केंद्र सरकार ने जल संकट से निपटने और देश में पानी की कमी से जूझ रहे 255 ज़िलों में 1 जुलाई से जल शक्ति अभियान की शुरूआत की है। इसमें वर्षा के पानी के संचय और संरक्षण के प्रयास किए जाएंगे। इस अभियान में 800 IAS अधिकारियों की भी मदद ली जाएगी, जिनमें संयुक्त सचिव से लेकर अतिरिक्त सचिव रैंक तक के अधिकारी शामिल होंगे। इस अभियान में अंतरिक्ष, पेट्रोलियम और रक्षा क्षेत्र से भी अधिकारियों को शामिल किया जाएगा। इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों के 550 उपसचिव भी अपने-अपने हिस्से में आए ज़िले व ब्लॉक का दौरा करेंगे। यह अभियान 1 जुलाई से 30 सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मानसून के वापस जाने तक विभिन्न राज्यों में चलेगा। इसमें वर्षा के जल संचयन पर फोकस किया जाएगा। 1 अक्तूबर से 30 नवंबर तक उत्तर-पूर्व मानसून वाले राज्य इसमें शामिल होंगे। जल शक्ति और ग्रामीण विकास मंत्रालय मिलकर यह अभियान संचालित कर रहे हैं, जिसकी मोबाइल एप्लीकेशन के ज़रिये रियल टाइम मॉनिटरिंग की जाएगी।
पहली स्टेम सेल रजिस्ट्री खोलने की योजना पर काम कर रहा है। इस रजिस्ट्री के बन जाने से मरीज़ और डोनर के स्टेम सेल की मैचिंग में लगने वाले समय और इलाज की कुल लागत में कमी आने की संभावना है। ज्ञातव्य है कि आनुवंशिक रक्त विकार थैलेसीमिया, अप्लास्टिक एनीमिया और कुछ कैंसर के मामलों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक कारगर इलाज है, जबकि मरीज़ से मिलते-जुलते स्टेम सेल की खोज में समय लग जाता है। इस रजिस्ट्री के बन जाने के बाद मरीज़ की जाँच के कुछ ही मिनटों में डोनर लाया जा सकेगा। इससे डोनर को खोजने में लगने वाले समय में कमी आएगी और डोनर को कोई भुगतान भी नहीं करना होगा। एक अनुमान के अनुसार, देश में सालाना लगभग दो हज़ार स्टेम सेल ट्रांसप्लांट ही होते हैं, जबकि ज़रूरत 80 हज़ार से एक लाख स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की है। स्टेम सेल या मूल कोशिका ऐसी कोशिकाएँ होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता होती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती हैं। इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी क्षतिग्रस्त कोशिका को ठीक करने के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया है। इन जातियों में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, माझी और मछुआ शामिल हैं। प्रदेश सरकार ने यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा एक जनहित याचिका पर दिये गए आदेश के बाद लिया है। यह प्रक्रिया हाईकोर्ट के आदेश के अंतिम फैसले के अधीन होगी। प्रदेश की ये 17 पिछड़ी जातियाँ लंबे समय से उन्हें अनुसूचित जाति की सूची में लाने की मांग कर रही थीं। प्रदेश सरकार के इस फैसले के बाद राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिये आरक्षण) अधिनियम 1994 की धारा-13 के अधीन शक्ति का प्रयोग करते हुए अधिनियम की अनुसूची-1 में जरूरी संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के ज़रिये अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में से उपरोक्त 17 जातियों को निकाल दिया गया है। अब ये 17 पिछड़ी जातियाँ अनुसूचित जाति में गिनी जाएंगी।
1 जुलाई को देशभर में चार्टर्ड अकाउंटेंट दिवस यानी CA डे का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1949 में आज के दिन ही इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) की स्थापना की गई थी। ICAI को संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था। ICAI देश की राष्ट्रीय प्रोफेशनल अकाउंटिंग संस्था है, जो अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक अकाउंटेंट्स के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अकाउंटिग संस्था है। ICAI का आधिकारिक प्रतीक चिह्न गरुड़ है तथा देश में CA का कोर्स कराने की ज़िम्मेदारी इसी के पास है। ICAI चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने की योग्यता को निर्धारित करता है, परीक्षा लेता है तथा लेखांकन की प्रैक्टिस करने का लाइसेंस देता है। इसके अलावा यह RBI, SEBI, MCA, CAG, IRDA आदि जैसी सरकारी संस्थाओं को नीति निर्माण में सहयोग करता है।
अब खुदरा दुकानदार या ई-कॉमर्स कंपनियां भौगोलिक संकेतक (GI) वाले विशेष उत्पादों को बाज़ार में रखने और बेचने के लिये उनके प्रतीक चिन्ह (Logo) और Tagline के इस्तेमाल के लिये उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) से मंज़ूरी ले सकते हैं। ज्ञातव्य है कि भौगोलिक संकेतक मुख्य रूप से विशिष्ट प्रकार के कृषि, प्राकृतिक या विनिर्मित उत्पादों (हस्तशिल्प और औद्योगिक वस्तुओं) को प्रदान किया जाता है, जिनकी उत्पत्ति किसी सुनिश्चित भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी होती है। भौगोलिक संकेतक के रूप में पंजीकृत भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देने तथा विपणन को प्रोत्साहित करने के इरादे से DPIIT ने साझा GI प्रतीक चिह्न और टैगलाइन अगस्त 2018 में जारी किया था। इससे GI उत्पादकों के साथ ही उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ेगी और उन उत्पादों का विपणन और बिक्री बढ़ेगी। भारत में GI प्रतीक चिह्न और टैगलाइन का स्वामित्व DPIIT के पास है। विदेशी GI उत्पादों को प्रतीक चिह्न और टैगलाइन के इस्तेमाल की अनुमति नहीं होगी, भले ही वे भारत में पंजीकृत हों।