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भारतीय अर्थव्यवस्था

बेहतर पूंजी प्रवाह के लिये रिज़र्व बैंक ने नियमों को तर्कसंगत बनाया

  • 30 Aug 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी की गई अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि वित्त वर्ष 2018 में पूंजी के बेहतर सीमा-पार प्रवाह की सुविधा के लिये उसने नियमों को तर्कसंगत बनाया है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार यह स्पष्ट है कि केंद्रीय बैंक देश के भुगतान संतुलन के बारे में चिंतित था क्योंकि बाहरी परिस्थितियों में तनाव के संकेत 2017-18 में दिखाई देने लगे थे।
  • इस रिपोर्ट में ऋण बाज़ार में विदेशी निधि प्रवाह को प्रोत्साहित करने और भारतीय कंपनियों के बाहरी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) के माध्यम से प्रवाह बढ़ाने के लिये किये गए उपायों पर विस्तृत चर्चा की गई है। 
  • यद्यपि आँकड़े यह प्रदर्शित करते हैं कि ये परिवर्तन बहुत प्रभावी नहीं हैं। जबकि ऋण परिवर्तन के संबंध में आरबीआई द्वारा उठाए गए क़दमों का अल्पकालिक प्रभाव पड़ा, नियमों में परिवर्तन के बावजूद वित्त वर्ष 2018 में ईसीबी बहिर्वाह जारी रहा।

उठाए गए प्रमुख कदम

  • केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2018 में ऋण प्रतिभूतियों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) द्वारा किये गए निवेश को नियंत्रित करने वाले नियमों की समीक्षा की ताकि उन्हें निवेश करने के लिये और अधिक स्थान उपलब्ध कराया जा सके, उपलब्ध विकल्पों में वृद्धि की जा सके तथा उनके कार्यकाल और अवधि का प्रबंधन करना आसान हो सके। 
  • श्रेणी स्तर पर एफपीआई निवेश पर उच्चतम सीमा निर्धारित करना कुछ हद तक सुधारात्मक प्रयास था। उदाहरण के लिये, एफपीआई को कुल सरकारी प्रतिभूतियों के बकाये का 5.5 प्रतिशत, एसडीएल का 2 प्रतिशत और कॉर्पोरेट बॉण्ड का 9 प्रतिशत तक रखने की इज़ाज़त दी गई थी।
  • सरकारी प्रतिभूतियों और अन्य केंद्रीय सरकारी प्रतिभूतियों में कुल एफपीआई निवेश पर बकाया शेयरों में 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक उच्चतम सीमा बढ़ाना ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बदलाव था।
  • एक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन तीन साल से कम अवशिष्ट परिपक्वता वाले प्रतिभूतियों में निवेश पर प्रतिबंध को हटाना था। विभिन्न उप-श्रेणियों को बंद करके और सभी प्रकार के कॉर्पोरेट बॉण्ड में एफपीआई निवेश के लिये एक सीमा निर्धारित करके कॉर्पोरेट बॉण्ड की सीमा निर्धारित करना भी तर्कसंगत था।
  • आँकड़ों के आधार पर ऐसा लगता है कि इन परिवर्तनों से वित्त वर्ष 2018 में देश में अधिक ऋण निधि प्रवाह को आकर्षित करने के लिये एक अल्पकालिक प्रभाव पड़ा है। वित्त वर्ष 2017 में भारतीय ऋण से 7,292 करोड़ रुपए के शुद्ध बहिर्वाह होने के बावजूद, वित्त वर्ष 2018 में प्रवाह 1,19,036 करोड़ रुपए के अंतर्वाह के साथ उलट गया। 
  • हालाँकि, इन बदलावों का प्रभाव टिकाऊ नहीं है। क्योंकि, वित्त वर्ष 2019 में अब तक भारतीय ऋण उपकरणों से 35,673 करोड़ रुपए का बहिर्वाह हुआ है। ऐसा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनी मौद्रिक नीति में अधिक आक्रामक रुख अपनाए जाने, रुपये की कमज़ोरी और अमेरिकी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण हो सकता है। 
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ईसीबी के माध्यम से उठाए गए धन के बहिर्वाह के बारे में भी स्पष्टतः चिंतित है। 2014-15 में ईसीबी के माध्यम से देश में 1,570 मिलियन डॉलर का प्रवाह हुआ, जबकि वित्त वर्ष 2016 में 4,529 मिलियन डॉलर और वित्त वर्ष 2017 में 6,102 मिलियन डॉलर का बहिर्वाह हुआ।
  • इसलिये केंद्रीय बैंक ने भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं या सहायक कंपनियों को उच्च श्रेणी निर्धारण (एएए) वाले निगमों के साथ-साथ नवरत्न और महारत्न जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के ईसीबी को पुनर्वित्त प्रदान करने की अनुमति देकर इस बहिर्वाह को नियंत्रित करने की कोशिश की है। 
  • ईसीबी ऋण की लागत, विदेशी मुद्राओं में एकत्र किये गए ईसीबी के लिये छह महीने में डॉलर लिबोर के आधार पर 450 आधार अंकों पर सीमित की गई थी। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियाँ, बंदरगाह ट्रस्ट और रखरखाव, मरम्मत तथा ओवरहाल, एवं फ्रेट फॉरवर्डिंग में लगी कंपनियों को भी ईसीबी जुटाने की अनुमति दी गई थी।

बाहरी वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) में गिरावट 

  • आरबीआई द्वारा अपनाए गए उपायों के परिणामस्वरूप, ईसीबी के माध्यम से उठाए गए धन का बहिर्वाह वित्त वर्ष 2018 में 183 मिलियन डॉलर हो गया। 
  • लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि अल्पकालिक व्यापार ऋण तेज़ी से बढ़ रहा है, जो वित्त वर्ष 2018 में लगभग दोगुना होकर 13.9 अरब डॉलर हो गया है। इस आँकड़े की गहन निगरानी की आवश्यकता होगी क्योंकि बढ़ती वैश्विक ब्याज दरें और कमज़ोर रुपया ऋण शोधन को चुनौती देंगे।
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