रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 28 से 30 जुलाई तक मोजाम्बिक की आधिकारिक यात्रा पर गए थे। रक्षा मंत्री बनने के बाद राजनाथ सिंह की यह पहली विदेश यात्रा और भारत के किसी रक्षा मंत्री की पहली मोजाम्बिक यात्रा थी। भारत के रक्षा मंत्री ने मोजाम्बिक की राजधानी मापुतो में प्रधानमंत्री कार्लोस अगोस्तिन्हो डो रोसैरियो से वार्ता की तथा अपने समकक्ष अटान्सिओ सल्वाडोर एम. तुमुके के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता में हिस्सा लिया। वार्ता के बाद भारत और मोजाम्बिक के बीच असैन्य पोत नौवहन से जुड़ी जानकारी साझा करने तथा जल सर्वेक्षण (हाइड्रोग्राफी) में सहयोग पर दो समझौते हुए। दोनों समझौतों से भारत-मोजाम्बिक के बीच जारी रक्षा सहयोग को और मज़बूती मिलेगी तथा साथ ही इस यात्रा से मोजाम्बिक और भारत के बीच रक्षा सहयोग बढ़ेगा और ऐसी संभावित भागीदारियों से हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा। इस दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने संचार उपकरण सहयोग का ऐलान किया तथा तस्करी, आतंकवाद, पायरेसी, अवैध शिकार आदि गैर पारंपरिक चुनौतियों से बचने के लिये मिलकर काम करने और समुद्री क्षेत्र में व्यापक सहयोग के महत्त्व का उल्लेख किया। भारत ने मोजाम्बिक को दो फास्ट इंटरसेप्टर बोट्स भी प्रदान कीं।
इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल साइंस (IUGS) की कार्यकारी समिति ने ग्लोबल हैरिटेज स्टोन रिसोर्स के भारतीय शोध दल के प्रस्ताव को मानते हुए मकराना के मार्बल को विश्व विरासत का दर्जा दे दिया। मकराना मार्बल भूगर्भीय दृष्टि से पूर्व केम्ब्रियन काल की कायांतरित चट्टान है, जो मूलत: चूना पत्थर के कायांतरण से बनती है। इसे आम बोलचाल में संगमरमर कहते हैं। मकराना का संगमरमर विश्व की सबसे उत्कृष्ट श्रेणी में से एक माना जाता है। यह विशुद्ध रूप से केल्साइट खनिज से बना होता है। इसमें अशुद्धियाँ बिल्कुल नहीं होने के कारण यह पूर्णत: सफेद होता है और समय के साथ बदरंग नहीं होता। IUGS ने मकराना मार्बल के अलावा स्पेन के एल्पेड्रेट ग्रेनाइट और मेकिइल मार्बल, UK के बाथ स्टोन, इटली के पिएट्रा सिरेना और रोजा बीटा ग्रेनाइट को इस सूची में शामिल किया है। ज्ञातव्य है कि पृथ्वी को बचाने और ज़मीन के नीचे खोज के लिये वैश्विक सहयोग से वर्ष 1961 में IUGS का गठन किया गया था तथा 121 देश इसके सदस्य हैं।
ओडिशा को अपने ‘रसगुल्ले’ के लिये बहुप्रतीक्षित भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिल गया है। चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेत रजिस्ट्रार ने वस्तु भौगोलिक संकेत (पंजीकरण एवं संरक्षण), कानून 1999 के तहत इस मिठाई को ‘ओडिशा रसगुल्ला’ के तौर पर दर्ज करने का प्रमाणपत्र जारी किया। यह प्रमाणपत्र 22 फरवरी, 2028 तक वैध रहेगा। गौरतलब है कि GI टैग किसी वस्तु के किसी खास क्षेत्र या इलाके में विशिष्टता होने की मान्यता देता है। वर्ष 2015 से ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बीच रसगुल्ले का मूल स्थान