29 जुलाई से सातवीं आर्थिक गणना के क्षेत्र कार्य (Area Work) की शुरुआत त्रिपुरा से हुई तथा इसके बाद यह कार्य पुद्दुचेरी में किया जाएगा। अन्य राज्यों/संघशासित प्रदेशों में क्षेत्र कार्य अगस्त/सितंबर, 2019 में शुरू होगा। आँकड़े एकत्र करने संबंधी कानून यानी सांख्यिकी संग्रहण अधिनियम, 2008 के प्रावधानों के अंतर्गत प्रत्येक परिवार के घर जाकर और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से आँकड़े एकत्र किये जाएंगे। परिवारों और प्रतिष्ठानों से एकत्र किये गए आँकड़ों को गोपनीय रखा जाएगा और उनका इस्तेमाल केवल राज्य/संघशासित प्रदेशों की सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा विकास संबंधी योजनाओं के लिये किया जाएगा। आँकड़ों के संग्रहण और प्रोसेसिंग का काम पूरा हो जाने के बाद 7वीं आर्थिक गणना के परिणाम जारी किये जाएंगे। गौरतलब है कि सातवीं आर्थिक गणना सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा कराई जा रही है। इसमें आँकड़े जुटाने, उनके प्रमाणीकरण, रिपोर्ट तैयार करने और इनके प्रसार के लिये IT आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया जाएगा। इस आर्थिक गणना में परिवारों के उद्यमों, गैर-जोत कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र में वस्तुओं/सेवाओं (स्वयं के उपभोग के अलावा) के उत्पादन एवं वितरण की गणना की जाएगी।
29 जुलाई को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का आयोजन किया गया। बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है तथा इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में देशभर के टाइगर रिज़र्व में बाघों की संख्या पर रिपोर्ट जारी की। ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन 2018 नामक इस रिपोर्ट से पता चलता है कि 2014 के मुकाबले बाघों की संख्या 741 बढ़ी है। देश में अब बाघों की संख्या 2967 हो गई है। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुए बाघ सम्मेलन में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। इस सम्मेलन में 13 देशों ने भाग लिया था और उन्होंने वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा था। इससे पहले वर्ष 2006, वर्ष 2010 और वर्ष 2014 में रिपोर्ट जारी हो चुकी है, जिसमें क्रमश: 1411, 1706 और 2226 बाघ होने की पुष्टि की गई थी। वर्ष 1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट बनने के बाद जिम कॉर्बेट पार्क में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 7 अप्रैल 1973 को हुई थी।
28 जुलाई को दुनियाभर में विश्व हेपेटाइटिस दिवस का आयोजन किया जाता है। हेपेटाइटिस के बारे में जागरूकता पैदा करने और वर्ष 2030 तक (वर्ष 2015 आधाररेखा की तुलना में नए संक्रमणों को 90 प्रतिशत और मृत्यु दर को 65 प्रतिशत तक कम करना) वैश्विक उन्मूलन के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु व्यक्तियों, हितधारकों और जनता द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिये यह दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से इस वर्ष विश्व हेपेटाइटिस दिवस की थीम हेपेटाइटिस उन्मूलन के लिये निवेश करें (Invest in Eliminating Hepatitis) रखी गई है। इसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज़ के संदर्भ में वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर स्वीकृत हेपेटाइटिस उन्मूलन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये आवश्यक निवेश के नए अनुमान शामिल हैं। लीवर (यकृत) में शोथ को हेपेटाइटिस कहते हैं। हेपेटाइटिस का वायरस पाँच प्रकार का पाया जाता है- हेपेटाइटिस-A, B, C, D और E। इनमें से हेपेटाइटिस E विश्व में हेपेटाइटिस का सबसे सामान्य प्रकार है। हेपेटाइटिस B और C दीर्घकालिक संक्रमण हैं, जिनमें लंबे समय तक कभी-कभी वर्षों या दशकों तक लक्षण प्रकट नहीं होते और यह लीवर कैंसर का मूल कारण है। वैश्विक हेपेटाइटिस रिपोर्ट 2017 के अनुसार वायरल हेपेटाइटिस B और C प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है, जो कि वैश्विक स्तर पर 325 मिलियन लोगों को प्रभावित करती है तथा इससे प्रतिवर्ष 1.34 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में संसद परिसर में मटका थिम्बक पद्धति से पौधारोपण कर हरित अभियान की शुरुआत की। इस पद्धति से पौधों की जड़ों तक पानी पहुँचाया जाता है और पौधे सूखकर खराब नहीं होते। गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान नरेंद्र मोदी ने इस पद्धति को बढ़ावा देने की पहल की थी। इस पद्धति से पौधों को पानी देने में पानी और समय के साथ मेहनत भी कम लगती है। पौधारोपण के समय से ही इसका इस्तेमाल करने से पौधे के बड़े होने तक लगातार इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके लिये आवश्यक सामग्री जैसे पुराना मटका और जूट की रस्सी गाँवों-देहात में आसानी से मिल जाती है। दरअसल, पौधा रोपते समय जो गड्ढा खोदा जाता है, उसी गड्ढे में कुछ दूरी पर कोई पुराना मटका रख देते हैं और मटके की तली में छिद्र किया जाता है। इस छिद्र से होकर जूट की रस्सी पौधे की जड़ों तक पहुँचाई जाती है। पौधा रोपने के बाद मटके के निचले हिस्से को भी पौधे की जड़ों की तरह खोदी गई मिट्टी से ढँक दिया जाता है। गड्ढा भरने के लिये मिट्टी, बालू (रेत) आदि का इस्तेमाल होने की वज़ह से इसमें लगातार और यथोचित रूप से जड़ों को पर्याप्त पानी मिलता रहता है, जिससे पौधों का समुचित विकास होता है।