दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय विभाजन | 25 Sep 2024
प्रिलिम्स के लिये:नस्लीय भेदभाव, रंगभेद, दक्षिण अफ्रीका, बेरोज़गारी मेन्स के लिये:दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद प्रणाली, रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन, रंगभेद उन्मूलन में भारत का योगदान, महात्मा गांधी की भूमिका |
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
दक्षिण अफ्रीका में 30 वर्ष पहले रंगभेद की समाप्ति के बावजूद, इसकी अर्थव्यवस्था अभी भी नस्ल के आधार पर विभाजित है तथा अभी भी प्रणालीगत असमानताएँ का सातत्य हैं।
- इससे रंगभेद के बाद की अश्वेत आर्थिक सशक्तीकरण (BEE) नीति की प्रभावशीलता पर राजनीतिक बहस पुनः शुरू हो गई है।
दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय विभाजन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- बेरोज़गारी दर: अप्रैल-जून 2024 तक, दक्षिण अफ्रीका की कुल बेरोज़गारी दर 33.5% थी। अश्वेत दक्षिण अफ्रीकियों में, यह दर काफी अधिक अर्थात् 37.6% थी, जबकि श्वेत दक्षिण अफ्रीकियों में यह दर 7.9% और मिश्रित नस्ल के लोगों में 23.3% थी।
- अश्वेत व्यक्तियों में बेरोज़गारी लगातार राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है तथा वर्ष 2014 से इसमें 9% से अधिक की वृद्धि हुई है।
- प्रबंधन नियंत्रण: दक्षिण अफ्रीका के रोज़गार समानता आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में, श्वेत व्यक्ति, जो दक्षिण अफ्रीका की आबादी का लगभग 8% हैं, के पास शीर्ष प्रबंधन पदों का 65.9% हिस्सा था, जबकि अश्वेत व्यक्तियों के पास केवल 13.8% था।
- नौकरी के स्तर का वितरण: अकुशल श्रमिकों के स्तर पर अश्वेतों की हिस्सेदारी 82.8% है, जबकि श्वेत व्यक्तियों की हिस्सेदारी केवल 0.9% है तथा उच्च नौकरी के स्तरों पर अश्वेतों का प्रतिनिधित्व कम हो रहा है।
- कंपनियों में स्वामित्व: ब्रॉड-बेस्ड ब्लैक इकोनॉमिक एम्पावरमेंट कमीशन के अनुसार, जोहान्सबर्ग स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कोई भी कंपनी 100% अश्वेत स्वामित्व वाली नहीं है।
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन क्या था?
- रंगभेद: रंगभेद (या पृथकता) दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय पृथक्करण और भेदभाव की एक प्रणाली थी जो वर्ष 1948 से वर्ष 1994 तक चली।
- इसे दक्षिण अफ्रीका में श्वेत यूरोपीय उपनिवेशवादियों की सरकारों द्वारा लागू किया गया था।
- रंगभेद प्रणाली की प्रमुख नीतियाँ:
- पृथक्करण: अश्वेत लोगों को निर्दिष्ट क्षेत्रों में रहने तथा श्वेत लोगों से अलग सार्वजनिक सुविधाओं का उपयोग करने के लिये बाध्य किया गया।
- मतदान का अधिकार: अश्वेत लोगों को मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
- विवाह और सामाजिक संबंध: अंतरनस्लीय विवाह और सामाजिक संबंध निषिद्ध थे।
- संगठन और विरोध : अश्वेतों को संगठन बनाने या रंगभेद के विरुद्ध विरोध करने से प्रतिबंधित कर दिया गया था।
- रंगभेद विरोधी आंदोलन (AAM): रंगभेद विरोधी आंदोलन (AAM) 20वीं सदी का पहला सफल अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आंदोलन था।
- उद्देश्य:
- दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन को आंतरिक रूप से समाप्त करना और
- सरकार के विरुद्ध राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिबंधों के लिये बाह्य दबाव डालना।
- AAM के चरण:
- प्रथम चरण (1960 के दशक से पूर्व): इसमें अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (ANC) और दक्षिण अफ्रीकी कम्युनिस्ट पार्टी (SACP) जैसे संगठनों के नेतृत्व में अहिंसक प्रत्यक्ष कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- दूसरा चरण (1960 के बाद): संघर्ष अंतर्राष्ट्रीय हो गया, जिसे अफ्रीकी संघ, संयुक्त राष्ट्र (UN) और भारत जैसे देशों से समर्थन प्राप्त हुआ।
- संयुक्त राष्ट्र ने रंगभेद अपराध के दमन और दंड पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय को अंगीकृत किया।
- तीसरा चरण (1980 के बाद): यह देश को अप्रशासनीय बनाने के लिये हड़तालों, बहिष्कारों, प्रदर्शनों और तोड़फोड़ की गतिविधियों के माध्यम से बड़े पैमाने पर आंतरिक प्रतिरोध द्वारा चिह्नित था।
- AAM का प्रभाव: वर्ष 1990 तक, दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध हटा लिया और प्रमुख रंगभेद कानूनों को निरस्त कर दिया, जिनमें वर्ष 1913 और वर्ष 1936 के भूमि अधिनियम, जनसंख्या पंजीकरण अधिनियम और पृथक सुविधा अधिनियम शामिल थे।
- अफ्रीकी राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस (ANC) के नेता नेल्सन मंडेला को वर्ष 1991 में जेल से रिहा किया गया और वर्ष 1994 में वे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने।
- वैधानिक पृथक्करण का अंत: रंगभेद कानूनों को निरस्त कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1994 में एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना हुई।
- सार्वभौमिक मताधिकार: सभी दक्षिण अफ्रीकियों को, नस्ल की परवाह किये बिना, मतदान का अधिकार प्राप्त हुआ।
- संवैधानिक संरक्षण: नए संविधान में सभी नागरिकों के लिये मानवाधिकार और समानता सुनिश्चित की गई है।
- दक्षिण अफ्रीकी सत्य एवं सुलह आयोग की स्थापना वर्ष 1995 में रंगभेद युग के दौरान किये गए अत्याचारों से निपटने तथा राष्ट्रीय पुनर्वास एवं सुलह को सुगम बनाने के लिये की गई थी।
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद समाप्त करने में भारत की क्या भूमिका थी?
