भारत और चीन के बीच वार्षिक रूप से आयोजित होने वाला हैंड-इन-हैंड सैन्याभ्यास इस वर्ष दिसंबर के दूसरे सप्ताह में मेघालय में शिलांग के निकट उमरोई में 14 दिन तक चलेगा। एक-दूसरे की रणनीति को साझा करने के लिये दोनों देशों के लगभग 240 सैनिक इस अभ्यास में हिस्सा लेंगे। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2017 में डोकलाम विवाद के चलते इस अभ्यास को रद्द किया गया था, लेकिन उसके बाद वर्ष 2018 में यह अभ्यास 11 से 23 दिसंबर तक चीन के सिचुआन प्रांत के चेंगदू में हुआ था। इस सैन्याभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच मजबूत संबंध बनाना और उन्हें बढ़ावा देना है। संयुक्त अभ्यास कमांडर की क्षमता में बढ़ोतरी करना भी इस अभ्यास का लक्ष्य है ताकि दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियाँ कमान के अंतर्गत काम कर सकें। इस अभ्यास के दौरान संयुक्त राष्ट्र के आदेश के तहत किसी देश में विघटनकारी/ आतंकवादी गतिविधियों के मुकाबले के लिये कार्रवाइयों का प्रशिक्षण भी शामिल होता है। विदित हो कि कि वर्ष 2008 में पहली बार दोनों देशों की सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल बनाने के उद्देश्य से हैंड-इन-हैंड अभ्यास की शुरुआत हुई थी। हर साल यह सैन्याभ्यास बारी-बारी से चीन और भारत में आयोजित किया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों की एक टीम ने क्वांटम कंप्यूटर का एक सुपरफास्ट वर्ज़न तैयार किया है। यह कंप्यूटर सामान्य कंप्यूटर के मुकाबले 200 गुना तेज़ी से जटिल समस्याओं को हल करने की क्षमता रखता है। क्वांटम कंप्यूटर का उपयोग ऐसी गणना करने के लिये किया जाता है, जिसे सैद्धांतिक या भौतिक रूप से लागू किया जा सके। मौजूदा कंप्यूटरों के विपरीत क्वांटम कंप्यूटर अधिक जटिल गणनाओं को आसानी से हल कर सकते हैं। क्वांटम तकनीक के आने से रसायन विज्ञान, खगोल, भौतिकी, चिकित्सा, सुरक्षा और संचार सहित लगभग हर वैज्ञानिक क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए जा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने सिलिकॉन में एटम क्यूबिट के बीच में पहला टू-क्यूबिट गेट तैयार किया है। यह एक ऐसी तकनीक है जो किसी काम को 200 गुना तेज़ी से करने में सक्षम है। अभी कंप्यूटर द्वारा किसी काम को करने की स्पीड 0.8 नैनो सेकेंड की है। एक क्यूबिट ही क्वांटम बिट होता है, जो सूचना की सबसे छोटी इकाई है। क्यूबिट 0 या 1 में से एक या दोनों हो सकते हैं। चूंकि 0 और 1 के संयोजनों की संख्या क्यूबिट में अधिक होती है, इसलिये यह ‘बिट’ की तुलना में बहुत तेज़ी से समस्याओं को हल कर सकते हैं।
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के सरीसृप शोधकर्त्ताओं (Herpetologist) ने पश्चिमी घाट में सांपों का अध्ययन और वर्गीकरण करने के दौरान 26 मिलियन वर्ष पुरानी वाइन स्नेक की एक प्रजाति का पता लगाया है। इसे उन्होंने Proahaetulla Antiqua नाम दिया है। पेड़ों, बेलों और लताओं पर पाए जाने वाले पतले हरे रंग के साँप को वाइन स्नेक कहा जाता है। यह साँप पश्च्चिमी घाट के दक्षिणी हिस्से में स्थित तमिलनाडु के कलक्काड मुंडनथुराई टाइगर रिज़र्व (Kalakkad Mundanthurai Tiger Reserve) तथा केरल के शेंदुरनी वन्यजीव अभयारण्य (Shendurney Wildlife Sanctuary) के संरक्षित क्षेत्रों में पाया गया है और सुरक्षा की दृष्टि से इसे फिलहाल कोई खतरा नहीं है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में भी वाइन स्नेक जैसी प्रजातियाँ पाई जाती हैं तथा एशियाई वाइन स्नेक पूरे एशिया में पाए जाते हैं।
वर्ष 2020 में जापान की राजधानी टोक्यो में होने वाले 32वें ओलंपिक खेलों के लिये बनाए गए पदकों का अनावरण हाल ही में किया गया। टोक्यो ओलंपिक के लिये बने ये मेडल्स अपने आप में अलग और खास हैं, क्योंकि इन्हें पूरी तरह पुनर्चक्रित (Recycled) उपभोक्ता उपकरणों से बनाया गया है। साथ ही इनका डिज़ाइन भी एक प्रतियोगिता के ज़रिये चुना गया है, जिनमें जापान के 400 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था। अंत में ओसाका डिज़ाइन सोसाइटी के निदेशक जुनिची कावानिशी (Junichi Kawanishi) का डिज़ाइन चुना गया। आयोजकों के अनुसार पहली बार इको-फ्रेंडली मेडल्स बनाए गए हैं और इन्हें बनाने में बड़ी संख्या में मोबाइल फोनों का इस्तेमाल किया गया है। जापान के लोगों ने दो सालों में करीब 6.2 करोड़ मोबाइल फोन दान किये, जिनमें से 32 किलोग्राम सोना निकला गया गया। इसके अलावा पाँच हज़ार ओलंपिक और पैरालंपिक मैडल बनाने के लिये 3.5 टन चाँदी और 2.2 टन कांसा भी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों (मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरा, हैंडहेल्ड गेम्स और लैपटॉप) से निकाला गया। इन मेडल्स को बनाने के लिये टोक्यो ओलंपिक आयोजन समिति ने Tokyo 2020 मेडल प्रोजेक्ट के नाम से एक मुहिम शुरू की थी जिसमें जापान के लोगों से छोटे इलेक्ट्रिक उपकरण इकट्ठे किये गए थे। इसके अलावा पोडियम, मशाल रिले के लिये वर्दी जैसी अन्य चीज़ों को इको-फ्रेंडली वस्तुओं से तैयार किया गया है।