दुर्लभ मृदा धातु | 28 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय उद्योग परिसंघ, भारत दुर्लभ मृदा मिशन, डीप ओशन मिशन मेन्स के लिये:दुर्लभ मृदा धातु और भारत में अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिये क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
भारत की चीन पर आयात संबंधी बढ़ती निर्भरता के चलते भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने सरकार से इस क्षेत्र में निजी खनन को प्रोत्साहित करने और आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने का आग्रह किया है।
- भारत के पास दुनिया के दुर्लभ खनिज़ भंडार का 6% है, यद्यपि यह वैश्विक उत्पादन का केवल 1% उत्पादन करता है, और चीन से ऐसे खनिजों की अपनी अधिकांश आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- उदाहरण के लिये, 2018-19 में, भारत ने दुर्लभ मृदा धातु आयात का 92% और मात्रा के आधार पर 97% चीन से प्राप्त किया गया था।
CII के सुझाव:
- CII ने सुझाव दिया कि 'इंडिया रेयर अर्थ्स मिशन' को डीप ओशन मिशन के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन की तरह पेशेवरों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए।
- उद्योग समूह ने चीन की 'मेड इन चाइना 2025' पहल का हवाला देते हुए दुर्लभ पृथ्वी खनिजों को 'मेक इन इंडिया' अभियान का हिस्सा बनाने का भी विचार रखा है, जो नई सामग्रियों पर केंद्रित है, जिसमें स्थायी मैग्नेट शामिल हैं जो दुर्लभ मृदा खनिजों का उपयोग करके बनाए जाते हैं।
दुर्लभ मृदा धातु:
- यह 17 धातु तत्वों का एक समूह हैं। इनमें स्कैंडियम और यट्रियम के अलावा आवर्त सारणी में 15 लैंथेनाइड्स शामिल हैं जो लैंथेनाइड्स के समान भौतिक और रासायनिक गुणयुक्त हैं
- 17 दुर्लभ मृदा धातुओं में सीरियम (Ce), डिस्प्रोसियम (Dy), एर्बियम (Er), यूरोपियम (Eu), गैडोलिनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेटियम (Lu), नियोडाइमियम (Yb) और इट्रियम (Y) शामिल हैं।
- इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, संदीप्ति व विद्युत रासायनिक गुण विद्यमान होते हैं और इस प्रकार उपभोक्ता द्वारा इनका इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर एवं नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा आदि सहित कई आधुनिक तकनीकों में उपयोग किया जाता है।
- यहांँ तक कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों में भी REE की बहुत आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिये उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्था हेतु हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण और परिवहन, पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग एवं ऊर्जा दक्षता से संबंधित मुद्दों आदि में।
- इन्हें 'दुर्लभ मृदा' (Rare Earth) कहा जाता है क्योंकि पहले इन्हें इनके ऑक्साइड रूपों से निकालना तकनीकी रूप से मुश्किल था।
- यह कई खनिजों में विद्यमान होते हैं लेकिन आमतौर पर कम सांद्रता में इन्हें किफायती तरीके से परिष्कृत किया जाता है।
चीन का एकाधिकार:
- चीन ने समय के साथ दुर्लभ मृदा धातुओं पर वैश्विक प्रभुत्व हासिल कर लिया है, यहाँ तक कि एक बिंदु पर इसने दुनिया की 90% दुर्लभ मृदा धातुओं का उत्पादन किया था।
- वर्तमान में हालाँकि यह 60% तक कम हो गया है और शेष मात्रा का उत्पादन अन्य देशों द्वारा किया जाता है, जिसमें क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) देश शामिल हैं।
- वर्ष 2010 के बाद जब चीन ने जापान, अमेरिका और यूरोप की रेयर अर्थ्स शिपमेंट पर रोक लगा दी तो एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में छोटी इकाइयों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका में उत्पादन इकाइयाँ शुरू की गई।
- फिर भी संसाधित दुर्लभ मृदा धातुओं का प्रमुख हिस्सा चीन के पास है।
दुर्लभ मृदा धातुओं के लिये भारत की वर्तमान नीति:
- भारत में अन्वेषण का कार्य खान ब्यूरो और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाता है। खनन और प्रसंस्करण बीते समय में कुछ छोटी निजी कम्पनियों द्वारा किया गया है, लेकिन वर्तमान में यह इंडियन रेअर अर्थ्स लिमिटेड (Indian Rare Earths Limited- IREL) के अंतर्गत है ।
- भारत ने IREL जैसे सरकारी निगमों को प्राथमिक खनिजों पर एकाधिकार प्रदान किया है जिसमें शामिल REE हैं: तटीय राज्यों में पाए जाने वाले मोनाज़ाइट।
- इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) दुर्लभ मृदा ऑक्साइड (कम लागत, कम-प्रतिफल वाली अपस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का उत्पादन करती है, इन्हें उन विदेशी फर्मों को बेचती है, जो धातुओं को निकालते हैं और अंतिम उत्पादों (उच्च लागत, उच्च-प्रतिफल वाली डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का निर्माण करते हैं।
- IREL का फोकस मोनाज़ाइट से निकाले गए थोरियम को परमाणु ऊर्जा विभाग को उपलब्ध कराना है।
संबंधित पहल:
- वैश्विक स्तर पर:
- बहुपक्षीय खनिज सुरक्षा साझेदारी (Multilateral Minerals Security Partnership- MSP) की घोषणा जून 2022 में की गई थी, जिसका लक्ष्य जलवायु उद्देश्यों के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करने हेतु देशों को एक साथ लाना था।
- इस साझेदारी में संयुक्त राज्य अमेरिका (United States), कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया गणराज्य, जापान और विभिन्न यूरोपीय देश शामिल हैं।
- भारत साझेदारी में शामिल नहीं है।
- भारत द्वारा:
- खान मंत्रालय ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) (Mines and Minerals ,Development and Regulation- MDMR) अधिनियम, 1957 में खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2021 के माध्यम से खनिज उत्पादन को बढ़ावा देने, देश में व्यापार करने में आसानी में सुधार लाने और सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में खनिज उत्पादन का योगदान बढाने के लिये संशोधन किया है।
- संशोधन अधिनियम में प्रावधान है कि किसी भी खदान को विशेष उपयोग के लिये आरक्षित नहीं किया जाएगा।
आगे की राह
- भारत को अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से सबक लेना चाहिये कि वे अपनी खनिज ज़रूरतों को कैसे सुरक्षित करने की योजना बना रहे हैं और महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को सुनिश्चित करने के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं या इस तरह के संवादों को बढ़ावा देने के लिये क्वाड और बिम्सटेक जैसी मौजूदा साझेदारी का उपयोग कर रहे हैं।
- हरित प्रौद्योगिकियों के निर्माण की लंबवत एकीकृत आपूर्ति शृंखला कैसे बनाई जाए, इस पर रणनीति बनाने के लिये सरकार शीर्ष-स्तरीय निर्णय लेने की भी आवश्यकता है अन्यथा हम अपने जलवायु परिवर्तन शमन लक्ष्यों से चूक सकते हैं।
- भारत को एक नया दुर्लभ मृदा विभाग (DRE) बनाने की ज़रूरत है जो इस क्षेत्र में व्यवसायों के लिये एक नियामक और सहायक की भूमिका निभाए।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुर्लभ मृदा धातु’ कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |