इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रेडियोधर्मी कचरे की डंपिंग

  • 23 Mar 2020
  • 13 min read

प्रीलिम्स के लिये:

रेडियोधर्मी अपशिष्ट वर्गीकरण, मार्शल द्वीप, सागरीय प्रदूषण की रोकथाम पर लंदन कन्वेंशन

मेन्स के लिये:

परमाणु आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान के फुकुशिमा नगर के तटीय भागों में रेडियोधर्मी विकिरण का स्तर जापान सरकार द्वारा अधिसूचित 100 बैकरल (Becquerel-रेडियोधर्मिता मापन की इकाई) की सीमा से कई गुना अधिक पाया गया, जिसने रेडियोधर्मी पदार्थों के अपशिष्ट प्रबंधन को पुन: चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट:
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट सामग्री में उन सभी पदार्थों को शामिल किया जाता है जो- “या तो खुद ही रेडियोधर्मी हैं या रेडियोधर्मिता द्वारा संदूषित होते हैं तथा जिनको भविष्य के लिये उपयोगी नहीं माना जाए।” 
  • सरकार द्वारा नीति निर्माण करके विशिष्ट सामग्री जैसे- उपयोग किये जा चुके परमाणु ईंधन एवं प्लूटोनियम,  को रेडियोधर्मी अपशिष्ट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

रेडियोधर्मी अपशिष्ट का वर्गीकरण:

  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट को रेडियोधर्मिता स्तर के आधार पर निम्न स्तर अपशिष्ट (low level Waste- LLW), मध्यवर्ती स्तर अपशिष्ट ( Intermediate Level Waste- ILW), या उच्च-स्तर अपशिष्ट ( High Leve Waste- HLW) में वर्गीकृत किया जाता है।
  • निम्न स्तर अपशिष्ट (low level Waste- LLW):
    • LLW में ऐसी रेडियोधर्मी सामग्री को रखा जाता है जिसमें अल्फा क्रियाविधि  (Alpha Activity) का स्तर 4 गीगा-बैकरल/टन (GBq/t) तथा बीटा-गामा क्रिया विधि का स्तर 12 गीगा-बेकरल/टन (GBq/t) से कम हो। 
    • LLW की हैंडलिंग एवं परिवहन के दौरान विशिष्ट परिरक्षण (Shielding) की आवश्यकता नहीं होती है तथा इनका निपटान ऊपरी सतह के निकट ही किया जा सकता है।
  • मध्यवर्ती स्तर अपशिष्ट (Intermediate Level Waste- ILW):
    • ILW, LLW की तुलना में अधिक रेडियोधर्मी होते हैं। रेडियोधर्मिता के उच्च स्तर के कारण ILW को कुछ परिरक्षण (Shielding) उपायों की आवश्यकता होती है, लेकिन इनके द्वारा उत्पन्न ऊष्मा इतनी अधिक नहीं होती है कि इनके भंडारण तथा निपटान में विशेष प्रकार के डिज़ाइन के चयन की आवश्यकता हो।
    • इसका रेडियोधर्मी अपशिष्ट के आयतन में 7% तथा रेडियोधर्मिता में 4% योगदान है।
  • उच्च स्तर अपशिष्ट ( High Level Waste- HLW):
    • HLW इतने अधिक रेडियोधर्मी होते हैं कि वे रेडियोधर्मी क्षय ऊष्मा (Decay Heat) से आसपास के वातावरण का तापमान उल्लेखनीय रूप से बढ़ा सकते हैं। अत: HLW के निपटान में शीतलन और परिरक्षण उपायों की आवश्यकता होती है। 
    • परमाणु रिएक्टर में यूरेनियम ईंधन के दहन से HLW उत्पन्न होता है। HLW का उत्पादित कचरे के आयतन में केवल 3% परंतु रेडियोधर्मिता में 95% योगदान होता है।
    • HLW को निम्नलिखित 2 वर्गों मे रखा जाता है: 
      • प्रयुक्त ईंधन जिसे अपशिष्ट के रूप में नामित किया गया है। 
      • उपयोग किये जा चुके ईंधन के पुन: प्रसंस्करण से उत्पन्न अपशिष्ट।

