रामकृष्ण मिशन के 'जागृति' कार्यक्रम | 16 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:रामकृष्ण मिशन का 'जागृति' कार्यक्रम, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), स्वामी विवेकानंद। मेन्स के लिये:स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने स्कूली छात्रों के लिये रामकृष्ण मिशन के 'जागृति' कार्यक्रम की शुरुआत की।
‘जागृति' कार्यक्रम:
- परिचय:
- यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP), 2020 के अनुरूप एक बच्चे के समग्र व्यक्तित्व विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में एक पहल है।
- यह पहली से पाँचवीं कक्षा तक के छात्रों के लिये है।
- पृष्ठभूमि:
- रामकृष्ण मिशन, दिल्ली शाखा, वर्ष 2014 से माध्यमिक विद्यालय के छात्रों को "आत्मश्रद्धा" (आत्म-सम्मान) निर्माण और विकल्पों के चयन में सक्षम बनाने के लिये जागृत नागरिक कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। यह उन्हें जीवन की सभी समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करता है।
- शिक्षाविदों की ओर से प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिये इसी तरह के कार्यक्रम की मांग की गई है।
- इसके जवाब में 'जागृति' को 126 स्कूलों के लिये डिज़ाइन और संचालित किया गया है।
- केंद्र बिंदु:
- सामाजिक परिवर्तन शिक्षा के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है।
- मूल्य और ज्ञान भौतिक सुखों से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
- भविष्य के लिये तैयार और सामाजिक रूप से जागरूक पीढ़ी के निर्माण के लिये मूल्य आधारित शिक्षा आवश्यक है।
रामकृष्ण मिशन:
- परिचय:
- रामकृष्ण मिशन व्यापक शैक्षिक और परोपकारी कार्य करता है तथा भारतीय दर्शन के एक स्कूल अद्वैत वेदांत के आधुनिक संस्करण की व्याख्या करता है।
- मिशन की स्थापना वर्ष 1897 में विवेकानंद द्वारा कोलकाता के पास संत रामकृष्ण (वर्ष 1836-86) के जीवन में सन्निहित वेदांत की शिक्षाओं का प्रसार करना और भारतीय लोगों की सामाजिक स्थितियों में सुधार करने के दोहरे उद्देश्य के साथ की गई थी।
- संगठनों को 19वीं सदी के बंगाल के महान संत श्री रामकृष्ण (1836-1886) जिन्हें आधुनिक युग का पैगंबर माना जाता है तथा उनके प्रमुख शिष्य स्वामी विवेकानंद (1863-1902) द्वारा अस्तित्व में लाया गया था।
- आदर्श वाक्य: "आत्मानो मोक्षार्थं जगद हिताय चा" ("अपने स्वयं के उद्धार और दुनिया के कल्याण के लिये")।
स्वामी विवेकानंद:
- जन्म:
- स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ तथा उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।
- प्रत्येक वर्ष स्वामी विवेकानंद की जयंती (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
- वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजीत सिंह के अनुरोध पर उन्होंने 'विवेकानंद' नाम अपनाया।
- योगदान:
- उन्होंने विश्व को वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से परिचित कराया।
- उन्होंने 'नव-वेदांत' का प्रचार किया, एक पश्चिमी धारा के माध्यम से हिंदू धर्म की व्याख्या और भौतिक प्रगति के साथ आध्यात्मिकता के संयोजन में विश्वास किया।
- विवेकानंद ने मातृभूमि के उत्थान के लिये शिक्षा पर सबसे अधिक बल दिया। मानव हेतु चरित्र-निर्माण की शिक्षा की वकालत की।
- उन्हें वर्ष 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में दिये गए उनके भाषण के लिये जाना जाता है।
- सांसारिक सुख और मोह से मोक्ष प्राप्त करने के चार मार्गों का वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तकों (राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग) में किया है।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विवेकानंद को "आधुनिक भारत का निर्माता" कहा था।
- उन्होंने विश्व को वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से परिचित कराया।
- संबंधित संगठन:
- वह 19वीं सदी के रहस्यवादी रामकृष्ण परमहंस के मुख्य शिष्य थे और उन्होंने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
- रामकृष्ण मिशन एक ऐसा संगठन है जो मूल्य आधारित शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण, युवा एवं आदिवासी कल्याण एवं राहत तथा पुनर्वास के क्षेत्र में काम करता है।
- वर्ष 1899 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की, जो उनका स्थायी निवास बन गया।
- वह 19वीं सदी के रहस्यवादी रामकृष्ण परमहंस के मुख्य शिष्य थे और उन्होंने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
- राष्ट्रवाद:
- हालाँकि राष्ट्रवाद के विकास का श्रेय पश्चिमी प्रभाव को जाता है लेकिन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय आध्यात्मिकता और नैतिकता में गहराई से निहित है।
- उनका राष्ट्रवाद मानवतावाद और सार्वभौमिकता पर आधारित है, जो भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं।
- पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत जो प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष है, स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रक्त है।
- उनके राष्ट्रवाद के आधार हैं:
- जनता, स्वतंत्रता और समानता के लिये गहरी चिंता व्यक्त की और सार्वभौमिक भाईचारे के आधार पर दुनिया के आध्यात्मिक एकीकरण पर बल दिया।
- "कर्मयोग" निःस्वार्थ सेवा के माध्यम से राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये नैतिकता की एक प्रणाली है।
- उनके लेखन और भाषणों ने मातृभूमि को देशवासियों द्वारा मन और दिल से पूजे जाने वाले एकमात्र देवता के रूप में स्थापित किया।
- मृत्यु:
- वर्ष 1902 में बेलूर मठ में उनकी मृत्यु हो गई। पश्चिम बंगाल में स्थित बेलूर मठ, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है।