विश्वभर में 12 अगस्त का दिन अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का प्रमुख उद्देश्य युवाओं के मुद्दों पर समाज और सरकारों का ध्यान आकर्षित करना है। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस की थीम ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन (Transforming Education) रखी गई है। यह थीम युवाओं द्वारा स्वयं के प्रयासों सहित सभी युवाओं के लिये शिक्षा को अधिक प्रासंगिक, न्यायसंगत और समावेशी बनाने के प्रयासों पर प्रकाश डालती है। विदित हो कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 17 दिसम्बर 1999 को युवा विश्व सम्मलेन के दौरान की गई सिफारिशों को मानते हुए पहली बार वर्ष 2000 में अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन किया गया था। वर्ष 2015 में सुरक्षा परिषद द्वारा पारित संकल्प को अपनाने के बाद से इस मान्यता को बल मिला कि परिवर्तन के एजेंट के रूप में युवा संघर्षों को रोकने और शांति बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1985 को अंतर्राष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया था। भारत में प्रतिवर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। विश्व में भारत को युवाओं का देश कहा जाता है, यहाँ 35 वर्ष की आयु तक के 65 करोड़ युवा हैं।
8 और 9 अगस्त को मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग में भारत सरकार तथा मेघालय सरकार के सहयोग से प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग ने ई-शासन पर 22वें राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन का विषय था– डिजिटल इंडिया: सफलता से उत्कृष्टता। सम्मेलन में व्यापक विचार-विमर्श के पश्चात ई-शासन पर शिलॉन्ग घोषणापत्र को स्वीकार किया गया। सम्मेलन के दौरान 6 उपविषयों पर चर्चा हुई, जिनमें भारत उद्यम वास्तुशास्त्र, डिजिटल अवसंरचना, समावेश और क्षमता निर्माण, सचिवालय सुधार, उपयोगकर्त्ताओं के लिये उभरती तकनीक, राष्ट्रीय ई-शासन सेवा का आकलन करना शामिल था। इसके अलावा चार अन्य विषयों पर भी चर्चा हुई, जिनमें एक राष्ट्र एक प्लेटफार्म, नवोन्मेषियों तथा उद्योग जगत के साथ जुड़ना, राज्य सरकारों की आईटी पहल शामिल थे। इस दौरान ई-शासन के क्षेत्र में भारत के योगदान विषय पर एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई।
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में गोवंश की रक्षा के लिये गौ कल्याण योजना की शुरुआत की है। इसका नाम मुख्यमंत्री बेसहारा गौवंश सहभागिता योजना रखा गया है। विदित हो कि उत्तर प्रदेश में आवारा तथा छुट्टा पशुओं की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे किसान परेशान हैं क्योंकि ये उनकी फसल को नष्ट कर देते हैं। अब राज्य सरकार ने जो योजना पेश की है उससे आवारा पशुओं पर तो रोक लगेगी ही, साथ ही गाँव के बेरोज़गार नौजवानों को रोज़गार भी मिलेगा। सरकार ने इस नई योजना के पहले चरण के लिये 109 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया है। इस योजना के पहले चरण में सरकार, सरकारी गोशालाओं की एक लाख गायों को उन किसानों या ऐसे लोगों को सौंपेगी, जो इनकी देखभाल करने के लिये तैयार हैं। जो व्यक्ति इन गौवंश की देखभाल करेगा, उसे एक गाय के लिये प्रतिदिन 30 रुपए दिये जाएंगे यानी प्रदेश सरकार हर महीने ऐसे व्यक्ति के बैंक खाते में 900 रुपए जमा करेगी। अभी तीन महीने का पैसा एक साथ दिया जाएगा तथा उसके बाद हर महीने 900 रुपए खाते में डाले जाएंगे। वर्ष 2012 की पशु गणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 205.66 लाख पशु हैं, जिनमें से 10-12 लाख आवारा पशु हैं। राज्य में 523 पंजीकृत गौशालाएँ हैं तथा कई अन्य को बनाने की प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 2019-20 के बजट में राज्य सरकार ने पशु कल्याण के लिये कुल 600 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है, जिसमें से गाँवों में पशु आश्रय स्थलों को तैयार करने और रखरखाव के लिये 250 करोड़ रुपए रखे गए हैं, जबकि शहरों में इसी काम के लिये 200 करोड़ रुपए दिये जाने हैं।
10 अगस्त को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने झारखंड सरकार की मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना लॉन्च की। झारखंड सरकार ने प्रदेश के किसानों की आमदनी बढ़ाने हेतु इस योजना की शुरुआत की है। इस योजना के तहत राज्य के सभी लघु एवं सीमांत किसान, जिनके पास अधिकतम 5 एकड़ तक कृषि योग्य भूमि है, उन्हें 5000 रुपए प्रति एकड़ प्रतिवर्ष की दर से सहायता अनुदान दिया जाएगा, जिससे उनकी ऋण पर निर्भरता कम होगी। यह राशि दो किस्तों में दी जाएगी। इस योजना से सभी योग्य किसानों को प्रतिवर्ष न्यूनतम 5000 तथा अधिकतम 25 हज़ार रुपए मिलेंगे। यह राशि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजी जाएगी। इस वर्ष राज्य के लगभग 35 लाख किसानों को लाभ पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है, जिसके प्रथम चरण में लगभग 10 लाख किसानों के बैंक खातों में लगभग 380 करोड़ रुपए हस्तांतरित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने का संकल्प लिया है। इसी क्रम में सरकार ने 23 अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में लगातार वृद्धि की है तथा वनवासियों के लिये वन उत्पादों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है।