सागरीय रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण:

  • परमाणु बम परीक्षण:
    • सर्वप्रथम सागरीय क्षेत्र में परमाणु बम परीक्षण, वर्ष 1946 में अमेरिका द्वारा प्रशांत महासागर के बिकिनी एटॉल (Bikini Atoll) नामक ‘कोरल रीफ’ के सागरीय क्षेत्र में किया था। अगले कुछ दशकों में 250 से अधिक परमाणु हथियारों के परीक्षण उच्च सागरीय क्षेत्रों मे किये गए।
    • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (International Atomic Energy Agency- IAEA) के अनुसार, वर्ष 1946-1993 की अवधि के दौरान परमाणु गोला बारूद सहित कई परमाणु पनडुब्बियाँ भी महासागरों मे डूब गईं।
  • परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से परमाणु दुर्घटनाएँ:
    • फुकुशिमा डाइची (जापान), चर्नोबिल (यूक्रेन) एवं थ्री माइल द्वीप (अमेरिका) में प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र दुर्घटनाएँ हुई हैं
    • फुकशिमा परमाणु आपदा के कारण प्रशांत महासागर में रेडियोधर्मी विकिरण में व्यापक वृद्धि हुई है। परंतु वास्तव मे देखा जाए तो पूर्व में किये गए परमाणु बम परीक्षण तथा रेडियोधर्मी अपशिष्ट इस आपदा के पूर्व से ही इस महासागर को प्रदूषित कर रहे थे तथा तभी से महासागरों में रेडियोधर्मी प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। 
  • रेडियोधर्मी अपशिष्ट की डंपिंग: 
    • 1990 के दशक तक सागरीय क्षेत्रों का प्रयोग न केवल परमाणु युद्ध के परीक्षण क्षेत्र के रूप में अपितु परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से उत्पन्न रेडियोधर्मी अपशिष्ट की डंपिंग करने मे भी किया जाता रहा है। 
    • आदर्श वाक्य ‘दृष्टि से दूर, दिमाग से बाहर’ (Out of Sight, Out of Mind) की विचारधारा के अनुसार ‘परमाणु अपशिष्ट’ के सागरीय क्षेत्र में डंपिंग को सबसे आसान तरीका माना जाता है। 
    • IAEA के अनुसार वर्ष 1946-1993 की अवधि के दौरान 2 लाख टन से भी अधिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट की डंपिंग महासागरों में की गई।
  • परमाणु संयंत्र शीतलक (Coolant in Nuclear plant):
    • परमाणु संयंत्रों में शीतलक के रूप में जल का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। अन्य शीतलकों में भारी जल, वायु, कार्बन डाइऑक्साइड, हीलियम, तरल सोडियम, सोडियम-पोटेशियम मिश्र धातु आदि शामिल हैं।
    • उत्तरी फ्राँस के तटीय भागों में रेडियोधर्मी विकिरण का मुख्य कारण परमाणु ईंधन पुनर्संसाधन संयंत्र है जो प्रतिवर्ष 33 मिलियन लीटर रेडियोधर्मी तरल का बहाव महासागर में करता है।

अंतर्राष्ट्रीय नियम:

  • वर्ष 1993 में ‘सागरीय प्रदूषण की रोकथाम पर लंदन कन्वेंशन’ (London Convention on the Prevention of Marine Pollution) द्वारा ड्रमों के माध्यम से महासागरों में किये जाने वाले परमाणु अपशिष्ट की डंपिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था परंतु विकिरण युक्त संदूषित तरल की सागरीय भागों में डंपिंग को अंतर्राष्ट्रीय  स्तर पर अभी भी अनुमति प्राप्त है। 

लंदन कन्वेंशन एवं प्रोटोकॉल

(The London Convention and Protocol):