होने को लेकर विवाद चलता रहा है। पश्चिम बंगाल को वर्ष 2017 में उसके ‘रसगुल्ले’ के लिये GI टैग प्राप्त हुआ था। इसके अगले साल, ओडिशा लघु उद्योग निगम लिमिटेड (OAIC) ने रसगुल्ला कारोबारियों के समूह उत्कल मिष्ठान व्यवसायी समिति के साथ मिलकर ‘ओडिशा रसगुल्ले’ को GI टैग देने के लिये आवेदन किया था। ओडिशा में ‘रसगुल्ला’ भगवान जगन्नाथ के लिये निभाई जाने वाली राज्य की सदियों पुरानी परंपराओं का हिस्सा रहा है और इसका उल्लेख 15वीं सदी के उड़िया काव्य ‘दांडी रामायण’ में भी है।
देश में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने उर्वरक क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों की उनके पर्यावरण संबंधी प्रदर्शन के लिये पहली बार ग्रीन रेटिंग जारी की है। देश में काम कर रही 28 उर्वरक कंपनियों में से जगदीशपुर की इंडो-गल्फ फर्टिलाइजर्स को पर्यावरण के प्रति सबसे अच्छा प्रदर्शन के लिये चार-पत्ती अवार्ड दिया गया है। गुजरात की कृषक भारती को-ऑपरेटिव कंपनी सहित 15 कंपनियों को तीन-पत्ती अवार्ड तथा बठिंडा की नेशनल फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड सहित तीन कंपनियों को दो-पत्ती और पानीपत की नेशनल फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड सहित चार कंपनियों को एक-पत्ती अवार्ड दिया गया है। इन कंपनियों को छह श्रेणियों में बाँटा गया और इनके लिये 50 पैरामीटर तय किये गए। ग्रेन-बाई-ग्रेन नामक इस रिपोर्ट में भारत के उर्वरक उद्योग के पर्यावरण संबंधी परफॉरमेंस का व्यापक आकलन किया गया है। ग्रीन रेटिंग का यह सातवाँ प्रोजेक्ट है। इससे पहले पल्प एवं पेपर, ऑटोमोबाइल, क्लोरिक क्षार, सीमेंट, लौह तथा इस्पात एवं थर्मल पावर सेक्टर को ग्रीन रेटिंग जारी की गई है। आपको बता दें कि वर्ष 1997 में पहली बार ग्रीन रेटिंग जारी की गई थी, जिसका उद्देश्य भारतीय कंपनियों द्वारा पर्यावरण के प्रति निभाई जा रही ज़िम्मेवारियों का स्वतंत्र एजेंसी के तौर पर आकलन करना था।
छत्तीसगढ़ में माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च, ट्रिपल IT नया रायपुर और सीजीनेट स्वर फाउंडेशन ने एक साल तक काम करने के बाद एक आदिवासी रेडियो एप का विकास किया है। इस एप में टेक्स्ट टू स्पीच तकनीक का उपयोग किया गया है, जिसमें लिखे हुए समाचार को मशीन की मदद से सुना भी जा सकेगा। गोंडी जैसी आदिवासी भाषाओं, जिसे बहुत से लोग पढ़ नहीं सकते, उनके लिये यह एप बहुत उपयोगी होगा। माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च की टीम हिंदी एवं अन्य भाषाओं में मशीन की मदद से अनुवाद करने की विधि बनाने पर भी काम कर रही है। इस कार्य की शुरुआत के लिये सीजीनेट स्वर ने गोंडी में बच्चों की 400 कहानियों का अनुवाद किया है। हिंदी से गोंडी में अनुवाद की गई कहानियों के इन 10 हजार वाक्यों को अब मशीन से अनुवाद करने के लिये कम्प्यूटर में फीड किया जाएगा। इस प्रयोग के सफल होने के बाद मशीन हिंदी और अन्य भाषाओं से गोंडी में तथा गोंडी से अन्य भाषाओं में अनुवाद कर सकेगी, जैसा कि अन्य उन्नत भाषाओं में होता है।