भारतीय रिज़र्व बैंक बेसल III मानकों को पूरा करने में पीछे | 20 Jun 2019

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में बैंकों के पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (Basel Committee on Bank Supervision-BCBS) की अर्द्ध वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक बेसल III मानकों को लागू करने में अपने लक्ष्य से पीछे है।

मुख्य बिंदु

  • समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत के केंद्रीय बैंक ने अब तक कुल हानि-अवशोषण क्षमता (Total Loss-Absorbing Capacity-TLAC) ज़रूरतों पर प्रतिभूतिकरण रूपरेखा (Securitisation Framework) और नियमों को अब तक प्रकाशित नहीं किया है जबकि वैश्विक स्तर पर ये नियम 1 जनवरी 2018 से लागू हो गए थे।

बेसल III (Basel III)

  • बेसल III मानक बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • ये मानक बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों की एक श्रंखला प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा बैंकों के विनियमों को सुधारने, जोखिम प्रबंधन और बैंकों का पर्यवेक्षण किया जाता है।
  • बेसल III मानक 2008 की मंदी के बाद लाए गए थे।

बेसल 3 मानक तीन स्तंभों पर आधारित हैं:

स्तंभ 1: वित्तीय और आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले उतार-चढ़ाव को अवशोषित करने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता में सुधार।

स्तंभ 2: बैंकिंग क्षेत्र की जोखिम प्रबंधन क्षमता और शासन में सुधार।

स्तंभ 3: बैंकों की पारदर्शिता और प्रकटीकरण को मज़बूत करना।

Basel III

  • भारतीय रिज़र्व बैंक TLAC ज़रूरतों को पूरा करने के समय से भी चूक गया है। TLAC आवश्यकताएँ सुनिश्चित करती हैं की बैंकों के पास पर्याप्त रूप से हानि को अवशोषित करने तथा पुन:पूँजीकरण की पर्याप्त क्षमता (loss absorbing and recapitalisation capacity) हो ताकि कठिन समय में भी बैंकों के आवश्यक कार्य बेहतर तरीके से संचालित होते रहें।
  • TLAC जोखिम-भारित परिसंपत्तियों (Risk-Weighted Assets) का 16% से 20% हिस्सा होता है। जोखिम-भारित संपत्ति का उपयोग पूंजी की न्यूनतम राशि निर्धारित करने के लिये किया जाता है जो कि दिवालिया होने के जोखिम को कम करने के लिये बैंकों और अन्य संस्थानों द्वारा आयोजित की जानी चाहिये। पूंजी की आवश्यकता प्रत्येक प्रकार की बैंक संपत्ति के लिये जोखिम मूल्यांकन पर आधारित होती है। उदाहरण के लिये, एक ऋण जिसे ऋण पत्र द्वारा सुरक्षित किया जाता है, उसे जोखिम भरा माना जाता है।

बैंक सर्वेक्षण पर बेसल समिति

(Basel Committee on Bank Survey- BCBS)

  • बैंक सर्वेक्षण पर बेसल समिति (Basel Committee on Bank Survey- BCBS) अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (Bank For International Settlements-BIS) के अंतर्गत एक समिति है जो वैश्विक प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों (Global Systemically Important Banks: G-sibs) में बेसल III नियमों को लागू होने की स्थिति पर नज़र रखती है इस समिति का मुख्य कार्य बैंकों में पर्यवेक्षण की गुणवत्ता को वैश्विक स्तर पर सुधारना है।
    • वर्ष 1930 में स्थापित BIS 60 केंद्रीय बैंकों के स्वामित्व में है, जो दुनिया भर के देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा कुल वैश्विक GDP में इनकी हिस्सेदारी 95% है।
    • BIS मुख्यालय बासेल, स्विटज़रलैंड में है।
  • समिति एक पद्धति जिसमें मात्रात्मक संकेतक और गुणात्मक तत्त्व दोनों शामिल होते हैं का उपयोग करते हुए वैश्विक प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों (G-sibs) की पहचान करती है ।

G-sibs

  • वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण बैंक (Global Systemically Important Banks: G-sibs) एक ऐसा बैंक है जिसका प्रणालीगत जोखिम प्रोफ़ाइल इस तरह के महत्त्ब के रूप में माना जाता है कि बैंक की विफलता एक व्यापक वित्तीय संकट को जन्म दे सकती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये संकट की स्थिति उत्त्पन्न हो सकती है।

स्रोत: लाइव मिंट