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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आरसीईपी व्यापार संधि भारत के लिये विनाशकारी हो सकती है : नीति आयोग

  • 26 Apr 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में भारत के शामिल होने पर नकारात्मक परिणामों की ओर संकेत दिया है और यह भी कहा है कि भारत को इसमें शामिल होने पर पुनर्विचार की आवश्यकता है क्योंकि चीन इसमें मुख्य खिलाडी की भूमिका में है, अतः भारत का हित इससे बाधित होगा।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) क्या है?

  • यह एक मेगा मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है। इसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 16 देश शामिल हैं। इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना है।
  • इसमें शामिल कुल 16  देशों में आसियान के 10 सदस्य देश तथा 6 अन्य देश ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड हैं।
  • सदस्य देश : ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम। 
  • इनके अलावा, ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड सहभागी (Partner) देश हैं।
  • वस्तुतः आरईसीपी वार्ता की औपचारिक शुरुआत 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में शुरू हो गई थी।
  • आरईसीपी को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • आरसीईपी में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 25%, वैश्विक व्यापार का 30%, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का 26% (एफडीआई) तथा कुल आबादी का 45% निवेशित है।

विरोध के प्रमुख मुद्दे

  • नीति आयोग का कहना है कि व्यापार समझौते  का आशय द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना है ताकि दोनों पक्ष समान रूप से लाभान्वित हों।
  • एशिया प्रशांत क्षेत्र के बाज़ारों में भारत-चीन के इस सहयोग का प्रमुख परिणाम संभवतः अधिकांश क्षेत्रों में चीन की क्षमता में वृद्धि से आयात की बढ़ोतरी के रूप में हो सकती है।
  • एक और प्रमुख मुद्दा चीनी बाज़ारों में भारतीय निर्यात की बहुत सीमित पँहुच है, जिसके कारण भारत को व्यापक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
  • ध्यातव्य  है कि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसकी कुल व्यापार में लगभग 10% की हिस्सेदारी है।
  • वित्त वर्ष 2012 में भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार सिर्फ 1.8 अरब डॉलर था जो बढ़कर वित्त वर्ष 2014 में 72 अरब डॉलर हो गया।
  • चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 52 अरब डॉलर है, जो कुल व्यापार घाटे का लगभग आधा हिस्सा है।

आगे की  राह 

  • कोरिया और जापान के साथ भारत का पहले से ही द्विपक्षीय एफटीए है और ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ द्विपक्षीय एफटीए की बातचीत भी चल रही है अतः इन देशों के साथ अपने संबंध को मज़बूत बनाने की आवश्यकता है।
  • साथ ही, आरसीईपी समझौते के साथ आगे बढ़ते समय हमें भूगर्भीय मुद्दों को भी ध्यान में रखना चाहिये क्योंकि इसका परिणाम संपूर्ण एशिया-प्रशांत क्षेत्र का बाज़ार अपने विरोधी चीन को सौंपने के रूप में सामने आ सकता है।
  • इसके अलावा भारत को कुछ नवीन कदमों की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है जैसे- सेवाओं के उदारीकरण पर बल देना, जिसमें अल्पकालिक कार्य के लिये पेशेवरों के आने-जाने के नियमों को आसान बनाना शामिल है।
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