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भारतीय अर्थव्यवस्था

रिज़र्व बैंक के NBFCs के लिये नए तरलता निर्देश

  • 05 Nov 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये :

NBFC, HQLA,

मेन्स के लिये :

भारतीय अर्थव्यवस्था में नॉन- बैंकिंग फाइनेंसियल कम्पनीज का योगदान और सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रिज़र्व बैंक ने नॉन- बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनियों (Non Banking Financial Companies) पर प्रभावी संपत्ति देयता प्रबंधन (Asset Liability Management) के मानकों को सुदृढ़ करने के लिये तरलता जोखिम प्रबंधन (Liquidity Risk Management) पर मौजूद दिशा-निर्देशों को संशोधित किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने तरलता अंतर के संदर्भ में नकारात्मक संपत्ति देयताओं (Negative Assets liabilities) की एक विशेष सीमा निर्धारित की है, साथ ही साथ तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio- LCR) बनाए रखने का निर्देश दिया है।
  • संरचनात्मक तरलता (Structural Liquidity) को बनाए रखने के लिये देनदारियों हेतु 1 से 30 दिन के समय अंतराल (Time Bucket) को,1 से 7 दिन, 8 से 14 दिन और 15 से 30 दिन के समय अंतराल में बाँट दिया गया है।
  • नए नियम के अनुसार उपर्युक्त समय अंतराल में शुद्ध संचयी अंतर (Net Commulative Mismatch) 1 से 7 दिन के समय अंतराल के लिये 10%, 8 से 14 दिन के लिये 10% और 15 से 30 दिन के समय अंतराल के लिये संचयी नकद बहिर्प्रवाह (Commulative Cash Outflow) के 20% से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • इन अवधियों के पीछे मूल विचार यह है कि लघु अवधि में बैंक में नकद का बहिर्प्रवाह (Outflow), नकद के अंतर्प्रवाह (Inflow) से अधिक नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिये पहले समय अंतराल में नकद बहिर्प्रवाह अपेक्षित अंतर्प्रवाह के 10% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, NBFCs को एक तरलता बफर, तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio) के रूप में बनाये रखना चाहिए, जिससे आवश्यकता पड़ने पर या जोखिम के समय ये सुनिश्चित किया जा सके कि बैंक के पास अगले 30 दिनों के लिये उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (High Quality Liquidity Asset-HQLA) है ।
  • NBFCs के लिये 1 दिसंबर 2020 से LCR का 50% HQLA के रूप में और 1 दिसम्बर 2024 से इसे 100% बनाए रखने का प्रावधान है।
  • LCR का प्रमुख उद्देश्य तरलता जोखिम (Liquidity Risk) की स्थिति से निपटने के लिये बैंकों के पास उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों का होना सुनिश्चित करना है।
  • इन प्रावधानों के अंतर्गत ऐसी नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनीज आती हैं जिनका संपत्ति आकार 100 करोड़ रुपए से अधिक हो।
  • टाइप I - NBFC-ND (Non Deposit Taking) इकाइयाँ LCR मानदंडों के अंतर्गत नहीं आती हैं।
  • टाइप I - एनबीएफसी-एनडी इकाइयाँ वे इकाइयाँ होती हैं जो सार्वजनिक जमाओं को स्वीकार नहीं करतीं।

संपत्ति देयता प्रबंधन-

संपत्ति देयता प्रबंधन के अंतर्गत बैंकों द्वारा तरलता या ब्याज दरों में परिवर्तन के कारण संपत्ति और दायित्वों के बीच अंतर से उत्पन्न जोखिम का पता चलता है।

उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति

(High Quality Liquidity Asset-HQLA)

  • उन संपत्तियों को उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति माना जाता है जो आसानी से और संपत्ति के मूल्य में अपेक्षाकृत कम या बिना किसी ह्रास के नकदी में परिवर्तित हो सकती हैं।
  • इसके अंतर्गत नकद, सरकारी प्रतिभूतियां और विदेशी वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रतिभूतियाँ शामिल हैं। ये संपत्तियाँ किसी भी वित्तीय देयता से मुक्त होनी चाहिये।

स्रोत-द हिंदू

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