अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के वाराणसी स्थित केंद्र ने कम पानी में अधिक उपज देने वाले धान की नई प्रजाति का विकास किया है। DRR-44 नामक धान की यह किस्म जल्दी ही किसानों को उपलब्ध कराई जाएगी क्योंकि इसके लिये नेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट, कटक की स्वीकृति मिल चुकी है। सूखे की स्थिति में भी धान की इस नई किस्म से कुछ-न-कुछ (प्रति एकड़ ढाई से तीन टन) फसल ली जा सकेगी। आपको बता दें कि IRRI के इस केंद्र का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष 29 दिसंबर को किया था। यह उत्तर प्रदेश का ऐसा एकमात्र केंद्र है जिसे IRRI कृषि मंत्रालय के सहयोग से संचालित कर रहा है।
मध्य प्रदेश सरकार ने देश का पहला हीरा संग्रहालय छतरपुर ज़िले के खजुराहो में बनाने का फैसला किया है। इस संग्रहालय में पन्ना की खदानों से मिले 323 कैरेट के हीरे रखे जाएंगे। इस संग्रहालय में एक नीलामी केंद्र भी बनाया जाएगा, जिसमें पन्ना की हीरा खदानों से निकले हीरों की नीलामी की जाएगी। इसके लिये पन्ना ज़िले के नीलामी केंद्र को इस संग्रहालय में शिफ्ट किया जा सकता है। इस संग्रहालय के निर्माण के लिये नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (NMDC) भी आर्थिक सहायता देने को तैयार हो गया है। आपको बता दें कि पन्ना ज़िले के मझगवां खदान ही भारत का एकमात्र संगठित हीरा उपक्रम है।
अफ्रीकी देश लीबिया में अचानक बिगड़े हालात की वज़ह से भारत ने शांति सेना में शामिल CRPF के 15 जवानों को देश वापस बुला लिया है। ट्यूनीशिया स्थित भारतीय दूतावास ने इसके लिये पहल की थी। गौरतलब है कि ट्यूनीशिया स्थित भारतीय दूतावास के पास ही लीबिया का भी प्रभार है। गौरतलब है कि लीबिया के सशस्त्र बागी नेता जनरल खलीफा हफ्फार की संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस से हुई मुलाकात के बेनतीजा रहने के बागी सेनाओं को राजधानी त्रिपोली की ओर कूच किया। त्रिपोली में फिलहाल लीबिया की वैश्विक मान्यता प्राप्त सरकार काम कर रही है।
पेरू में रॉयल बेल्जियन संस्थान के वैज्ञानिकों को प्राचीन चार पैरों वाली व्हेल के जीवाश्म मिले हैं। इस व्हेल के पैर जालीदार होने के खुरयुक्त थे। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लगभग 4.3 करोड़ साल पहले पाई जाने वाली यह व्हेल ज़मीन पर चलती थी और समुद्र में भी तैर लेती थी यानी कि यह उभयचर थी। इस अनोखी व्हेल के बारे में और भी कई रोचक जानकारियाँ मिली हैं। इससे दुनियाभर में व्हेल के फैलाव और विकास के बारे में जानने में मदद मिलेगी।
ऑस्ट्रेलिया के आर्क सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर कोरल रीफ स्टडीज़ के शोधकर्त्ताओं ने ग्रेट बैरियर रीफ पर एक व्यापक अध्ययन किया है। इस अध्ययन से पता चलता है कि 2014-15 में मूंगे की इन चट्टानों को लगातार दो चक्रवातों का सामना करना पड़ा था, जिसकी वज़ह से यहाँ की लगभग 80% वयस्क मूंगे की चट्टानें नष्ट हो गई थीं, लेकिन नई बनने वाली चट्टानों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लेकिन लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग से इन चट्टानों के जमने/बनने का क्रम प्रभावित होने लगा है। गौरतलब है कि विश्व-प्रसिद्ध ग्रेट बैरियर रीफ में 1998 से अब तक विरंजन (Bleaching) के चार दौर आ चुके हैं। ग्रेट बैरियर रीफ ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर लगभग 1.33 लाख वर्ग मील क्षेत्र फैली हैं और इससे होने वाले पर्यटन की वज़ह से ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में वार्षिक लगभग 31 हज़ार करोड़ रुपए का योगदान होता है।