राजाजी टाइगर रिज़र्व | 07 May 2019
चर्चा में क्यों?
6 मई को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) ने उत्तराखंड में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील राजाजी टाइगर रिज़र्व (Rajaji Tiger Reserve) में वाणिज्यिक वाहनों के उपयोग के लिये बनाई जा रही सड़क के कथित अवैध निर्माण पर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रदान करने हेतु समिति का गठन किया है।
प्रमुख बिंदु
- हाल ही में एन.जी..टी. के समक्ष प्रस्तुत एक याचिका में यह कहा गया कि किसी प्रकार की वैधानिक मंज़ूरी और अपेक्षित सुरक्षा उपायों के बिना ही बाघ आरक्षित क्षेत्र/टाइगर रिज़र्व में सड़क का निर्माण किया जा रहा है। ऐसे में बाघ आरक्षित क्षेत्र की जैविक विविधता और संसाधनों को नुकसान पहुँचने की संभावना है।
- 1 मार्च, 2017 को उत्तराखंड सरकार ने जैव-विविधता समृद्ध इस क्षेत्र पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर विचार किये बिना वाणिज्यिक वाहनों के लिये टाइगर रिज़र्व में लालढांग-चिलरखाल (Laldang-Chillarkhal) मार्ग खोलने का निर्णय लिया।
- इस याचिका में उठाया गया मुद्दा राजाजी टाइगर रिज़र्व, उत्तराखंड के लालढांग- चिल्लरखाल बफर क्षेत्र की जैव-विविधता और जैविक संसाधनों के संरक्षण के लिये एक्स-सीटू संरक्षण और इन-सीटू संरक्षण विधियों से संबंधित है।
- यही कारण है इस मामले पर विचार करने से पहले संयुक्त समिति से एक तथ्यात्मक रिपोर्ट लेना आवश्यक है, ताकि सही निर्णय लिया जा सके।
- एन.जी.टी. द्वारा गठित समिति तीन महीने के भीतर इस पर रिपोर्ट को प्रस्तुत करेगी।
नोडल निकाय
- एन.टी.सी.ए. (National Tiger Conservation Authority-NTCA) इसके अनुपालन और समन्वय के लिये नोडल एजेंसी होगी।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण
- पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के अंतर्गत वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।
- एन.जी.टी. का उद्देश्य पर्यावरण के मामलों को द्रुतगति से निपटाना तथा उच्च न्यायालयों के मुकदमों के भार को कम करने में मदद करना है।
- यह एक विशिष्ट निकाय है, जो पर्यावरण संबंधी विवादों एवं बहु-अनुशासनिक मामलों को सुविज्ञता से संचालित करने के लिये सभी आवश्यक तंत्रों से सुसज्जित है।
- एन.जी.टी., सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है, लेकिन इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता है।
- अधिकरण आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के 6 महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करता है।
एन.जी.टी. की संरचना
- एन.जी.टी. अधिनियम की धारा 4 में प्रावधान है कि एन.जी.टी. में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, कम-से-कम 10 न्यायिक सदस्य और 10 विशेषज्ञ सदस्य होने चाहिये, लेकिन यह संख्या 20 पूर्णकालिक न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्यों से अधिक नहीं होनी चाहिये
- अधिकरण की प्रमुख पीठ नई दिल्ली में स्थित है, जबकि भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई में इसकी क्षेत्रीय पीठें हैं। इसकी सर्किट स्तरीय पीठें शिमला, शिलॉन्ग, जोधपुर और कोच्चि में स्थित हैं।
भारत में बाघों की अनुमानित संख्या
- राष्ट्रीय स्तर पर हर चार वर्ष बाद आधुनिक तरीकों से बाघों की गिनती की जाती है।
- पहली बार वर्ष 2006 में गिनती की गई, उसके बाद वर्ष 2010 और वर्ष 2014 में।
- वर्ष 2014 की जनगणना के अनुसार, भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 2226 (वर्ष 2010 में 1706 की तुलना में) हो गई है।
- वर्तमान में अखिल भारतीय बाघ अनुमान 2018 (All India Tiger Estimation) इसका चौथा चक्र है जिसके वर्ष 2019 में जारी रहने की संभावना है।
चौथी बाघ जनगणना 2018 का महत्त्व
- वर्ष 2018 की बाघ जनगणना के तहत जानकारियों को संग्रहीत करने के लिये पहली बार "MSTrIPES" नामक एक मोबाइल एप का उपयोग किया जा रहा है।
- बाघ जनगणना 2018 का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके अंतर्गत पूर्वोत्तर भारत को भी शामिल किया जा रहा है, जबकि पिछली जनगणना में ऐसा नहीं था।
- पहली बार भारत सहित तीन पड़ोसी देशों-भूटान, नेपाल और बांग्लादेश (भारत के साथ सीमा साझा करने वाले वे देश, जहाँ से बाघों के सीमा पार कर देश में आने की सूचना मिलती रहती है) बाघों की संख्या की गिनती करने में मदद कर रहे हैं।
बाघ संरक्षण के लिये भारत सरकार के कानूनी उपाय
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन किया गया ताकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और बाघ एवं अन्य लुप्तप्राय प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो) का गठन किया जा सके।
- बाघ आरक्षित वन क्षेत्र या बाघों की अधिक संख्या वाले क्षेत्र से संबंधित अपराधों के मामले में सज़ा बढ़ाई है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) है।
- वर्ष 2006 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों में संशोधन कर बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण की पहली बैठक नवंबर 2006 में हुई थी।
