भारतीय अर्थव्यवस्था
RBI की वार्षिक रिपोर्ट 2020-21
- 29 May 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लियेभारतीय रिज़र्व बैंक, विदेशी मुद्रा विनिमय, अधिशेष स्थानांतरण, डिजिटल भुगतान, सकल घरेलू उत्पाद मेन्स के लियेभारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना और भूमिका, महामारी में डिजिटल भुगतान का भूमिका, कोविड महामारी, आर्थिक विकास में अधिशेष की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 2020-21 के लिये अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की।
प्रमुख बिंदु
विदेशी मुद्रा विनिमय:
- वित्तीय वर्ष 2020-21 में विदेशी मुद्रा लेन-देन से लाभ 29,993 करोड़ रुपए से बढ़कर 50,629 करोड़ रुपए हो गया।
- विदेशी मुद्रा या विदेशी मुद्रा बाज़ार से आशय यह है कि जहाँ एक मुद्रा का दूसरे के लिये कारोबार किया जाता है।
सरकार को अधिशेष स्थानांतरण:
- मार्च 2021 की वित्तीय वर्ष की समाप्ति के दौरान प्रावधानों में तेज़ गिरावट (खर्च में कमी न्यून प्रावधानों के कारण थी) और विदेशी मुद्रा लेनदेन से लाभ के पश्चात् आरबीआई इस वर्ष सरकार को अधिशेष के रूप में एक उच्च राशि हस्तांतरित करने में सक्षम है।
- RBI ने सरकार को अधिशेष के रूप में 99,122 करोड़ रुपए हस्तांतरित किये जिससे सरकार के वित्त को बढ़ावा मिलने की संभावना है। इस प्राप्ति से सरकार को बढ़ते कोविड-19 महामारी से लड़ने में मदद मिलेगी।
सरकार को अधिशेष देने का प्रावधान
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 47 के अंतर्गत खराब और संदिग्ध ऋणों के लिये प्रावधान बनाने के पश्चात् संपत्ति में मूल्यह्रास, कर्मचारियों और सेवानिवृत्ति निधि में योगदान और उन सभी मामलों हेतु जिनके लिये प्रावधान अधिनियम द्वारा या उसके तहत किये जाने हैं या बैंकरों द्वारा जो आमतौर पर प्रदान किये जाते हैं, रिज़र्व बैंक के लाभ की शेष राशि का भुगतान केंद्र सरकार को करना होता है।
डॉलर के मुकाबले रुपया:
- अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 3.5 प्रतिशत मज़बूत हुआ है (मार्च 2020 के अंत से लेकर मार्च 2021 के अंत तक) लेकिन वर्ष 2020-21 के दौरान अन्य एशियाई देशों की तुलना में भारत का प्रदर्शन काफी कमज़ोर रहा है।
बैंकिंग धोखाधड़ी के मामलों में कमी
- वर्ष 2020-21 में 1 लाख रुपए और उससे अधिक की बैंक धोखाधड़ी से संबंधित मामलों के कुल मूल्य में 25 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह गिरकर 1.38 ट्रिलियन रुपए पर पहुँच गया है, साथ ही धोखाधड़ी से संबंधित मामलों की संख्या में भी इस दौरान 15 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।
डिजिटल भुगतान
- कोविड-19 महामारी ने भुगतान के डिजिटल माध्यमों के प्रसार को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- वर्ष 2020-21 में कुल डिजिटल लेनदेन की मात्रा 4,371 करोड़ थी, जबकि वर्ष 2019-20 में यह 3,412 करोड़ थी।
- वर्ष 2021-22 में भारत की वित्तीय प्रणाली में फिनटेक की संभावनाएँ काफी हद तक डिजिटल उपयोग के प्रसार पर निर्भर करेंगी।
- वैश्विक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की स्थिति को मज़बूत किये जाने के लिये विभिन्न उपाय जैसे- नवाचार केंद्र, नियामक सैंडबॉक्स और ऑफलाइन भुगतान समाधान जैसी विभिन्न पहलों पर ज़ोर दिया जा रहा है।
- रिज़र्व बैंक देश भर में बैंक शाखाओं और ATMs के स्थान का पता लगाने के लिये लगाए गए जियो-टैगिंग ढाँचे का विस्तार करने पर ज़ोर दे रहा है, जिससे देश भर में उनके सटीक स्थानों का पता लगाया जा सकेगा।
- इसके अलावा सीमा पार लेनदेन की सुविधा के लिये भारत की घरेलू भुगतान प्रणाली का लाभ उठाने की संभावना का पता लगाया जा रहा है और प्रेषण के लिये कॉरिडोर स्थापित करने तथा शुल्क समाप्त करने की भी समीक्षा की जा रही है।
तरलता सुनिश्चित करना
- रिज़र्व बैंक मौद्रिक नीति के रुख के अनुरूप वर्ष 2021-22 के दौरान वित्तीय प्रणाली में तरलता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
- सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
- वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए मौद्रिक संचरण निर्बाध रूप से जारी रहेगा।
- मौद्रिक संचरण उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके द्वारा एक केंद्रीय बैंक के मौद्रिक नीति घटकों (जैसे रेपो दर) को वित्तीय प्रणाली के माध्यम से व्यवसायों और घरों को प्रभावित करने हेतु प्रेषित किया जाता है।
आर्थिक विकास
- जैसे-जैसे टीकाकरण अभियान में तेज़ी आएगी और संक्रमण के मामलों में गिरावट होगी, वैसे ही आर्थिक विकास में भी तेज़ी आएगी, जो कि मज़बूत ‘बेस इफेक्ट’ द्वारा समर्थित होगी।
- 'बेस इफेक्ट’ दो डेटा बिंदुओं के बीच तुलना के परिणाम पर तुलना आधार के प्रभाव को संदर्भित करता है।
- रिज़र्व बैंक ने वर्ष 2021-22 के लिये सकल घरेलू उत्पाद में 10.5 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की है।