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भारतीय अर्थव्यवस्था

आरबीआई ने एनबीएफसी लोकपाल योजना का विस्तार किया

  • 27 Apr 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने उन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-banking Financial Companies-NBFCs) के लिये लोकपाल योजना के विस्तार की घोषणा की है जिनके गैर-डिपॉजिट (Non-Deposit) ग्राहकों की संपत्ति का आकार 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक है।

ऐसा क्यों किया गया?

  • ऋण संबंधी सेवाओं में कमी और एनबीएफसी द्वारा सेवाओं में कमी से संबंधित अन्य मामलों की शिकायतों का त्वरित निवारण सुनिश्चित करने के लिये ऐसा किया गया है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिये लोकपाल योजना

  • 23 फरवरी, 2018 को आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 45-IA के तहत आरबीआई के साथ पंजीकृत NBFCs के विरुद्ध शिकायतों के निवारण के लिये इस योजना की शुरुआत की गई थी| यह योजना सभी जमाराशि स्वीकार करने वाली गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को कवर करती है।
  • एनबीएफसी लोकपाल भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियुक्त एक वरिष्ठ अधिकारी होता है जो सेवा में कमी के लिये NBFCs के विरुद्ध ग्राहकों की शिकायतों का निवारण करता है।
  • यह योजना एनबीएफसी द्वारा सेवाओं में कमी से संबंधित एक निःशुल्क और त्वरित शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करती है।
  • यह योजना एक अपीलीय तंत्र भी प्रदान करती है जिसके तहत शिकायतकर्त्ता/NBFC के पास अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष लोकपाल के निर्णय के खिलाफ अपील करने का विकल्प होता है।
  • एनबीएफसी लोकपाल के कार्यालय चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और नई दिल्ली में हैं और संबंधित क्षेत्रों में ग्राहकों की शिकायतों का निवारण करते हैं।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी (NBFC-IFC), कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी (CIC), इन्फ्रास्ट्रक्चर डेट फंड-नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (Infrastructure Debt Fund-non Banking Financial Companies-IDF-NBFC) और लिक्विडेशन के अंतर्गत शामिल NBFC को इस योजना के दायरे से बाहर रखा गया है।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस संस्था को कहते हैं जो कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत पंजीकृत है और जिसका मुख्य काम उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित कार्यों में निवेश करना है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ भारतीय वित्तीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
  • यह संस्‍थाओं का विजातीय समूह है (वाणिज्यिक सहकारी बैंकों को छोड़कर) जो विभिन्‍न तरीकों से वित्तीय मध्‍यस्‍थता का कार्य करता है जैसे –

♦ जमा स्‍वीकार करना।

♦ ऋण और अग्रिम देना।

♦ प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप में निधियाँ जुटाना।

♦ अंतिम व्ययकर्त्ता को उधार देना।

♦ थोक और खुदरा व्यापारियों तथा लघु उद्योगों को अग्रिम ऋण देना।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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