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ओबीसी कोटे में वृद्धि हेतु राजस्थान में विधेयक पारित

  • 27 Oct 2017
  • 6 min read

संदर्भ

हाल ही में राजस्थान विधानसभा ने एक विधेयक पारित करते हुए ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (other backward classes-OBC) को सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में मिलने वाले आरक्षण में वृद्धि कर क्रमशः 21% व 26% कर दिया है। दरअसल, इस विधेयक के तहत गुज्जर और चार अन्य खानाबदोश समुदायों को आरक्षण का लाभ मुहैया कराने के लिये अन्य पिछड़े वर्ग के अंतर्गत ‘अत्यंत पिछड़े वर्गों’(most backward classes) की श्रेणी का सृजन किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • पिछड़ा वर्ग (राज्य के शिक्षण संस्थानों और राज्य के अंतर्गत आने वाली सरकारी सेवाओं में सीटों का आरक्षण) विधेयक, 2017 में गुज्जर, बंजारा, गडिया लोहार, रैका और गडरिया समुदायों के लिये 5% आरक्षण का प्रावधान है। अतः इस विधेयक के पारित होने के साथ ही राजस्थान में दिया जाने वाला कुल आरक्षण अब 54% हो गया है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई आरक्षण की न्यूनतम सीमा 50% से अधिक हो गया है।
  • इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित करने के पश्चात् राजस्थान विधानसभा को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया गया है।
  • इससे पहले गुज्जर और अन्य खानाबदोश समुदायों को एक विशेष पिछड़ा वर्ग समुदाय में रखा गया था और राज्य सरकार ने उन्हें 5% आरक्षण देने के लिये तीन बार प्रयास भी किया था, परन्तु इस कानून को हर बार राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा अस्वीकार कर दिया गया।   न्यायालय का तर्क था कि राज्य में कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • गुज्जरों द्वारा किये जाने वाले आन्दोलन के पश्चात् भारतीय जनता दल की सरकार ने उन्हें यह आश्वसन दिया था कि संशोधित ओबीसी कोटे में इन अत्यधिक पिछड़े वर्गों को 5% आरक्षण दिया जाएगा। यह कहा गया है कि राज्य की ओबीसी जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए आरक्षण में वृद्धि की जाएगी जो कि कानूनी रूप से स्वीकार्य भी है।
  • वर्तमान में राजस्थान के 91 समुदायों (जो कि राज्य की जनसंख्या का 52% हैं) को ‘अन्य पिछड़े वर्ग’ की श्रेणी में रखा गया है और राज्य अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने उन्हें आरक्षण देने की सिफारिश की थी। इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि राजस्थान में कुछ विशेष परिस्थितियाँ मौजूद हैं जिस कारण अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण की 50% की सीमा से परे जाकर भी आरक्षण दिया जा सकता है।

50% आरक्षण का अर्थ?

  • इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि अनुसूचित जातियों/जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों अथवा विशेष श्रेणियों के लिये कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • यह निर्णय तमिलनाडु के कानून के संदर्भ में दिया गया था, जिसके तहत इन समुदायों को रोज़गार और शिक्षा में 69% आरक्षण देने का प्रावधान था।
  • इंद्रा साहनी मामले में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का यह कहना था कि आरक्षण दो तरह के होते हैं- क्षैतिज और लम्बवत् और उन्हें इस प्रकार से लागू किया जाना चाहिये कि वे 50% से अधिक न हों। ऐसा आरक्षणों के मध्य समन्वय स्थापित करके किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत अनुसूचित जातियों/जनजातियों और पिछड़े वर्गों को दिये जाने वाले आरक्षण को ‘लंबवत् आरक्षण’(vertical reservation) कहा जाता है, जबकि अनुच्छेद 16(1) के तहत शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों को दिये जाने वाले आरक्षण को ‘क्षैतिज आरक्षण’ (horizontal reservation) कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इन दोनों आरक्षणों के मध्य समन्वय स्थापित कर आरक्षण का जो तीसरा रूप दिखाई देता है, उसे ही ‘इंटरलॉकिंग आरक्षण’ कहा जाता है।  
  • उचित तरीका यह है कि सबसे पहले मेरिट के आधार पर शारीरिक दृष्टि से विकलांग व्यक्तियों द्वारा ही 50% सीटें भरी जाएँ, जबकि उसके बाद यदि सीटें रिक्त बचती हैं तो उनमें सामाजिक आरक्षण प्राप्त अनुसूचित जाति/जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को स्थान दिया जाना चाहिये। इसके बाद यह देखना होगा कि विशेष आरक्षण की श्रेणी में आने वाले कितने अभ्यर्थियों को इस आधार पर चुना गया है।
  • यदि इस तरीके से क्षैतिज आरक्षण के लिये निश्चित किये गए स्थानों को भर लिया जाता है तो यह एक समग्र क्षैतिज आरक्षण होगा और किसी प्रकार का सवाल नहीं उठेगा।
  • वर्तमान में सामान्य श्रेणी के लिये लंबवत् आरक्षण 50% है, जबकि अनुचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लिये यह 50% ही है।
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