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सामाजिक न्याय

गुजरात का राबरी, भारवाड़ एवं चारण समुदाय

  • 11 Jul 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये

राबरी, भारवाड़, एवं चारण जनजाति, भारतीय संविधान की 5वीं एवं 6वीं अनुसूची 

मेन्स के लिये

भारत के गुजरात राज्य में जनजातियों को मिलने वाला सामाजिक न्याय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गुजरात सरकार ने कहा कि राबरी (Rabari), भारवाड़ (Bharvad) एवं चारण (Charan) समुदायों के सदस्यों की पहचान करने के लिये एक पाँच सदस्यीय आयोग का गठन किया जाएगा जो गुजरात के गिर, बरदा एवं एलेच (Alech) इलाकों में रहते हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि ये तीनों समुदाय भारतीय संविधान के दायरे में अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) के तहत लाभ पाने के पात्र हैं।
  • पाँच सदस्यीय आयोग:
    • इस पाँच सदस्यीय आयोग में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में दो ज़िला न्यायाधीश, एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी और एक सेवानिवृत्त्व राजस्व अधिकारी शामिल होंगे।
  • अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) का दर्जा:
    • केंद्र सरकार ने 29 अक्तूबर, 1956 की एक अधिसूचना के माध्यम से गुजरात के राबरी (Rabari), भारवाड़ (Bharvad) एवं चारण (Charan) समुदायों के लोगों को अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) का दर्जा दिया जो गुजरात में गिर, बरदा और एलेच के इलाकों में नेस्सेस (Nesses) में रहते थे।

नेस्सेस (Nesses):

  • नेस्सेस (Nesses) मिट्टी से बने छोटे, अंडाकार आकार के झोपड़े होते हैं।

अन्य जनजाति समुदायों द्वारा विरोध:

  • हालाँकि कई आदिवासी समुदाय काफी समय से यह आरोप लगाते रहे हैं कि इन समुदायों से संबंधित कई लोग जो नेस्सेस में नहीं रहते हैं तथा ST प्रमाण पत्रधारक हैं और मुख्य रूप से सरकारी नौकरियों में अनुचित आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं।
  • इस मुद्दे को हल करने और तीन समुदायों के सदस्यों के बीच अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe) प्राप्त दर्ज़े के तहत वैध लाभार्थियों का निर्णय करने के लिये पाँच सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है। 

राबरी (Rabari):

  • राबरी जिन्हें ‘रेवारी’ या ‘देसाई’ भी कहा जाता है, एक घुमंतू चरवाहा जनजाति है।
  • यह जनजाति पूरे उत्तर-पश्चिम भारत (मुख्य रूप से गुजरात, पंजाब और राजस्थान के राज्यों में) में फैली हुई हैं।
  • यह जनजाति अपने पशुओं के साथ मुख्य रूप से राजस्थान एवं गुजरात के क्षेत्रों में चारे की तलाश में घूमने के बाद वर्ष में एक बार अपने गाँव वापस आती है और दूध बेचकर अपना जीवन यापन करती है।
  • ये हिंदू धर्म में विश्वास करते हैं और ‘शिव’ और ‘शक्ति’ (देवी पार्वती) की पूजा करते हैं।

भारवाड़ (Bharvad):

  • ‘भारवाड़’ शब्द को 'बाड़ावाड़' (Badawad) का संशोधित रूप माना जाता है। गुजराती भाषा में 'बाड़ा' शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘भेड़’ तथा 'वाड़ा' का अर्थ ‘अहाता’ (भेड़ पालने की जगह) से है।
  • भारवाड़ समुदाय के लोग मूल रूप से गुजरात राज्य में निवास करते है और पशुपालन में संलग्न हैं।
  • पश्चिमी गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में वे दो अंतर्विवाही समूहों के रूप में मौजूद हैं जिन्हें ‘मोटा भाई’ और ‘नाना भाई’ के नाम से जाना जाता है। 
  • यह जनजाति हिंदू धर्म में विश्वास करती है।

चारण (Charan): 

  • चारण (Charan) गुजरात की कम आबादी वाली जनजाति है। इन्हें गढ़वी (Gadhvi) भी कहा जाता है।
  • वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, गुजरात के बरदा, गिर एवं एलेच क्षेत्रों में चारण की आबादी को अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।
  • ये गुजराती भाषा बोलते हैं और गुजराती लिपि का उपयोग करते हैं।
  • ये लोग शाकाहारी होते हैं और इनका मुख्य भोजन अरहर, मूंग एवं मोठ और कभी-कभार मौसमी सब्जियों के साथ ज्वार या बाज़रे की रोटी है।
  • ये हिंदू धर्म में विश्वास करते हैं।

अनुसूचित जनजाति से संबंधित भारतीय संविधान में प्रावधान:

  • स्वतंत्रता के उपरांत वर्ष 1950 में संविधान (अनुच्छेद 342) के अंगीकरण के बाद ब्रिटिश शासन के दौरान जनजातियों के रूप में चिह्नित व दर्ज समुदायों को अनुसूचित जनजाति के रूप में पुन: वर्गीकृत किया गया।
    • जिन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियाँ संख्यात्मक रूप से प्रभावी हैं, उनके लिये संविधान में पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के रूप में दो अलग-अलग प्रशासनिक व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है।
  • संविधान के अंतर्गत ‘पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्र’ (Fifth Schedule Areas) ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित करे। 
    • पाँचवीं अनुसूची के प्रावधानों को ‘पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996’ के रूप में और विधिक व प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण प्रदान किया गया।
  • छठी अनुसूची के क्षेत्र (Sixth Schedule areas) कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जो पूर्ववर्ती असम और अन्य जनजातीय बहुल क्षेत्रों में भारत सरकार अधिनियम, 1935 से पहले तक बाहर रखे गए थे तथा बाद में अलग राज्य बने। इन क्षेत्रों (छठी अनुसूची) को भारतीय संविधान के भाग XXI के तहत भी विशेष प्रावधान प्रदान किये गए हैं।
  • अनुच्छेद-17: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 समाज में किसी भी तरह की अस्पृश्यता का निषेध करता है। 
  • अनुच्छेद-46: भारतीय संविधान के ‘राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों’ के अंतर्गत अनुच्छेद 46 के तहत राज्य को यह आदेश दिया गया है कि वह अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा एवं उनके अर्थ संबंधी हितों की रक्षा करे।
  • अनुसूचित जनजातियों के हितों की अधिक प्रभावी तरीके से रक्षा हो सके इसके लिये वर्ष 2003 में 89वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के द्वारा पृथक ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ की स्थापना भी की गई।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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