Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 मई, 2020 | 11 May 2020
डिफेंस रिसर्च अल्ट्रावायोलेट सेनेटाइज़र
हैदराबाद स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) की प्रयोगशाला में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, कागज़ों और करंसी नोटों को संक्रमण-मुक्त करने के लिये एक स्वचालित अल्ट्रावायलेट प्रणाली विकसित की है, जिसे डिफेंस रिसर्च अल्ट्रावायोलेट सेनेटाइज़र (Defence Research Ultraviolet Sanitiser-DRUVS) नाम दिया गया है। इस प्रणाली को मुख्य रूप से मोबाइल फोन, आईपैड, लैपटॉप, करेंसी नोट, चेक, चालान, पासबुक, कागज़, लिफाफे आदि को कीटाणुमुक्त करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इस उपकरण का संचालन संपर्कहीन है जो विषाणु के प्रसार को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह एक डिब्बे के भीतर रखी वस्तु को 360 डिग्री पर अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में लाता है। एक बार प्रयोग करने के पश्चात् यह उपकरण अपने आप बंद हो जाता है और संचालक को इसके नज़दीक खड़े होने की आवश्यकता नहीं होती है। DRDO की प्रयोगशाला ने एक स्वचालित करेंसी नोट सैनिटाइज़िंग उपकरण भी विकसित किया है, जिसे नोट्सक्लीन (NOTESCLEAN) नाम दिया गया है। इस उपकरण का उपयोग करके नोटों के बंडलों को कीटाणुमुक्त किया जा सकता है, हालाँकि इसका उपयोग करते हुए प्रत्येक करेंसी नोट को कीटाणुमुक्त करने की इस प्रक्रिया में काफी समय लगेगा।
महाराणा प्रताप जयंती
09 मई, 2020 को देश भर में महान योद्धा और अद्भुत शौर्य व साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप की जयंती मनाई गई। ध्यातव्य है कि महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में 9 मई, 1540 को सिसोदिया राजवंश में हुआ था। राणा प्रताप के पिता उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात् 1 मार्च, 1576 को महाराणा प्रताप को मेवाड़ का शासन प्राप्त हुआ। महाराणा प्रताप के राज्य की राजधानी उदयपुर थी। भारतीय इतिहास में जितनी चर्चा महाराणा प्रताप की बहादुरी की है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक की भी है। महाराणा प्रताप की वीरता की कहानियों में चेतक का एक विशेष स्थान है। उसकी फुर्ती, रफ्तार और बहादुरी की कई लड़ाइयाँ जीतने में अहम भूमिका रही है। उदयपुर से नाथद्वारा की ओर जाने वाले मार्ग के पास स्थिति पहाड़ियों के बीच मौजूद हल्दीघाटी वह प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ 1576 ई. में महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार, 1576 ई. में हुए इस युद्ध में करीब 20 हज़ार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया था। 29 जनवरी, 1597 ई. को महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई थी।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस
देश भर में प्रत्येक वर्ष 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (National Technology Day) मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों को याद करना है। ध्यातव्य है कि शैक्षणिक संस्थान तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित संस्थान इस दिवस को भारत की प्रौद्योगिकी क्षमता के विकास को बढ़ावा देने के लिये मनाते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 में 11 मई को ही भारत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में अपना दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया था, यह परमाणु परीक्षण राजस्थान के पोखरण में संपन्न हुआ था। इस दिवस का आयोजन प्रत्येक वर्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) द्वारा किया जाता है और मंत्रालय इस अवसर आर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करता है। इस दिवस को स्वदेशी वायुयान हंसा-III (HANSA-III) के रूप में भी याद किया जाता है। इसके अतिरिक्त 11 मई 1988 को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) ने सतह से हवा में मार करने वाली त्रिशूल मिसाइल का अंतिम परीक्षण किया था। इस प्रकार 11 मई विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की विकास यात्रा के कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों का प्रत्यक्षदर्शी रहा है।
हरि शंकर वासुदेवन
प्रसिद्ध इतिहासकार हरि शंकर वासुदेवन का COVID-19 के कारण 63 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वासुदेवन को रूस तथा मध्य एशिया के इतिहासकारों में अग्रणी नामों में से एक माना जाता है। इसके अतिरिक्त वे भारत-रूस संबंधों के विशेषज्ञों के रूप में भी जाने जाते थे। वर्तमान में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे थे। इससे पूर्व उन्होंने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत ‘मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़’, कोलकाता के निदेशक के रूप में भी कार्य किया था। हरि शंकर वासुदेवन ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (University of Cambridge) से स्नातक किया था, जहाँ से उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर (Postgraduate) और पीएचडी (PhD) भी पूरी की थी। हरि शंकर वासुदेवन वर्ष 2011 से वर्ष 2014 के मध्य भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (Indian Council of Historical Research) के सदस्य भी रहे थे।