भारतीय अर्थव्यवस्था
निजी क्षेत्र के बैंकों की कॉर्पोरेट संरचना की समीक्षा
- 21 Nov 2020
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:पी. के. मोहंती आंतरिक कार्य समूह, विभेदित बैंक, सार्वभौमिक बैंक, नॉन-ऑपरेटिव फाइनेंसियल होल्डिंग कंपनी मेन्स के लिये:निजी क्षेत्र के बैंकों की कॉर्पोरेट संरचना पर RBI की रिपोर्ट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों के स्वामित्त्व और कॉर्पोरेट ढाँचे पर मौज़ूदा दिशानिर्देशों की समीक्षा के लिये गठित 'आंतरिक कार्य समूह' (Internal Working Group- IWG) द्वारा अपनी रिपोर्ट पेश की गई।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस पाँच सदस्यीय आंतरिक कार्य समूह (Internal Working Group -IWG ) का गठन सेंट्रल बोर्ड के निदेशक पी. के. मोहंती की अध्यक्षता में किया गया था।
- IWG द्वारा निजी क्षेत्र के बैंकों के लिये स्वामित्त्व और नियंत्रण, प्रवर्तकों की धारिता, कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों के स्वामित्त्व प्रतिशत में कमी, नियंत्रण और मतदान के अधिकार आदि से संबंधित मौजूदा लाइसेंसिंग और विनियामक दिशा-निर्देशों की समीक्षा की गई है।
समूह के लिये के संदर्भ की शर्तें
(Terms of Reference- ToR):
- भारतीय निजी क्षेत्र के बैंकों में स्वामित्त्व और नियंत्रण से संबंधित मौज़ूदा लाइसेंसिंग दिशा-निर्देशों और नियमों की समीक्षा करना।
- प्रवर्तकों/प्रमोटर्स की शेयरधारिता से संबंधित नियमों तथा उनकी शेयरधारिता घटाने की समय-सीमा की समीक्षा करना।
- बैंकिंग लाइसेंस के लिये आवेदन करने और इससे संबंधित मुद्दों पर पर व्यक्तियों तथा संस्थाओं को आवश्यक पात्रता मानदंडों की जाँच और समीक्षा करना।
- नॉन-ऑपरेटिव फाइनेंसियल होल्डिंग कंपनी (Non-operative Financial Holding Company- NOFHC) में शेयरधारिता से संबंधित नियमों का अध्ययन करना और सभी बैंकों के लिये एक समान विनियमन को लागू करने से संबंधित सुझाव देना।
- NOFHC, एक प्रकार की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC) होती है। इस प्रकार की NBFC में प्रमोटर्स को एक नया बैंक स्थापित करने की अनुमति दी जा सकती है।
- बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े किसी भी अन्य सार्थक मुद्दे की पहचान करना और उससे संबंधित सिफारिशें करना।
समिति की प्रमुख सिफारिशें:
- वर्तमान में प्रवर्तकों/प्रमोटर्स के लिये निजी क्षेत्र के बैंकों में अधिकतम शेयरधारिता की सीमा बैकों के पेड-अप वोटिंग इक्विटी पूंजी का 15 प्रतिशत है, इसे मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 26 प्रतिशत किया जा सकता है।
- गैर-प्रवर्तक शेयरधारकों के लिये अधिकतम शेयरधारिता की सीमा बैंक के पेड-अप वोटिंग इक्विटी पूंजी के 15 प्रतिशत की एक समान कैप निर्धारित की जा सकती है।
- बैंकों के प्रवर्तकों के रूप में बड़े कॉर्पोरेट/औद्योगिक घरानों के प्रवेश के लिये 'बैंकिंग विनियमन अधिनियम' (Banking Regulation Act)- 1949 में संशोधन किया जाना चाहिये तथा निजी बैंकों के सभी बड़े प्रमोटर्स के समेकित पर्यवेक्षण के लिये मौजूदा तंत्र को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाली बड़ी NBFCs जिनकी संपत्ति का आकार 50,000 करोड़ रुपए या इससे अधिक है, उन्हें परिचालन के 10 वर्ष पूरे करने तथा इस संबंध में निर्दिष्ट अतिरिक्त शर्तों का अनुपालन करने पर बैंकों में रूपांतरण के लिये योग्य माना जा सकता है।
- भुगतान बैंकों (Payments Banks) को ‘लघु वित्त बैंक’ (Small Finance Bank) में बदलने के लिये आवश्यक मानदंडों के रूप में 3 वर्ष का अनुभव पर्याप्त है।
- लघु वित्त बैंक और भुगतान बैंक की पूंजी का आकार 6 वर्ष के भीतर 'सार्वभौमिक बैंकों' की शुरुआत के लिये आवश्यक न्यूनतम प्रचलित एंट्री कैपिटल के समतुल्य नेटवर्थ तक पहुँच जाए या परिचालन को 10 वर्ष पूरे हो जाए (जो भी पहले हो), तो उसे सार्वभौमिक बैंक के रूप में मान्यता दी जा सकती है।
- गौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा दो प्रकार के लाइसेंस जारी किये जाते हैं: ‘सार्वभौमिक बैंक लाइसेंस’ (universal Bank Licence) और ‘विभेदित बैंक लाइसेंस’ (Differentiated Bank Licence)। भुगतान बैंक और लघु वित्त बैंक एक विशेष प्रकार के बैंक हैं, जिन्हें कुछ सीमित बैंकिंग क्रियाकलापों की अनुमति है।
- नए बैंकों को लाइसेंस देने के लिये आवश्यक न्यूनतम प्रारंभिक पूंजी की आवश्यकता को सार्वभौमिक बैंकों के लिये 500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपए और छोटे वित्त बैंकों के लिये 200 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 300 करोड़ रुपए तक किया जाना चाहिये।
- NOFHC को सार्वभौमिक बैंकिंग के लिये लाइसेंस जारी करने में वरीयता दी जा सकती है। वर्तमान में NOFHC संरचना के अंतर्गत आने वाले ऐसे बैंक, जिनके पास अन्य समूह इकाइयाँ नहीं हैं, उन्हें सार्वभौमिक बैंकिंग प्रणाली से बाहर निकलने की सुविधा देनी चाहिये।
निष्कर्ष:
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा गठित इस कार्य समूह की सिफारिशों को लागू करने से विभिन्न समयावधि में स्थापित बैंकों के लिये बनाए गए नियमों को तर्कसंगत एवं उचित रूप से लागू किया जा सकेगा जिससे बैंकिंग लाइसेंस प्रणाली में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।