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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में बढ़ती ऐच्छिक बेरोज़गारी की दर

  • 12 May 2017
  • 6 min read

संदर्भ
पर्याप्त रोज़गारों का सृजन न होना लोगों के असंतोष का कारण बन सकता है क्योंकि रोज़गार का अभाव होने से लोगों की आकांक्षाओं को ठेस पहुँचती है| नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय के अनुसार, भारत में ऐच्छिक बेरोज़गारी की दर में वृद्धि हो रही है| ऐच्छिक बेरोज़गारी वह स्थिति है जब लोग शिक्षा में निवेश करने के बाद आय के एक निश्चित स्तर से नीचे कार्य करना पसंद नहीं करते हैं|

प्रमुख बिंदु

  • रोज़गार के मामले में पिछले एक साल से देश की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है|
  • वर्तमान में भारत को 10 से 12 मिलियन नए रोज़गारों का सृजन करने की आवश्यकता है, परन्तु यह भी देखने योग्य है कि क्या भारत वास्तव में प्रतिवर्ष इतने ही रोज़गारों का सृजन कर रहा है?
  • श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1 मिलियन रोज़गारों का सृजन होता है| 
  • श्रम और रोज़गार के संबंध में जारी किये गए वर्तमान आधिकारिक आँकड़ों के साथ समस्या यह है कि उनका उपयोग मात्र ‘रोज़गारविहीन संवृद्धि’ (jobless growth) अथवा वृद्धि-रहित रोज़गारों (growth-less jobs) का दावा करने के लिये किया जा सकता है लेकिन ये अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक और असंगठित स्वरूप का स्पष्ट उल्लेख नहीं करते हैं|
  • भारत के बड़े स्वरोज़गार और असंगठित क्षेत्र को देखते हुए यह उचित होगा कि रोज़गार और बेरोज़गारी से संबंधित विश्वसनीय आँकड़े प्राप्त करने के लिये उद्यम स्तरीय सर्वेक्षणों की तुलना में घरेलू सर्वेक्षणों का उपयोग किया जाए अन्यथा सदैव ही बेरोज़गारी से संबंधित अस्पष्ट आँकड़े ही प्राप्त होंगे|
  • दरअसल, इस सन्दर्भ में नीति आयोग के सदस्य के दृष्टिकोण का महत्त्व इसलिये है क्योंकि इस सप्ताह के आरंभ में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेरोज़गार संबंधी आँकड़ों को एकत्रित करने के लिये नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगरिया के नेतृत्व में एक कार्यबल का गठन किया है| सरकार ने रोज़गारों के सृजन, नीति-निर्माण और विश्लेषण को उच्च प्राथमिकता दी है ताकि उन्हें बेरोज़गारी से संबंधित उचित आँकड़े प्राप्त हो सके|
  • बेरोज़गारी के नवीनतम आँकड़े राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organization -NSSO) द्वारा किये गए घरेलू सर्वेक्षणों पर आधारित हैं| यह सर्वेक्षण सामान्यतः पाँच वर्षों में किया जाता है| इससे पूर्व यह 2011-12 में किया गया था तथा वर्ष 2018 में इसके अगले आँकड़े प्राप्त होंगे| यह श्रम और रोज़गार पर किया जाने वाला ऐसा सर्वेक्षण है जो पाँच वर्षों की समयावधि से पूर्णतः स्वतंत्र है|
  • नीति आयोग के अनुसार, श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा एकत्रित किये गए आँकड़े त्रैमासिक आधार पर लिये गए थे, अतः इनसे यह पता नहीं चला कि भारत में श्रम और रोज़गार की वर्तमान स्थिति क्या है|
  • यदि पर्याप्त संख्या में रोज़गारों का सृजन नहीं किया जाता है तो लोगों के मध्य असंतोष व्यापत होगा क्योंकि उनकी आकांक्षाएँ अधिक होती हैं| ध्यातव्य है कि केवल विनिर्माण क्षेत्र ही अकेले अनेक प्रत्यक्ष रोज़गारों का सृजन नहीं कर सकता है|
  • उल्लेखनीय है कि रोज़गारों में प्राथमिक वृद्धि सेवा क्षेत्र से आती है| यहाँ तक कि जब भी कृषि क्षेत्र में सुधार किये जाते हैं तो क्षेत्र में सर्वाधिक रोज़गारों का सृजन होता है जिसे राष्ट्रीय आय में सेवाओं (जैसे -परिवहन,रसद) के रूप में प्रदर्शित किया जाता है|
  • घरेलू सर्वेक्षण पर भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र द्वारा जारी किये गए आँकड़ों के अनुसार, अनैच्छिक बेरोज़गारी समाप्त नहीं हुई है बल्कि ऐच्छिक बेरोज़गारी में एकाएक वृद्धि हुई है|
  • चूँकि आय में कमी आ रही है अतः महिलाएँ अपनी इच्छा से रोज़गार को वरीयता नहीं दे रही हैं| लोग शिक्षा में निवेश करने के पश्चात रोज़गार नहीं करना चाहते हैं क्योंकि वहाँ उन्हें उनके कौशल के अनुरूप वेतन प्राप्त नहीं होता है|

ऐच्छिक बेरोज़गारी क्या है?

  • यह वह स्थिति है जब लोग शिक्षा में निवेश करने के बाद आय के एक निश्चित स्तर से नीचे कार्य करना पसंद नहीं करते हैं|
  • एक अर्थव्यवस्था में उन रोज़गारविहीन लोगों की संख्या जो बेरोज़गार रहना पसंद करते हैं| उदाहरणस्वरूप- जब किसी व्यक्ति के पास दो रोज़गार होते हैं तो ऐसी स्थिति में इसे ऐच्छिक तब कहा जाता है जब वह इन दोनों में से किसी को भी वरीयता न दे और तीसरे रोज़गार की तलाश करे|
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