद्दा 1989 के बाद अपने उफान पर था। इस मुद्दे की वज़ह से तब देश में सांप्रदायिक तनाव फैला था। देश की राजनीति इस मुद्दे से प्रभावित होती रही है।
- हिंदू संगठनों का दावा है कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर विवादित बाबरी ढाँचा बना था।
- राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी ढाँचा गिरा दिया गया था। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला ?
- 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल, एस. यू. खान और डी. वी. शर्मा की बेंच ने मंदिर मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बाँटने का आदेश दिया था।
- बेंच ने तय किया था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला न्यास को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।
कौन हैं 3 पक्ष ?
- निर्मोही अखाड़ा: विवादित ज़मीन का एक-तिहाई हिस्सा यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह।
- रामलला न्यास: एक-तिहाई हिस्सा यानी रामलला की मूर्ति वाली जगह।
- सुन्नी वक्फ बोर्ड: विवादित ज़मीन का बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा।
सुप्रीम कोर्ट में मामला क्यों पहुँचा ?
- हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अयोध्या की विवादित ज़मीन पर दावा जताते हुए रामलला विराजमान की तरफ से हिन्दू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
- दूसरी तरफ, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद कई और पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कर दीं।
- इन सभी याचिकाओं पर पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई, 2011 को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। तब से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।