रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों में की बढ़ोतरी | 02 Aug 2018
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक ने मुद्रास्फीति की चिंताओं का हवाला देते हुए पिछले कुछ महीनों में दूसरी बार 25 आधार अंकों के साथ ब्याज दरें बढ़ा दीं, जिससे बेंचमार्क रेपो दर 6.5% पर पहुँच गई है।
प्रमुख बिंदु
- यह वृद्धि घरों और कारों की खरीद को वित्तपोषित करने की इच्छा रखने वाले उपभोक्ताओं से लेकर पूंजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये ऋणों पर निर्भर व्यवसायों तक सभी उधारकर्त्ताओं के लिये ऋण की लागत को बढ़ाएगी।
खुदरा मुद्रास्फीति
- आरबीआई ने कहा कि जून में खुदरा मुद्रास्फीति के 5% तक बढ़ जाने के बाद इसे नियंत्रित रखने के लिये यह कदम उठाना ज़रूरी था और कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता सहित घरेलू और वैश्विक अनिश्चितताओं में बढ़ोतरी को इसकी पृष्ठभूमि के रूप में परिभाषित किया गया है।
- केंद्रीय बैंक ने अपने नीति वक्तव्य में कहा, "आगामी महीनों में घरेलू मुद्रास्फीति में आने वाली अनिश्चितता की निगरानी की जानी चाहिये।"
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में 7.4% की आर्थिक वृद्धि के लिये अपने पूर्वानुमान को बरकरार रखा और अनुमान लगाया कि वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था के विस्तार की गति 7.5% तक पहुँच जाएगी।
रेपो रेट
- जैसा कि हम जानते हैं, बैंकों को अपने काम-काज़ के लिये अक्सर बड़ी रकम की ज़रूरत होती है। बैंक इसके लिये आरबीआई से अल्पकाल के लिये कर्ज़ मांगते हैं और इस कर्ज़ पर रिज़र्व बैंक को उन्हें जिस दर से ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।
रेपो रेट में वृद्धि का प्रभाव
- अक्तूबर 2013 के बाद यह पहली बार होगा कि लगातार दूसरी समीक्षा बैठक में ब्याज दरें बढ़ाई गई हैं। इससे पहले इस वर्ष जून में भी ब्याज दरें बढाई गई थीं।
- ब्याज दरों में हुई इस बढ़ोतरी का सीधा असर जनता की जेब पर पड़ेगा। रेपो रेट के बढ़ने से बैंकों से लिये गए होम लोन और ऑटो लोन समेत अन्य कर्ज़ महँगे हो जाएंगे। लोगों की ईएमआई भी महँगी हो जाएगी।