- गांधीजी का प्रभाव : दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन (AAM) के बीज महात्मा गांधी द्वारा बोए गए थे, जो श्वेत यूरोपीय लोगों द्वारा एशियाई लोगों को दिये जाने वाले अपमान से प्रेरित थे।
- उन्होंने पहला उपनिवेशवाद-विरोधी और नस्लीय भेदभाव-विरोधी आंदोलन शुरू किया, वर्ष 1894 में नेटाल इंडियन काॅन्ग्रेस की स्थापना की और वर्ष 1903 में इंडियन ओपिनियन नामक समाचार पत्र की स्थापना की।
- वर्ष 1906 में, गांधीजी ने हज़ारों सत्याग्रहियों का नेतृत्व करते हुए एशियाई विधि संशोधन अध्यादेश का बहिष्कार किया, जिसमें भारतीयों के लिये अपनी उंगलियों के निशान के साथ पंजीकरण प्रमाण पत्र रखना अनिवार्य कर दिया गया था।
- वर्ष 1915 में जब वे दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आए तो अपने पीछे फीनिक्स सेटलमेंट की विरासत छोड़ आए, जो डरबन के निकट एक आश्रम जैसा समुदाय था।
- भारतीय प्रवासियों की भूमिका:
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय आंदोलनों के बीच संबंध सुदृढ़ हुए।
- भारतीय दक्षिण अफ्रीकी लोग अफ्रीकी बहुसंख्यकों के साथ अपने साझा भाग्य को तेज़ी से स्वीकार करने लगे तथा नस्लवाद के विरुद्ध संयुक्त संघर्षों में भाग लेने लगे।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय आंदोलनों के बीच संबंध सुदृढ़ हुए।
- भारत सरकार की भूमिका:
- पदभार ग्रहण करते समय, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उपनिवेशवाद को समाप्त करने और विश्व स्तर पर नस्लीय समानता को बढ़ावा देने के लिये भारत की प्रतिबद्धता पर बल दिया।
- भारत पहला देश था जिसने वर्ष 1946 में रंगभेदी सरकार के साथ व्यापारिक संबंध समाप्त कर दिये थे और बाद में दक्षिण अफ्रीका पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था।
- यह वर्ष 1946 में दक्षिण अफ्रीकी रंगभेद के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र (UN) में लाने वाला पहला संगठन था, जिससे नस्लवाद के विरुद्ध संघर्ष को अंतर्राष्ट्रीय बनाने में सहायता मिली।
- इसके अतिरिक्त, अफ्रीकी राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस (ANC) ने 1960 के दशक से नई दिल्ली में एक प्रतिनिधि कार्यालय बनाए रखा और भारत ने रंगभेद विरोधी आंदोलन को बनाए रखने के लिये अफ्रीका कोष को सक्रिय रूप से समर्थन दिया।
- वर्ष 1961 में प्रथम सम्मेलन से ही रंगभेद गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के एजेंडे में था।
- भारत ने NAM की स्थापना के समय से ही इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- वर्ष 1964 में काहिरा, मिस्र में दूसरे NAM सम्मेलन के दौरान दक्षिण अफ्रीका की सरकार को रंगभेद की भेदभावपूर्ण प्रथाओं के खिलाफ चेतावनी दी गई थी।
दक्षिण अफ्रीका की ब्लैक इकोनॉमिक एम्पावरमेंट (BEE) नीति क्या है?
- परिचय :
- ब्लैक इकोनॉमिक एम्पावरमेंट (BEE) नीति दक्षिण अफ्रीका में एक सरकारी पहल है जिसे काले, रंगीन और भारतीय दक्षिण अफ्रीकियों की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
- इसका उद्देश्य दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों के बहुमत के बीच आर्थिक संसाधनों के न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देकर ऐतिहासिक असंतुलन को दूर करना है।
- ब्रॉड बेस्ड ब्लैक इकॉनोमिक एम्पोवेर्मेंट एक्ट को वर्ष 2003 में अधिनियमित किया गया।
- ब्लैक इकोनॉमिक एम्पावरमेंट (BEE) नीति दक्षिण अफ्रीका में एक सरकारी पहल है जिसे काले, रंगीन और भारतीय दक्षिण अफ्रीकियों की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के लिये अभिकल्पित किया गया है।
- उद्देश्य:
- अश्वेत व्यक्तियों द्वारा उद्यमों के स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण को बढ़ाना।
- समुदायों, श्रमिकों और सहकारी समितियों के लिये स्वामित्व एवं प्रबंधन के अवसरों को सुविधाजनक बनाना।
- कार्यबल में विविध नस्लीय समूहों का उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त करना।
- अश्वेत स्वामित्व वाले व्यवसायों से अधिमान्य अधिप्राप्ति को प्रोत्साहित करना।
- अश्वेत व्यक्तियों के स्वामित्व वाले उद्यमों में निवेश करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :
उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. असहयोग आंदोलन एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रमों को स्पष्ट कीजिये। (2021) |