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भारतीय राजव्यवस्था

प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ शब्द को हटाने का प्रस्ताव

  • 19 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

समाजवाद, 42वाँ संविधान संशोधन

मेन्स के लिये:

संविधान की प्रस्तावना से संबंधित विषय, 42वें संविधान संशोधन के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

सत्तारूढ़ दल के एक राज्यसभा सदस्य ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ शब्द हटाने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसे जल्द ही सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • राज्यसभा सदस्य ने यह तर्क दिया है कि यह शब्द वर्तमान परिदृश्य में ‘निरर्थक’ है और इसे ‘एक विशेष विचार के बिना आर्थिक सोच’ के लिये जगह बनाने हेतु छोड़ दिया जाना चाहिये।
  • ध्यातव्य है कि बीते कुछ समय से कई संगठनों द्वारा इस प्रकार की मांग की जा रही है। इस संदर्भ में विवाद तब उत्पन्न हुआ जब वर्ष 2015 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक सरकारी विज्ञापन में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और 'समाजवाद' शब्द गायब थे। 
  • राज्यसभा सदस्य द्वारा तैयार किये गए विधेयक में दावा किया गया है कि आपातकाल लागू होने के कारण इस शब्द को संविधान में बिना किसी चर्चा के ही शामिल कर लिया गया है।

समाजवाद का अर्थ

भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद है अर्थात् यहाँ उत्पादन और वितरण के साधनों पर निजी और सार्वजानिक दोनों क्षेत्रों का अधिकार है। भारतीय समाजवाद का चरित्र गांधीवादी समाजवाद की ओर अधिक झुका हुआ है, जिसका उद्देश्य अभाव, उपेक्षा और अवसरों की असमानता का अंत करना है। समाजवाद मुख्य रूप से जनकल्याण को महत्त्व देता है, यह सभी लोगों को राजनैतिक व आर्थिक समानता प्रदान करने के साथ ही वर्ग आधारित शोषण को समाप्त करता है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना

  • सामान्य अवधारणा के अनुसार, संविधान नियमों और उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज़ है, जिसके आधार पर किसी राष्ट्र की सरकार का संचालन किया जाता है। 
  • यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है। कहा जा सकता है कि प्रत्येक देश का संविधान उस देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का संचित प्रतिबिंब होता है।
  • इस संदर्भ में भारतीय संविधान का एक विशेष महत्त्व है। उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना मूल रूप से जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किये गए 'उद्देश्य प्रस्ताव' पर आधारित है। 
  • संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों के लिये राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक न्याय के साथ स्वतंत्रता के सभी रूप शामिल हैं। प्रस्तावना नागरिकों को आपसी भाईचारा व बंधुत्व के माध्यम से व्यक्ति के सम्मान तथा देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने का संदेश देती है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार, भारत एक समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक राष्ट्र है।
  • विदित है कि वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया गया और इसमें तीन नए शब्द (समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता) जोड़े गए।

42वाँ संविधान संशोधन

  • 42वें संविधान संशोधन को लघु संविधान के रूप में भी जाना जाता है। इसके तहत प्रस्तावना में नए शब्द जोड़ने के अलावा कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए थे जो निम्नलिखित हैं-
    • सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर संविधान संशोधन के माध्यम से मूल कर्त्तव्यों की व्यवस्था की गई।
    • इसमें राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह को मानने के लिये बाध्य का किया गया।
    • इसके तहत संवैधानिक संशोधन को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर कर नीति निर्देशक तत्त्वों को व्यापक बनाया गया।
    • शिक्षा, वन, वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन तथा उच्चतम और उच्च न्यायालय के अलावा सभी न्यायालयों के गठन और संगठन के विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया।

प्रस्तावना में संशोधन

  • वर्ष 1973 तक सर्वोच्च न्यायालय का मत था कि संविधान की प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है, इसलिये इसमें संशोधन भी नहीं किया जा सकता है।
  • किंतु वर्ष 1973 में केशवानंद भारती मामले सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और संसद को प्रस्तावना में संशोधन करने का पूरा अधिकार है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के पश्चात् संसद ने 42वाँ संविधान संशोधन कर संविधान की प्रस्तावना में नए शब्द जोड़े।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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