इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

मुद्रा और वित्त पर आरबीआई की रिपोर्ट

  • 30 Apr 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रा और वित्त पर आरबीआई की रिपोर्ट, कोविड-19 महामारी, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य, मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ता, भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार, मौद्रिक नीति, वृद्धि और विकास

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मुद्रा और वित्त (RCF) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था को कोविड -19 महामारी के प्रकोप से होने वाले नुकसान से उबरने में एक दशक से अधिक समय लग सकता है।

  •  रिपोर्ट का विषय “रिवाइव और रिकंस्ट्रक्ट” है, जो कोविड से मज़बूती से उबरने और मध्यम अवधि में वृद्धि को बढ़ाने के संदर्भ में है

रिपोर्ट में उजागर चिंता:

  • कोविड-19, सबसे खराब स्वास्थ्य संकट: कोविड-19 महामारी को दुनिया के इतिहास में अब तक के सबसे खराब स्वास्थ्य संकटों में से एक के रूप में माना गया है।
  • आकड़ों में वृद्धि: पूर्व-कोविड विकास की प्रवृत्ति दर 6.6% और मंदी के वर्षों को छोड़कर यह 7.1% तक रही है।.  
    • वर्ष 2020-21 के लिये (-) 6.6% की वास्तविक वृद्धि दर के साथ वर्ष 2021-22 के लिये 8.9% तथा वर्ष 2022-23 के लिये 7.2% की विकास दर को आगे बढ़ाते हुए  7.5% के साथ भारत द्वारा वर्ष 2034-35 में कोविड-19 के नुकसान को दूर करने की उम्मीद है।
  • महामारी की आर्थिक चुनौतियांँ: इसका आर्थिक प्रभाव कई और वर्षों तक बना रह सकता है और भारतीय अर्थव्यवस्था को आजीविका के पुनर्निर्माण, व्यवसायों की सुरक्षा तथा अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।  
    • महामारी द्वारा भारत के उत्पादन, जीवन और आजीविका के मामले में विश्व में सबसे सबसे अधिक नुकसान हुआ है जिसे ठीक होने में कई साल लग सकते हैं। 
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष: रूस-यूक्रेन संघर्ष ने भी सुधार की गति को कम कर दिया है, इसके प्रभाव रिकॉर्ड उच्च कमोडिटी कीमतों, कमज़ोर वैश्विक विकास दृष्टिकोण और सख्त वैश्विक वित्तीय स्थितियों के माध्यम से प्रदर्शित हुए हैं।
  • डीग्लोबलाइज़ेशन का खतरा: भविष्य के व्यापार, पूंजी प्रवाह और आपूर्ति शृंखला को प्रभावित करने वाले डीग्लोबलाइज़ेशन (Deglobalisation) के बारे में चिंताओं ने कारोबारी माहौल के लिये अनिश्चितताओं को बढ़ा दिया है। 

रिपोर्ट में सुझाए गए सुधार:

  • आर्थिक प्रगति के सात चक्र: रिपोर्ट में प्रस्तावित सुधारों का खाका आर्थिक प्रगति के सात चक्रों के इर्द-गिर्द घूमता है: 
    • कुल मांग।
    • सकल आपूर्ति
    • संस्थान, बिचौलिये और बाज़ार
    • व्यापक आर्थिक स्थिरता और नीति समन्वय
    • उत्पादकता और तकनीकी प्रगति
    • संरचनात्मक परिवर्तन
    • वहनीयता
    • भारत में मध्यम अवधि के स्थिर राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि के लिये एक व्यवहार्य सीमा 6.5-8.5% है, जो सुधारों के ब्लूप्रिंट के अनुरूप है। 
  • मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों का पुनर्संतुलन: मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों का समय पर पुनर्संतुलन इस प्रक्रिया का पहला कदम होगा। 
  • मूल्य स्थिरता: मज़बूत और सतत् विकास के लिये मूल्य स्थिरता एक आवश्यक पूर्व शर्त है।
  • सरकारी ऋण को कम करना: भारत की मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं को सुरक्षित करने के लिये अगले पाँच वर्षों में सामान्य सरकारी ऋण को सकल घरेलू उत्पाद के 66% से कम करना आवश्यक है। 
  • संरचनात्मक सुधार: सुझाए गए संरचनात्मक सुधारों में शामिल हैं:
    • मुकदमेबाज़ी से मुक्त कम लागत वाली भूमि तक पहुँच बढ़ाना।
    • शिक्षा और स्वास्थ्य एवं स्किल इंडिया मिशन पर सार्वजनिक व्यय के माध्यम से श्रम की गुणवत्ता बढ़ाना।
    • नवाचार और प्रौद्योगिकी पर ज़ोर देते हुये अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को बढ़ाना।
    • स्टार्टअप और यूनिकॉर्न के लिये एक अनुकूल वातावरण बनाना।
    • अक्षमताओं को बढ़ावा देने वाली सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना।
    • आवास और भौतिक बुनियादी ढांँचे में सुधार करके शहरी समुदायों (Urban Agglomerations) को प्रोत्साहित करना।
  • औद्योगिक क्रांति 4.0 को बढ़ावा: औद्योगिक क्रांति 4.0, नेट-ज़ीरो-उत्सर्जन लक्ष्य वाले पारिस्थितिक तंत्र के प्रति प्रतिबद्ध है जो व्यापार हेतु जोखिम पूंजी और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी माहौल के लिये पर्याप्त सुविधा प्रदान करता है।
  • FTA वार्ता: भारत मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर वार्ता कर रहा है ताकि भविष्य में उच्च गुणवत्ता की प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के साथ उचित व्यापार शर्तों के आधार पर भागीदार देशों से घरेलू विनिर्माण के संदर्भ में आयात-निर्यात के दृष्टिकोण में सुधार किया जा सके। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का गवर्नर केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  2. भारत के संविधान में प्रावधान हैं कि केंद्र सरकार जनहित में आरबीआई को निर्देश जारी कर सकती है
  3. RBI के गवर्नर को RBI अधिनियम के तहत शक्ति प्राप्त है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C

व्याख्या:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना 1 अप्रैल, 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार की गई थी।
  • हालांँकि रिज़र्व बैंक मूल रूप से निजी स्वामित्व में था लेकिन 1949 में राष्ट्रीयकरण के बाद पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में है। 
  • आरबीआई के मामले केंद्रीय निदेशक मंडल द्वारा शासित होते हैं। बोर्ड की नियुक्ति भारत सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अनुरूप की जाती है। 

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2