  • 'लंदन कन्वेंशन ऑन डंपिंग ऑफ वेस्टेज़ एंड अदर मैटर' (Convention on the Prevention of Marine Pollution by Dumping of Wastes and Other Matter) 1972, जिसे संक्षेप में 'लंदन कन्वेंशन' के नाम से जाना जाता हैं, मानव गतिविधियों से सागरीय पर्यावरण की रक्षा करने वाले प्रारंभिक वैश्विक सम्मेलनों में से एक है।
  • यह कन्वेंशन वर्ष 1975 से प्रभावी है। इसका उद्देश्य समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों पर प्रभावी नियंत्रण को बढ़ावा देना तथा सागरीय क्षेत्रों में अपशिष्टों की  डंपिंग रोकने के लिये सभी व्यावहारिक कदम उठाना है।
  • वर्ष 1996 में ‘लंदन प्रोटोकॉल’ पर सहमति बनी जो पूर्ववर्ती कन्वेंशन को आधुनिक बनाने तथा समय के साथ इसे प्रतिस्थापित करने की दिशा में एक प्रयास था। इस प्रोटोकॉल के तहत तथाकथित ‘रिवर्स सूची’ (Reverse List) में शामिल अपशिष्टों के अलावा अन्य सभी अपशिष्टों की डंपिंग करने पर पाबंदी लगा दी गई है।
  • ‘लंदन प्रोटोकॉल’ 24 मार्च 2006 से प्रभावी हुआ।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव:

  • रेडियोधर्मी विकिरण के सटीक प्रभाव (Effect) का मापन बेहद मुश्किल है। हम इससे उत्पन्न होने वाले अप्रत्यक्ष प्रभावों (Affect) को ही जान सकते हैं। 
  • विकिरण प्रदूषण की प्रभावशीलता, विकिरण के स्रोत तथा व्यक्तिगत संवेदनशीलता द्वारा निर्धारित की जाती है। प्रत्येक व्यक्ति की संवेदनशीलता के अनुसार रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रभाव भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। 
  • उच्च मात्रा में विकिरण के संपर्क से ‘क्रॉनिक डिज़ीज़िज़’ (Chronic Diseases), जबकि अत्यधिक प्रदूषण से  कैंसर या यहाँ तक कि अचानक मृत्यु भी हो सकती है। 
  • विकिरण की कम मात्रा उन बीमारियों का कारण बन सकती है जो विकिरण संपर्क के समय इतनी गंभीर नहीं होती हैं परंतु समय के साथ विकसित होती है। विकिरण की कम मात्रा भी लंबे समय तक संपर्क में रहने पर कैंसर का कारण बन सकती है।

radiation-level

परमाणु आपदा प्रबंधन:

  • सामान्यत: परमाणु या रेडियोधर्मी आपात काल को ऐसी स्थिति के रूप में वर्णित किया जाता है- “जब परिचालन कर्मी या सामान्य जनता, नियामक संस्थाओं द्वारा निर्धारित रेडियोधर्मी विकिरण स्तर से अधिक की चपेट में हो।”
  • NDMA दिशा-निर्देशों के अनुसार रोकथाम और शमन उपायों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है-
    (i) नियामक आवश्यकताओं का अनुपालन।
    (ii) परमाणु आपातकालीन तैयारी।
    (iii) क्षमता निर्माण।
    (iv) कानूनी एवं नियामक उपायों के माध्यम से परमाणु आपातकालीन प्रबंधन (Nuclear Emergency Management- NEM) के ढाँचे को मज़बूत करना।

भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना, डिज़ाइनिंग, निर्माण, कमीशनिंग, संचालन एवं डीकमीशनिंग के दौरान सुस्थापित सुरक्षा मानदंडों का पालन किया जाता है।

बिकिनी एटॉल (Bikini Atoll): 

यह प्रशांत महासागर में स्थित ‘मार्शल द्वीपों’ (Marshall Islands)-  जिनका निर्माण 29 एटॉल एवं 5 द्वीपों से मिलकर हुआ है, में स्थित एक एटॉल है।

नियमित वायु एवं सागरीय परिवहन मार्गों से दूर होने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस द्वीप का चुनाव परमाणु परीक्षण करने के लिये किया।

Bikini-Atoll

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2