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भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI के ऋण समाधान मानक

  • 14 Jun 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादित संपत्ति अथवा (Non Performing Assets- NPA) से निपटने के लिये एक नया मानक जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संकल्प योजनाएँ जैसे- कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन योजना, रणनीतिक ऋण पुनर्गठन योजना, स्वामित्व में परिवर्तन, तनावग्रस्त संपत्तियों की स्थायी संरचना, संयुक्त ऋणदाता मंच और मौजूदा दीर्घकालिक ऋणों की लचीली संरचना आदि को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा वापस ले लिया गया है और इनके स्थान पर संशोधित मापदंड जारी किये गये हैं।
  • ये नए मानदंड बैंकों के अलावा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, लघु वित्त बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों पर भी लागू होंगे।

संशोधित मानदंड:

  • संशोधित मानदंडों के अनुसार, ऋणदाताओं को संकल्प रणनीति का ढाँचा तैयार करने के लिये 30 दिनों की समीक्षा अवधि दी जाएगी, इसके विपरीत पुराने मानदंड ऋणदाताओं को डिफाल्टर के संदर्भ में संकल्प रणनीति तैयार करने के लिये मजबूर करते थे चाहे डिफ़ॉल्ट एक दिन पुराना ही क्यों न हो।
  • किसी भी संपत्ति के डिफ़ॉल्ट होने पर ऋणदाताओं को उस ऋण खाते से होने वाले प्रभाव की पहचान उसे कुछ विशेष उल्लेख खातों (Special Mention Accounts - SMA) में वर्गीकृत करके करनी होगी:
    • SMA-0: यदि कोई व्यक्ति/कंपनी 0-30 दिनों के भीतर लिये हुए ऋण के मूलधन या ब्याज को चुकाने में विफल रहता है तो उसे SMA-0 में वर्गीकृत किया जाएगा और इस श्रेणी के डिफॉल्टर पर दिवालिया संकल्प लागू किया जा सकता है।
    • SMA-1: यदि कोई व्यक्ति/कंपनी 31-60 दिनों के भीतर लिये हुए ऋण के मूलधन या ब्याज को चुकाने में विफल रहता है तो उसे SMA-1 में वर्गीकृत किया जाएगा और इस श्रेणी में डिफॉल्टर पर Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) के तहत कार्यवाही की जाएगी।
    • SMA-3: यदि कोई व्यक्ति/कंपनी 31-60 दिनों के भीतर लिये हुए ऋण के मूलधन या ब्याज को चुकाने में विफल रहता है तो उसे SMA-3 में वर्गीकृत किया जाएगा और इस श्रेणी में डिफॉल्टर के विरुद्ध नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal-NCLT) में मुकदमा चलाया जाएगा।
  • नए मापदंडों के अनुसार किसी भी संपत्ति के स्वामित्व में परिवर्तन, जिसकी कुल जोख़िम मात्रा 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक है, के लिये रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित किसी भी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (Credit Rating Agencies-CRAs) से स्वतंत्र क्रेडिट मूल्यांकन (Independent Credit Evaluation-ICE) करवाना आवश्यक होगा।
    • ऐसे ऋण खाते जिनकी कुल जोख़िम मात्रा 500 करोड़ रुपए या उससे अधिक है, को नए मापदंडों के अनुसार ऐसे 2 स्वतंत्र क्रेडिट मूल्यांकन (independent credit evaluation- ICE) करने अनिवार्य हैं।
  • ऋणदाताओं को 5 करोड़ रुपए से अधिक कुल जोखिम वाले उधारकर्त्ताओं के डिफाॅल्टर होने की स्थिति में रिज़र्व बैंक को हर हफ्ते एक साप्ताहिक रिपोर्ट देनी होगी।
  • दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही में देरी होने के कारण अतिरिक्त प्रावधान के रूप में दंडात्मक कार्रवाई की व्यवस्था:
    • इस संदर्भ में अतिरिक्त प्रावधान बैंकों द्वारा बचे हुए ऋण के अनुपात में बनाए जाएंगे।
    • यदि समीक्षा अवधि की समाप्ति के 180 दिनों के भीतर संकल्प पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाता है तो बैंकों को इसके लिये कुल 20 प्रतिशत अतिरिक्त प्रावधान बनाने होंगे।
    • यदि समीक्षा अवधि की समाप्ति के 365 दिनों के भीतर भी संकल्प पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाता है तो बैंकों को इसके लिये कुल अतिरिक्त 15 प्रतिशत प्रावधान (जिसका कुल योग 35 प्रतिशत होगा) बनाने होंगे।
  • यदि ऋणदाताओं द्वारा किसी उधारकर्त्ता के ऋण खातों की वास्तविक स्थिति को छुपाने के उद्देश्य से कुछ कार्यवाही की जाती है तो यह कार्यवाही उच्चतर प्रावधान के निर्माण तथा ऋणदाता पर मौद्रिक दंड की उत्तरदायी होगी।
  • ऋणदाताओं को संकल्प परियोजना लागू करने के लिये समीक्षा अवधि के दौरान एक आंतरिक लेनदार समझौते (inter creditor agreement- ICA) पर हस्ताक्षर करने होंगे, जो संकल्प परियोजना के अंतिम रूप और कार्यान्वयन के लिये नियम बनाएगा।

क्रेडिट रेटिंग (Credit Rating)

क्रेडिट रेटिंग किसी भी देश, संस्था या व्यक्ति की ऋण लेने या उसे चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन होती है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को एएए, बीबीबी, सीए, सीसीसी, सी, डी श्रेणियों में रेटिंग दी जाती है। इन श्रेणियों के निहितार्थ हैं:

एएए: सबसे मज़बूत सबसे बेहतर।

एए: वादों को पूरा करने में सक्षम।

ए: वादों को पूरा करने की क्षमता, पर विपरीत परिस्थितियों का पड़ सकता है असर।

बीबीबी: वादों को पूरा करने की क्षमता, लेकिन विपरीत परिस्थितियों से आर्थिक स्थितियाँ प्रभावित होने की संभावना अधिक।

सीसी: वर्तमान में बहुत कमज़ोर।

डी: ऋण लौटाने में असफल।

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ (Credit Rating Agencies- CRAs)

  • ऐसी स्वतंत्र कंपनियाँ जो देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिये क्रेडिट रेटिंग जारी करें, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ कहलाती हैं। जैसे- फिच, मूडीज़ और एस एंड पी इत्यादि।

नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (National Company Law Tribunal - NCLT)

  • नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 18 के तहत किया गया था।
  • नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो भारतीय कंपनियों से संबंधित मुद्दों पर निर्णय देती है।
  • NCLT में कुल ग्यारह बेंच हैं जिसमें नई दिल्ली में दो (एक प्रमुख) तथा अहमदाबाद, इलाहाबाद, बंगलूरू, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में एक-एक है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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