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मौद्रिक नीति की द्विमासिक समीक्षा : रिज़र्व बैंक ने चार साल में पहली बार की रेपो दर में वृद्धि

  • 07 Jun 2018
  • 8 min read

संदर्भ

रिज़र्व बैंक ने महँगाई बढऩे की चिंता के चलते मुख्य नीतिगत दर रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि कर इसे 6.25 प्रतिशत कर दिया जिससे बैंक कर्ज़ महँगा हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पिछले कुछ महीनों के दौरान कच्चे तेल के दाम बढऩे से महँगाई को लेकर चिंता बढ़ी है। रिज़र्व बैंक ने पिछले चार साल में पहली बार रेपो दर में वृद्धि की है।

प्रमुख बिंदु

  • मौद्रिक नीति समिति के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में तेज़ी से बढ़कर 4.6 प्रतिशत पर पहुंच गई। इस दौरान खाद्य तथा ईंधन को छोड़कर अन्य समूहों में तीव्र वृद्धि का इसमें अधिक योगदान रहा।
  • नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि कर इसे 6.25 प्रतिशत कर दिया गया है जिससे बैंक कर्ज़ महँगा हो सकता है।
  • रिवर्स रेपो दर 6 प्रतिशत तथा बैंक दर 6.50 प्रतिशत है। 
  • जनवरी 2014 के बाद पहली बार रेपो दर में वृद्धि की गई है। 
  • समीक्षा में चालू वित्त वर्ष के लिये आर्थिक विकास दर का अनुमान 7.4 प्रतिशत पर पूर्ववत बनाए रखा गया है।
  • चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के लिये खुदरा मुद्रास्फीति अनुमान को बढ़ाकर 4.8-4.9 प्रतिशत कर दिया गया है, जबकि वर्ष की दूसरी छमाही के लिये इसे 4.7 प्रतिशत रखा गया है। 
  • रिज़र्व बैंक के मुद्रास्फीति के इस अनुमान में केंद्र सरकार के कर्मचारियों को मिलने वाले बढ़े महँगाई भत्ते का असर भी शामिल है।
  • पिछले दो माह में कच्चे तेल की कीमतों में 12 प्रतिशत की तेज़ी आई है।
  • भू-राजनीतिक जोखिम, वित्तीय बाज़ार में उतार-चढ़ाव, व्यापार संरक्षणवाद का घरेलू वृद्धि पर प्रभाव पड़ेगा। 

मौद्रिक नीति समिति

मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति है जिसका गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम में संशोधन करते हुए भारत में नीति निर्माण को नवगठित मौद्रिक नीति समिति (MPC) को सौंप दिया गया है।

  • वित्त अधिनियम 2016 के द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम 1934 (आरबीआई अधिनियम) में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके। 
  • आरबीआई एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य आरबीआई से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक करता है। 
  • रिज़र्व बैंक के गवर्नर इस समिति के पदेन अध्यक्ष हैं, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के तौर पर काम करते हैं। 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (consumer price index या CPI) घरेलू उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई वस्तुओं एवं सेवाओं (goods and services) के औसत मूल्य को मापने वाला एक सूचकांक है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की गणना वस्तुओं एवं सेवाओं के एक मानक समूह के औसत मूल्य की गणना करके की जाती है।
  • वस्तुओं एवं सेवाओं का यह मानक समूह एक औसत शहरी उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाली वस्तुओं का समूह होता है।

रेपो दर 

जैसा कि हम जानते हैं बैंकों को अपने काम-काज़ के लिये अक्सर बड़ी रकम की ज़रूरत होती है। बैंक इसके लिये आरबीआई से अल्पकाल के लिये कर्ज़ मांगते हैं और इस कर्ज़ पर रिज़र्व बैंक को उन्हें जिस दर से ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो दर कहते हैं। रेपो दर अधिक होने से मतलब है कि बैंक से मिलने वाले कई तरह के कर्ज़ महँगे हो जाएँगे. जैसे कि होम लोन, वाहन लोन इत्यादि।

रिवर्स रेपो दर 

यह रेपो दर के विपरीत होती है। यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो दर बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।

मुद्रास्फीति

  • जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं।
  • अत्यधिक मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक होती है, जबकि 2 से 3% की मुद्रास्फीति की दर अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होती है।
  • मुद्रास्फीति मुख्यतः दो कारणों से होती है-  मांग कारक और मूल्य वृद्धि कारक से।
  • मुद्रास्फीति के कारण अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में मंदी आ जाती है।
  • मुद्रास्फीति का मापन तीन प्रकार से किया जाता है- थोक मूल्य सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक एवं राष्ट्रीय आय विचलन विधि से।

रेपो दर और मुद्रास्फीति में संबंध 

  • रेपो दर कम होने से बैंकों के लिये रिज़र्व बैंक से कर्ज़ लेना सस्ता हो जाता है और तभी बैंक ब्याज दरों में भी कटौती करते हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा रकम कर्ज़ के तौर पर दी जा सके। रेपो दर में वृद्धि होने पर सभी प्रकार के क़र्ज़ महँगे हो जाते हैं। 
  • मुद्रास्फीति बढ़ने का एक मतलब यह भी है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि के कारण, बढ़ी हुई क्रय शक्ति के बावजूद लोग पहले की तुलना में वर्तमान में कम वस्तु एवं सेवाओं का उपभोग कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में आरबीआई का कार्य यह है कि वह बढ़ती हुई मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने के लिये बाज़ार से पैसे को अपनी तरफ खींच ले। अतः आरबीआई रेपो दर में बढ़ोतरी कर देता है ताकि बैंकों के लिये कर्ज़ लेना महँगा हो जाए और वे अपने बैंक दरों को बढ़ा दें तथा लोग कर्ज़ न ले सकें। 

निष्कर्ष

जीडीपी में शानदार वृद्धि, खुदरा महँगाई दर का निचले स्तर पर होना, मजबूत GST संग्रह और सकारात्मक निवेशक विचारों के साथ मौद्रिक नीति इस बात की पुष्टि करती है कि आर्थिक गतिविधियों में उछाल आ रहा है।

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