प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger)
- भारत सरकार ने वर्ष 1973 में राष्ट्रीय पशु बाघ को संरक्षित करने के लिये 'प्रोजेक्ट टाइगर' लॉन्च किया।
- 'प्रोजेक्ट टाइगर' पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो नामित बाघ राज्यों में बाघ संरक्षण के लिये केंद्रीय सहायता प्रदान करती है।
- ट्रैफिक-इंडिया के सहयोग से एक ऑनलाइन बाघ अपराध डेटाबेस की शुरुआत की गई है और बाघ आरक्षित क्षेत्रों हेतु सुरक्षा योजना बनाने के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
- भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी एवं वन्य जीवन तथा उनके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 लागू किया।
- इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के अलावा संपूर्ण भारत में है।
- इस अधिनियम में जनवरी 2003 में संशोधन किया गया तथा इस कानून के तहत अपराधों के लिये दी जाने वाली सज़ा और ज़ुर्माने को पहले की तुलना में अधिक कठोर बना दिया गया।
- इसका उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों तथा पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है।
अभयारण्य
- राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा किसी आरक्षित वन में समाविष्ट किसी क्षेत्र से भिन्न क्षेत्र या राज्य क्षेत्रीय सागरखंड को अभयारण्य गठित करने के अपने आशय की घोषणा कर सकती है, यदि वह यह समझती है कि ऐसा क्षेत्र, वन्यजीव या उसके पयार्वरण के संरक्षण, संवर्द्धन या विकास के प्रयोजन के लिये पर्याप्त रूप से पारिस्थितिक, प्राणी जात, वनस्पति जात, भू-आकृति, विज्ञान जात, प्रकृति या प्राणी विज्ञान जात के महत्त्व का है।
शिकार और विद्युत् आघात बाघों की मौत की बड़ी वज़ह
हाल ही में नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (National Tiger Conservation Authority- NTCA) द्वारा बाघों की मौत के संदर्भ में 6 वर्षीय आँकड़े प्रस्तुत किये गए, जिसके अनुसार 2012-2018 के बीच देश में 656 बाघों की मौत की जानकारी प्राप्त हुई।
- उल्लेखनीय है कि इसमें से लगभग 31.5% (207) मौत का कारण अवैध शिकार और इलेक्ट्रोक्यूशन (विद्युत् आघात से मृत्यु) पाया गया है।
प्रमुख बिंदु
- 2014 की जनगणना के अनुसार, अनुमानित 2,226 बाघों में से लगभग 40% बाघ निवास के मुख्य क्षेत्रों से बाहर रहते हैं। इन्हीं बाघों का अवैध शिकार होता है, साथ ही इनके साथ ही मनुष्यों के टकराव की स्थिति भी उत्पन्न होती है।
- आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2012 से 2015 के बीच बाघों की मौत की संख्या में दो अंकों की तुलना की अपेक्षा 2016 में तीन अंकों के साथ बढ़कर इसमें बाघ की भेद्यता (Vulnerability) में वृद्धि प्रदर्शित हुई है।
- उल्लेखनीय है कि 118 बाघों की मौत (कुल मौतों का 18%) के मामले में NTCA को भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है।
- 19 राज्यों में बाघों की होने वाली मौतों में मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा 148 बाघों की मौत की सूचना प्राप्त हुई है उसके बाद महाराष्ट्र (107), कर्नाटक (100) और उत्तराखंड (82) का स्थान है।
- आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में 41 बाघों की मौत हुई है जिनमें में से चार बाघों के अवैध शिकार के कारण मौत (शिकारियों से जब्त किए गए शरीर के अंगों के आधार पर) की जानकारी प्राप्त हुई है।
- इस साल भी सबसे ज़्यादा मामले मध्य प्रदेश (13) और महाराष्ट्र (7) में दर्ज किये गए हैं।
- अवैध शिकार के कारण होने वाली मौतों में से 124 बाघों को शवों के आधार पर गिना गया और बाकी शरीर के अंगों को अवैध शिकारियों से ज़ब्त किया गया।
- 2014 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक (408) और उत्तराखंड (340) के बाद मध्य प्रदेश (308) बाघों की आबादी वाला तीसरा सबसे बड़ा राज्य है।
- आँकड़ों के अनुसार वन्यजीव व्यापार के लिये अवैध शिकार के मामले कम हैं लेकिन 2016 के बाद से इलेक्ट्रोक्यूशन (ज़्यादातर बाड़ के माध्यम से) से मौत एक बड़ी चिंता का विषय है। उल्लेखनीय है कि 295 बाघों की मृत्यु प्राकृतिक (कुल का 45%) रूप से हुई तथा 36 सड़क या रेल दुर्घटनाओं में मारे गए।
अन्य प्रमुख बिंदु
- भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के अनुसार, आने वाले वर्षों में विदर्भ परिदृश्य सहित कई स्थानों पर स्थित अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और बायो-रिज़र्व के बाहर संघर्ष में वृद्धि होने की संभावना जताई जा रही है।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार, मध्य भारत में संरक्षित क्षेत्रों (Protected Areas) में बाघों की संख्या पर्याप्त है और वे वहाँ ज्यादा टिक नहीं सकते। बाघ अभी भी लगातार प्रजनन कर रहे हैं, इसलिये अधिक संघर्ष के परिणामस्वरूप अधिशेष आबादी को बाहर धकेला जा रहा है।
- स्वतंत्र विशेषज्ञों के अनुसार, बाघ के शरीर के अंगों के व्यापार में गिरावट नहीं आई है। जब तक चीनी दवाइयों में बाघ के अंगों का उपयोग जारी रहता है, तब तक भारत से बाघों का अवैध शिकार जारी रहेगा।
बाघ संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा सम्मेलन