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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड-19 की त्वरित जाँच के लिये रैपिड ब्लड टेस्ट

  • 19 Jan 2021
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

सेंट लुइस में स्थित वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ मेडिसिन’ (School of Medicine) के वैज्ञानिकों ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया है, जिसमें कहा गया है कि अपेक्षाकृत सरल और तीव्र गति से होने वाले एक रक्त परीक्षण से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किन COVID-19 रोगियों को गंभीर समस्याओं से ग्रसित होने या मृत्यु का सर्वाधिक खतरा है।

प्रमुख बिंदु

रक्त की जाँच के विषय में:

  • यह माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के स्तर को मापता है। यह एक अद्वितीय डीएनए अणु है जो आमतौर पर कोशिकाओं के ऊर्जा केंद्रों के अंदर होता है।
  • माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का कोशिकाओं के बाहर और रक्त में प्रवाहित होना इस बात का संकेत है कि शरीर में एक विशेष प्रकार की उग्र कोशिका की मृत्यु हो रही है।

अध्ययन:

  • इस अध्ययन में टीम ने कोविड-19 के 97 रोगियों के परीक्षण के लिये अस्पताल में भर्ती होने के दिन उनके माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के स्तर को मापा।
  • उन्होंने पाया कि आईसीयू में भर्ती या मृत रोगियों में माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का स्तर बहुत अधिक था।
    • यह अध्ययन उम्र, लिंग और अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों से स्वतंत्र रोगियों से संबंधित था।

महत्त्व: 

  • यह परीक्षण रोग की गंभीरता के साथ-साथ नैदानिक परीक्षणों को बेहतर बनाने के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है, जिसके माध्यम से रोगियों की बेहतर पहचान की जा सकती है।
  • यह परीक्षण नए उपचारों की प्रभावशीलता को  निगरानी करने के नए तरीके के रूप में प्रयोग कर सकता है। संभवतः इसका प्रभावी उपचार माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के स्तर को कम करेगा।
  • इसके अलावा इस परीक्षण ने बेहतर परिणामों की भविष्यवाणी की है जो मौजूदा परीक्षणों की तुलना में बेहतर है।
    • कोविड-19 के रोगियों में मापे जाने वाले अधिकांश ‘मार्कर्स ऑफ इन्फ्लेमेशन’ जिनकी अभी भी जाँच चल रही है, वे कोशिका मृत्यु के लिये विशिष्ट रूप से उत्तरदायी सूजन के सामान्य निशान हैं।
    • ‘इन्फ्लेमेशन’ चोट या संक्रमण के लिये शरीर की अंतर्जात प्रतिक्रिया है।
      • ‘इन्फ्लेमेशन’ के दौरान कुछ प्रोटीन रक्त में प्रवाहित होते हैं; यदि उनकी सांद्रता कम-से-कम 25% बढ़ती या घटती है तो उन्हें प्रणालीगत उत्प्रेरकों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

माइटोकॉन्ड्रियल DNA:

  • यह माइटोकॉन्ड्रिया के अंदर पाया जाने वाला छोटा गोलाकार गुणसूत्र है।
    • माइटोकॉन्ड्रिया उन कोशिकाओं में पाए जाने वाले अंग हैं जो ऊर्जा उत्पादन के स्थल हैं। ये ‘एडिनोसिन ट्राइ फॉस्फेट’ (Adenosine Triphosphate) के रूप में कोशिकीय ऊर्जा का उत्पादन करते हैं, इसलिये इसे कोशिका का 'पॉवर हाउस' कहा जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया विखंडन द्वारा विभाजित होता है।
  • यह नाभिक में मौजूद डीएनए (Deoxyribonucleic Acid) से अलग है।
    • माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए छोटा और गोलाकार होता है। इसमें केवल 16,500 या इतने ही बेस पेयर्स (Base Pairs) होते हैं। यह उन विभिन्न प्रोटीनों का कूट-लेखन करता है जो माइटोकॉन्ड्रिया के लिये विशिष्ट हैं।
    • नाभिकीय जीनोम रैखिक होता है और लगभग 3.3 बिलियन डीएनए बेस पेयर्स (Base Pairs) से मिलकर बना है।
    • माइटोकॉन्ड्रियल जीन आवरण के साथ-साथ क्रोमेटिन से भी युक्त नहीं होता है।
    • नाभिकीय डीएनए के विपरीत माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए माता से विरासत में मिलता है, जबकि नाभिकीय डीएनए माता-पिता दोनों से विरासत में मिलता है।
  • यदि माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए बेस (Mitochondrial DNA Bases) में से कुछ में दोष है तो यह एक उत्परिवर्तन कहलाता है। अगर एक माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी होगी तो मांसपेशियाँ , मस्तिष्क और किडनी जैसे अंग पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न करने में असमर्थ होंगे।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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